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वसूलते एफिलिएटेड स्कूल की फीस

संजीव भागलपुर : शिक्षा विभाग के नजरिये से जिले में 93 फीसदी स्कूल बगैर मान्यता के संचालित हैं. लेकिन इनमें अधिकतर स्कूलों के संचालक अभिभावकों से फीस, किताब, ड्रेस आदि मद में मान्यताप्राप्त स्कूलों की तरह ही मोटी रकम की उगाही करते हैं. गैर मान्यतावाले स्कूलों में ऐसे स्कूल शायद ही ढूंढ़ने से मिले, जहां […]

संजीव
भागलपुर : शिक्षा विभाग के नजरिये से जिले में 93 फीसदी स्कूल बगैर मान्यता के संचालित हैं. लेकिन इनमें अधिकतर स्कूलों के संचालक अभिभावकों से फीस, किताब, ड्रेस आदि मद में मान्यताप्राप्त स्कूलों की तरह ही मोटी रकम की उगाही करते हैं.
गैर मान्यतावाले स्कूलों में ऐसे स्कूल शायद ही ढूंढ़ने से मिले, जहां प्रशिक्षित शिक्षक कार्यरत हैं. ऐसे में मोटी रकम भुगतान करने के बाद भी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल रही होगी, इसकी गारंटी का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. ऐसे स्कूलों में सर्वाधिक किताब के मामले में अभिभावकों को ‘निचोड़ा’ जाता है.
इसलिए पढ़ाने की है मजबूरी
गैर मान्यताप्राप्त स्कूल गली-गली में खुले हुए हैं. कमोबेश सभी अभिभावक चाहते हैं कि मान्यताप्राप्त और बड़े स्कूलों में उनके बच्चे पढ़ें. यह भी एक कारण है कि हजारों आवेदन मान्यताप्राप्त स्कूलों में नामांकन के लिए जमा होते हैं. लेकिन सीट सीमित होने के कारण अधिकतर अभिभावकों को गैर मान्यताप्राप्त स्कूलों में नामांकन कराना पड़ता है.
इनमें वैसे अभिभावक, जिनकी आर्थिक आय कम है, वे चाहते हैं कि अपने मोहल्ले के स्कूलों में ही बच्चे का नामांकन करायें. इससे बस किराया तकरीबन 1000 रुपये मासिक की बचत हो जाती है. लेकिन नौवीं कक्षा में रजिस्ट्रेशन के नाम पर पांच से दस हजार रुपये तक का अतिरिक्त भार अभिभावकों को उठाना पड़ता है.
शिक्षा विभाग भी लापरवाह
केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित बच्चों की मुफ्त व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की नियमावली के तहत निजी विद्यालयों को प्रस्वीकृति (मान्यता) प्राप्त करना अनिवार्य किया गया है. मान्यता के लिए निजी स्कूलों से 30 नवंबर 2011 तक आवेदन करने के लिए शिक्षा विभाग ने कहा था. उस समय 313 स्कूलों ने आवेदन जमा किया था.
इनमें महज सात विद्यालयों को मान्यता प्रदान की गयी थी. शेष आवेदनों में कमी को देखते हुए सुधार करने का समय देते हुए अस्वीकृत कर दिया गया था. यह कमी पूरी हुई कि नहीं, इसे दोबारा पूछने की जरूरत शिक्षा विभाग ने नहीं समझी.
भागलपुर : शनिवार से 10 दिनों तक शहर में घनघोर बिजली संकट रह सकता है. मामला सबौर ग्रिड के आधुनिकीकरण के लिए मंगाये गये आइसोलेटर स्विच को लेकर है. इस स्विच को खराब बताया जा रहा था. बेंगलुरु की कंपनी की टीम आयी है और उनका कहना है कि आइसोलेटर स्विच ठीक है. गड़बड़ी है, तो एलायमेंट के सेटिंग में. इस काम को पावर टेक कंपनी ने किया है. इस पावर टेक कंपनी की टीम भी यहां मौजूद है.
अब दोनों कंपनी की टीम आमने-सामने है. पावर टेक कंपनी की टीम की मौजूदगी में एलायमेंट की सेटिंग को ठीक कर आइसोलेटर स्विच लगाने का काम हो रहा है. इस काम के लिए हर दिन एक न एक विद्युत सब स्टेशनों को दिन-दिन भर शट डाउन पर रखा जायेगा.
इससे संबंधित क्षेत्र को बिजली नहीं नहीं मिल सकेगी. यानी, कुल मिला कर स्थिति यह है कि आउटसोर्स दो कंपनियों के बीच के पेच में सबौर ग्रिड फंसा है. सबौर ग्रिड के आधुनिकीकरण पर ट्रांसमिशन विभाग लगभग छह करोड़ खर्च कर रहा है. इनमें से सामान और मेंटेनेंस पर अब तक साढ़े तीन करोड़ से अधिक खर्च हो चुका है. फिर भी स्थिति नहीं सुधरी है. आपूर्ति मामले में सबौर ग्रिड स्ट्रांग नहीं हो सका है.

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