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खरीफ की खेती भगवान भरोसे

भागलपुर: कृषि रोड मैप व कृषि कैबिनेट के जरिए सूबे में दूसरे हरित क्रांति को सिंचाई की अच्छी व्यवस्था नहीं रहने से झटका लग रहा है. बारिश नहीं होने से पूर्व बिहार के विभिन्न जिलों के किसानों के चेहरे के रंगत उड़ने लगी है. धान के बिचड़े मुरझाने लगे हैं. जुलाई महीने में सामान्य से […]

भागलपुर: कृषि रोड मैप व कृषि कैबिनेट के जरिए सूबे में दूसरे हरित क्रांति को सिंचाई की अच्छी व्यवस्था नहीं रहने से झटका लग रहा है. बारिश नहीं होने से पूर्व बिहार के विभिन्न जिलों के किसानों के चेहरे के रंगत उड़ने लगी है. धान के बिचड़े मुरझाने लगे हैं. जुलाई महीने में सामान्य से काफी कम बारिश हुई है और बचे दिनों में भी अच्छी बारिश की संभावना नहीं है.

खरीफ के चालू मौसम में पूर्व बिहार के विभिन्न जिलों में 3.89 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि में खरीफ की खेती का लक्ष्य रखा गया है. लेकिन सिंचाई की सुविधा 2.79 लाख हेक्टेयर में ही ही उपलब्ध है. यानी 1 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि में लगी खरीफ फसल पटवन के लिए भगवान भरोसे है. ऐसे भी पूर्व बिहार में नहरों की स्थिति बेहद खराब है. अच्छी बारिश नहीं होने से जलाशयों में भी पानी की कमी है. सावन शुरू हो गया है लेकिन पानी के अभाव में रोपनी नहीं हो पा रही है.

पूर्व बिहार के विभिन्न जिलों भागलपुर सहित बांका, मुंगेर, जमुई और लखीसराय में किसानों ने खरीफ की खेती शुरू कर दी है. खरीफ में धान के अलावा मक्का , दहलनी व तेलहनी फसलों की रोपनी व बुआई शुरू तो हो गयी है लेकिन बारिश नहीं होने से किसानों की चिंता बढ़ गयी है. पानी के अभाव में बिचड़ा भी पीला पड़ने लगा है. बिहार कृषि विवि के मौसम वैज्ञानिक सुनील कुमार के अनुसार जुलाई में सामान्य से काफी कम बारिश हुई हुई है. जुलाई में औसत 324 मिलीमीटर बारिश होती है. लेकिन इस वर्ष जनवरी से अब तक 512 मिलीमीटर बारिश हुई है. जुलाई में तो अब तक सौ मिलीमीटर से भी कम बारिश हुई है और अच्छी बारिश की संभावना भी नहीं है.

सिंचाई साधनों का है जबरदस्त अभाव
पूर्व बिहार में बांका को छोड़ कर अन्य जिलों में सिंचाई सुविधा का जबरदस्त अभाव है. नहर उदवह सिंचाई योजना के अलावा निजी नलकूप ही सिंचाई के मुख्य स्त्रोत हैं. कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार बांका में जितनी जमीन में खरीफ की खेती हो रही है उससे अधिक में सिंचाई सुविधा उपलब्ध है. सिंचाई सुविधा की सबसे अधिक कमी भागलपुर जिले में है. इस साल पूर्व बिहार के विभिन्न पांच जिले के 2.79 लाख हेक्टयर में धान की खेती का लक्ष्य रखा गया है. सरकारी आंकड़े जो भी कहे लेकिन वास्तविक स्थिति उससे अलग है. बांका जिले के हनुमना व खंडवारिनी डैम से मुंगेर जिले के भी एक बड़े इलाके में पटवन होती है लेकिन हकीकत यही है कि नहर इतनी जर्जर हो चुकी है कि खेतों तक पानी पहुंच ही नहीं पाता है. सरकारी आंकड़ों व हकीकत में कोसों का वास्ता है. जोरदार बारिश नहीं होने से डैमों में भी पानी नहीं है.

हसे मेन सनहर से पटवन कैसे होगा. मुंगेर जिले के संग्रामपुर प्रखंड के झिकुली , मकनपुर, झिट्टी होते सुपौर जमुआ तक जाने वाले नहर इतनी जर्जर हो गयी है कि अब इससे पटवन नहीं हो रहा है. संग्रामपुर के पूर्व जिला परिषद सदस्य राधेश्याम रजक सहित झिट्टी के किसान, रामविलास पाठक, उमाशंकर सिंह, अजय सिंह आदि बताते हैं कि नहर सिर्फ नाम का है इससे किसानों को कोई लाभ नहीं है. मरम्मत के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जाती है. इससे धान की खेती भगवान भरोसे है.

बिजली रहती नहीं, डीजल महंगाबारिश नहीं होने से खासकर धान उत्पादक किसान परेशान हैं. किसानों का कहना है कि बिजली रहती नहीं है और डीजल इतना महंगा है कि उसके जरिए पटवन कर धान की खेती नहीं हो सकती. डीजल अनुदान सिर्फ सरकारी झुनझुना है. कृषि विकास पर सरकार जितना भी खर्च कर ले जब तक सिंचाई सुविधा दुरुस्त नहीं होगी तब तक कुछ नहीं होगा. नहरों को दुरुस्त करना होगा.

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