भागलपुर: सदर अस्पताल को सौ बेड का दर्जा कागज पर तो मिल गया है,लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है. ऐसी बात नहीं है कि यहां की समस्याओं से स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी चौबे या वरीय अधिकारियों को अवगत नहीं कराया गया है.
यहां की हर जानकारी अधिकारी व मंत्री दोनों को हैं बावजूद इसके अस्पताल पूरी तरह से सुसज्जित नहीं हो पाया है. अस्पताल की बेहतरी में सबसे बड़ा रोड़ा है अतिक्रमण है. अधिकारियों के अनुसार जब तक अतिक्रमण नहीं हटेगा यहां कोई नया भवन नहीं बनाया जा सकता है.
अतिक्रमण विकास में बाधक
अस्पताल परिसर में 1989 के बाद से ही स्थानीय लोगों व यहां के कर्मचारियों ने अतिक्रमण कर लिया. अतिक्रमण हटाने का निर्देश उच्च न्यायालय की ओर से भी कई बार दिया गया. अब तक में जितने भी सिविल सजर्न यहां आये सबों ने अतिक्रमण खाली कराने की बात कही, लेकिन किसी को इसमें सफलता नहीं मिली. अस्पताल परिसर में छात्रों का, पुलिस का, साक्षरता मिशन का कब्जा है. यहां तक कि अस्पताल परिसर में कोचिंग संस्थान तक चल रहा है.
वर्तमान सीएस डॉ यूएस चौधरी ने पद संभालते ही सबसे पहले अतिक्रमण हटाने की पहल शुरू की. अतिक्रमणकारियों के घर पर विभाग ने नोटिस चिपका कर वीडियोग्राफी भी कराया. इसके बाद पंद्रह से एक माह का समय भी दिया और कहा कि अवैध रुप से रहने वाले लोगों के घरों को बुलडोजर से तोड़ दिया जायेगा, लेकिन जेएलएनएमसीएच में कार्यरत कर्मचारियों व संगठनों के विरोध के बाद यह मामला एक बार फिर ठंडे बस्ते में चला गया.
बैठकों में सिर्फ चर्चा
रोगी कल्याण समिति की हर बैठक में अतिक्रमण खाली कराने व सदर अस्पताल को सौ बेड के मानक पर चलाने की बात उठायी गयी. हर बार सदस्यों ने सिर्फ चर्चा में ही इसे लाया. जब भी स्वास्थ्य मंत्री या वरीय अधिकारियों का दौरा भागलपुर में हुआ इस मुद्दे पर चर्चा नहीं हुई. अतिक्रमण हटाने के अभियान में भी सदस्यों ने बहुत अधिक दिलचस्पी नहीं दिखायी. अगर अधिकारी व जनप्रतिनिधि इसे गंभीरता से लेकर काम करें तो अतिक्रमण भी साफ हो जायेगा और सौ बेड के लिए भवन का भी निर्माण हो सकेगा.