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विशेष इबादत के लिए शहर के मस्जिदों में ऐतकाफ में बैठे रोजेदार
भागलपुर : रमजानुल मुबारक का 20 रोजा बुधवार को मुकम्मल हो गया. असिर की नमाज के बाद शहर की सभी मस्जिदों में एेतकाफ के लिए रोजेदार बैठ गये. जिन्होंने रमजान माह का पहला रोजा गुरुवार से रखा है, वे मंगलवार से ही मस्जिदों में एेतकाफ में बैठ गये. ईद का चांद देखने के बाद मस्जिदों […]
भागलपुर : रमजानुल मुबारक का 20 रोजा बुधवार को मुकम्मल हो गया. असिर की नमाज के बाद शहर की सभी मस्जिदों में एेतकाफ के लिए रोजेदार बैठ गये. जिन्होंने रमजान माह का पहला रोजा गुरुवार से रखा है, वे मंगलवार से ही मस्जिदों में एेतकाफ में बैठ गये. ईद का चांद देखने के बाद मस्जिदों से बाहर निकलेंगे. एेतकाफ में बैठे लोग अल्लाह की खास इबादत करते हैं.
माना जाता है कि ऐतकाफ करने वाले लोग अल्लाह के नजदीक हो जाते हैं. शहर स्थित शाहजहानी मस्जिद मौलानाचक, शाही मस्जिद खलीफाबाग, कबीरपुर जामा मस्जिद,बरहपुरा जामा मस्जिद, भीखनपुर जामा मस्जिद, तातारपुर जमा मस्जिद, मोजािहदपुर जामा मस्जिद, हुसैनपुर जामा मस्जिद, हबीबपुर, चमेलीचक, गनीचक, जब्बारचक जामा मस्जिद, चंपानगर, नरगा जामा मस्जिद सहित अन्य मस्जिदों में रोजेदार ऐतकाफ में बैठे हैं. खानकाह-ए-पीर दमड़िया के सज्जादानशीन सैयद शाह हसन मानी ने कहा कि सवाब की नियत से मस्जिद में ठहरने को ऐतकाफ कहा जाता है.
एेतकाफ में इंसान दुनियावी मशागील (आम बातचीत) यानी कारोबार आदि को छोड़ कर अल्लाह के दर मस्जिद का रुख करता है, जहां पूरी तवज्जों के साथ अल्लाह की इबादत में मशगूल रहते हैं. अल्लाह के साथ खास तालुक व कुरबत (नजदीकी) पैदा होती है. तमाम इबादतों में निराली शान लगती है. एेतकाफ की तीन किस्में है. सुन्नत, वाजिब व मुश्तेहब. रमजान के आखिर 10 दिनों में एेतकाफ के लिए 10 दिनों तक मस्जिदों में अल्लाह की इबादत के लिए रुके रहना ये सुन्नत-अल-कफाया है.
किसी मोहल्ले के मसजिद में अगर कोई एक आदमी भी एेतकाफ नहीं करता है. इस सुन्नत छोड़ने का गुनाह उस मस्जिद के इर्द-गिर्द रहने वाले लोगों पर पड़ता है. इसी को सुन्नत-अल-कफाया कहते हैं. उन्होंने बताया कि हदीस में एेतकाफ करने की बहुत फजीलत आयी है. खुद हजरत पैगंबर साहब भी रमजान के पाक माह के आखिर अशरा में हमेशा एेतकाफ किया करते थे.
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