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इको टूरिज्म के तौर पर विकसित होगा विक्रमशिला गांगेटिक डॉल्फिन सेंचुरी
गंगा की सैर. वन विभाग सैर कराने की तैयारी में जुटा, चेन्नई से मंगाया बोट गंगा के बीच में छोटे-छोटे दर्जनों टापू के नजारे मनमोहक सुल्तानगंज से सुबह छह बजे शुरू हुई यात्रा भागलपुर : विक्रमशिला गांगेटिक डाल्फिन सेंचुरी डिवीजनल फॉरेस्ट अफसर भागलपुर के बोट से हमने सुल्तानगंज से सुबह छह बजे यात्रा की शुरुआत […]
गंगा की सैर. वन विभाग सैर कराने की तैयारी में जुटा, चेन्नई से मंगाया बोट
गंगा के बीच में छोटे-छोटे दर्जनों टापू के नजारे मनमोहक
सुल्तानगंज से सुबह छह बजे शुरू हुई यात्रा
भागलपुर : विक्रमशिला गांगेटिक डाल्फिन सेंचुरी डिवीजनल फॉरेस्ट अफसर भागलपुर के बोट से हमने सुल्तानगंज से सुबह छह बजे यात्रा की शुरुआत की. हमारे साथ डिवीजनल फोरेस्ट अफसर एस सुधाकर, मंदार नेचर क्लब के संस्थापक व वेट लैंड इंटरनेशनल के स्टेट को-आर्डीनेटर अरविंद मिश्रा, जीवन विज्ञान के शिक्षक जयनंदन मंडल, वन पर्यावरण विशेषज्ञ दीपक साह, पक्षी विशेषज्ञ ज्ञानचंद ज्ञानी, निफ्ट स्टूडेंट अभिजीत कृष्णा, वन विभाग के केयरटेकर मो अख्तर, फारेस्टर अंजलि चौधरी, डाल्फिन के केयर टेकर अरुण व वाल्मीकि सहनी, बोट के ड्राइवर दिलीप और केयर टेकर वशिष्ट मौजूद थे.
इन घाट व गांवों से होकर गुजरी बोट. सुल्तानगंज से शुरू हुई यात्रा अगुवानी पुल, राका घाट, दुधैला, साहाबाद दियरा,अमरी विशनपुर, बैरिया, हाइ लेवल, सबौर होते हुए बरारी आकर खत्म हुई. साहाबाद में गंगा के तट पर ही बैठ कर ही हम सबने लंच किया. कभी एक किलोमीटर तो कभी 11 किमी घंटे की रफ्तार से बोट चल रही थी.
सुल्तानगंज से निर्मल गंगा..भागलपुर आते ही गंदा. सुल्तानगंज से स्वच्छ-निर्मल गंगा, भागलपुर आते ही हो जाता हैं गंदा.गंदगी ऐसी कि सांस लेना भी दूभर. बरारी से सबौर तक शहर का सारा गंदा पानी और कचरा पावन गंगा में उड़ेल दिया जाता है. एक ओर जीवन की अंतिम यात्रा तय करने के बाद यहां लोग गंगा में समाहित हो जाते हैं तो तट के दूसरी ओर मृत जानवरों को फेंक दिया जाता हैं. सुल्तानगंज से शीतलता और निर्मलता का एहसास दिलाने वाली गंगा यहां आकर रंग बदल लेती है. बरारी से लेकर सबौर तक स्वच्छता नजर नहीं आती.
पक्षियों के करलव, डॉल्फिन की अठखेलियां. गंगा के तट पक्षियों के करलव और डॉल्फिन की अठखेलियों से इठला रही थी. तिब्बत, साइबेरिया, चीन, लद्दाख के विदेशी मेहमान गडवाल, पिंटेल, लालसर, ब्राह्मणी डक, ग्रीन सेंट, रेड सेंट, स्टिन्ट, व्हाइट आइ पोचार्ट, रिंग फ्लोवर, कर्ल ल्यू, लार्क की सुंदरता देखते ही बन रहा था. सैकड़ों के झुंड में पक्षियां चहचहाती दिखी. हमने अपनी आंखों से 23 डॉल्फिन को उछलते-कूदते देखा.
एक दर्जन गरुड़ भी आये नजर
गंगा के तट पर एक दर्जन गरुड़ भी नजर आये. पंखे पर सफेद पट्टी. गले में घेघा. कंधे पर गुलाबी फूल. दुर्लभ पक्षी दूर से ही नजर आ रहा था. बड़ा गरुड़ के अलावा छोटा गरुड़, लगलग, घोंघिल, जांघिल, किंगफिशर, काइट, व्हाइट व ब्लैक एबिस समेत आस्प्रे और ब्लैक विंग काइट जैसे शिकारी पक्षी भी थे.
कुछ विदेशी मेहमान नहीं आये नजर
कुछ विदेशी मेहमान नजर नहीं आये. मसलन ब्लैक स्टोर, कामन क्रेन, बार हेडेड गूज, ग्रे लेग गूज और टर्न इस बार नहीं दिखा. हालांकि, रेड सैंक, कर्ल ल्यू, स्टिटं, सैक समेत कई विदेशी पक्षियों की संख्या पहले से इस बार अधिक दिखी.
विक्रमशिला गांगेटिक डॉल्फिन सेंचुरी को इको टूरिज्म के तौर पर विकसित किया जायेगा. सुल्तानगंज से कहलगांव तक 50 किमी की रैकी की जा रही है. टूरिस्ट बोट आ चुका है. फॉरेस्ट डिपार्टमेंट इसे चलायेगा. आज हम इसी सिलसिले में आये हैं. रीवर पेट्रोलिंग भी हो रही है. आइलैंड खूबसूरत हैं. इको टूरिज्म में यह मददगार साबित होगा.
एस सुधाकर, डिवीजनल फॉरेस्ट अफसर
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