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कमैलो पैसा डूबी गेलै, अब हमरो बेटिया रो बिहा केना होतै

भागलपुर : सृजन फर्जीवाड़ा. िदन फिरने की आस में गरीब महिलाओं ने पेट काट कर जमा की थी रािश, अब सता रही चिंता करोड़ों के सृजन घोटाले की सीबीआइ जांच चल रही है. घोटाले से जुड़े कई जेल में हैं, तो कई अब भी बाहर हैं. करोड़ों-अरबों डकार कर बाहर घूमनेवाले जेल जाएं या न […]

भागलपुर : सृजन फर्जीवाड़ा. िदन फिरने की आस में गरीब महिलाओं ने पेट काट कर जमा की थी रािश, अब सता रही चिंता

करोड़ों के सृजन घोटाले की सीबीआइ जांच चल रही है. घोटाले से जुड़े कई जेल में हैं, तो कई अब भी बाहर हैं. करोड़ों-अरबों डकार कर बाहर घूमनेवाले जेल जाएं या न जाएं मगर, हकीकत यह है कि जिन गांव-घर की महिलाओं ने अपना भविष्य संवारने के लिए सृजन बैंक में अपना पैसा जमा किया है, उसमें से 90 प्रतिशत को यह चिंता सता रही है
कि अब उनका पैसा कौन लौटायेगा? नौकरी पेशा लोगों का काम तो किसी तरह से चल जायेगा, मगर जिसने पेट काट कर पैसा जमा किया है, उनका गुजारा कैसे होगा? जमा पैसा अगर वापस नहीं हुआ, तो रोजगार कैसे चलेगा? खेती-बाड़ी अभी भी महाजन के कर्ज से ही करनी पड़ेगी. दो वक्त की रोटी के लाले पड़े रहेंगे? सृजन से लोन मिलेगा, तो खेती में लगायेंगे, बिटिया की शादी करेंगे, बेटे को रोजगार मिलेगा, इन सारी उम्मीदों के साथ लोगों ने पाई-पाई जोड़ कर पैसा जमा किया.
लेकिन उन्हें लोन तो मिला नहीं, जमा पूंजी भी डूब गयी है. यह व्यथा है सबौर स्थित चंधेरी पंचायत के मिर्जापुर के लोगों की. गांव के 500 घरों का 150 खाता, तो पूरी पंचायत से 500 खाते सृजन में खुले थे और प्रत्येक खाते में हर माह 200 रुपये जमा हो रहा था. अधिकतर ग्रामीण मजदूर और किसान हैं. उन्हें अब पैसा दिलाने वालों की तलाश है.
मिर्जापुर से लौटकर ब्रजेश
तीन सालो सऽ हर महीना 200 टका खाता में हय सोची कऽ जमा करै छलियै कि एक दिना लोन मिलतिहै तऽ खेतीबाड़ी में लगैतिहो, कमाई होतिहै आरू महाजनो सऽ करजा नाय लैलऽ पड़तिये. लोन तऽ मिललै नाय, आपनो जमा करलो पैसा डूबी गेलै. हमरो अाबै की होतै. दु-तीन महीना सऽ केना घर चली रहलो छै इ त हम्मी जानै छिहै. बेटियो रऽ केना बिहा होतै, है
सोची कऽ तबियत अखनिये सऽ खराब रहे लागलै. यह कहते-कहते मिरजापुर(सबौर) की उर्मीला देवी की आंखें भर आयी. उन्होंने बताया कि अब दिन में एक टाइम ही चूल्हा जलता है. भरपेट भोजन भी नहीं मिलने लगा है. एक बिटिया शादी के लायक हो गयी है और अभी से चिंतित हैं. सृजन घोटाले में अपनी कमाई गंवानेवाली उर्मिला अकेली पीड़ित नहीं है. इनकी तरह गांव के डेढ़ सौ परिवार की जिंदगी बेजान सी हो गयी है. सृजन घोटाले के बाद से रोजगार करने का सपना तो टूटा ही है, खेती कर पेट पालना भी अब मुमकिन नहीं रह गया है. यह ऐसे घर-परिवार हैं, जिनकी जिंदगी सात साल पीछे चली गयी है.
खेतों में मजदूरी करने के बारे में सोचा नहीं था : गांव की शीला देवी बताती हैं कि सात साल से पैसा जमा कर रही थी. समय पूरा हो गया था. लोन के लिए भी तय तमन्ना हो गया था. अपना पैसा तो मिलता ही, साथ में लोन भी मिलता. इस पैसे से गाय खरीद कर दूध की कमाई से घर-परिवार चलाती. दूसरे के खेत में रोपनी नहीं करनी पड़ती. अब तो सारा पैसा डूब गया और फिर दूसरों के खेतों में मजदूरी करनी पड़ रही है.
कैसे कटेगा बुढ़ापा : गांव की झबरी देवी को कोई संतान नहीं है. अपने बुढ़ापे के लिए एक-एक पाई जोड़ कर सृजन में जमा कर रही थी. वह बताती हैं कि तीन साल जमा करने के बाद अपनी कमाई गंवा दी है. बिना पैसों के बुढ़ापा कैसे कटेगा, यह सोच कर घबरा जाती हूं. इसके लिए वह अपने पति से रोज डांट तक सुन रही है.
पैसा भी नहीं, पासबुक भी नहीं : सृजन घोटाले का घड़ा फूटने के बाद से संजो देवी परेशान रहने लगी हैं. वह इस बात से परेशान हैं कि उनके पास कोई साक्ष्य नहीं है. सात साल तक पैसा जमा करती रही और उन्हें पासबुक तक नहीं मिली थी.
लालू यादव से मिले भरोसे पर महिलाओं को उम्मीद
जमा-पूंजी गंवानेवाली महिलाओं ने बताया कि लालू प्रसाद यादव जब भागलपुर आये थे, तो सभी उनसे मिले थे. उन्होंने भरोसा दिलाया था कि पैसा मिलेगा. इस कारण अभी तक शासन-प्रशासन के दरवाजे पर नहीं गये हैं. लालू प्रसाद से मिले भरोसे पर पैसा मिलने की उम्मीद है.
लोन मिलने की उम्मीद पर करती रही सृजन में पैसा जमा, पैसा मिलने का आया समय, तो घोटाले में डूब गयी जमा पूंजी
पैसा मिलने का समय आया तो उजागर हुआ घोटाला
राजो देवी लोन मिलने की उम्मीद में तीन साल तक पैसा जमा करती रही. लोन के लिए जब समय आया, तो घोटाला उजागर हो गया और अब ऑटो खरीद कर जीवन निवर्हन करने की उम्मीद टूट गयी है. मंजू देवी खुद को खुशनसीब समझती हैं कि बेटी का ब्याह पहले ही कर लिया है. मगर इस बात से दुखी हैं कि जमा पूंजी डूबने से बेटे को रोजगार नहीं दे सकी. शांति देवी, मीना देवी व रूबी देवी ने एक साथ खाता खुलवाया था और पैसे जमा कर रही थी. सात साल पूरा हो गया था और अब पैसा लौटना था. मगर वे अब यह मान चुकी हैं कि पैसा डूब गया है. बिंदु देवी को इस बात का मलाल है कि उनके कहने पर ही गांव की सभी महिलाओं सृजन से जुड़ी थी. वह कहती हैं कि उत्प्रेरक होने के नाते हमारा भी भला नहीं हो सका. सृजन से फूटी कौड़ी तक नहीं मिली है.

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