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टीबी के आंकड़े जुटाने में ही खांस रहा विभाग

भागलपुर: टीबी की बीमारी को खत्म करना तो दूर, स्वास्थ्य विभाग इसके मरीजों के सही आंकड़े भी नहीं जुटा पा रहा है. रिवाइज्ड नेशनल ट्यूबर क्यूलॉसिस कंट्रोल प्रोग्राम (आरएनटीसीपी) के तहत टीबी मरीजों का आंकड़ा जुटाने के लिए शुरू की गयी निश्चय योजना के तहत प्राइवेट अस्पतालों द्वारा रजिस्ट्रेशन नहीं कराने से ऐसी परेशानी आ […]

भागलपुर: टीबी की बीमारी को खत्म करना तो दूर, स्वास्थ्य विभाग इसके मरीजों के सही आंकड़े भी नहीं जुटा पा रहा है. रिवाइज्ड नेशनल ट्यूबर क्यूलॉसिस कंट्रोल प्रोग्राम (आरएनटीसीपी) के तहत टीबी मरीजों का आंकड़ा जुटाने के लिए शुरू की गयी निश्चय योजना के तहत प्राइवेट अस्पतालों द्वारा रजिस्ट्रेशन नहीं कराने से ऐसी परेशानी आ रही है.

अब तक के अांकड़ों के अनुसार बिहार में पिछले एक साल में 90 हजार मरीजों की पहचान की गयी. इनमें अकेले पटना से 26 हजार मरीज मिले हैं. यह संख्या पटना के कुल 700 अस्पतालों में महज उन 180 अस्पतालों में इलाज कराने वाले टीबी मरीजों की है, जहां खुद स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों ने जा कर पता लगाया. एक भी प्राइवेट अस्पताल ने रजिस्ट्रेशन नहीं कराया है.

आंकड़े जुटाना क्यों जरूरी
टीबी मरीज के बीच में ही दवा छोड़ देने से एमडीआर टीबी (मल्टीड्रग रेसिस्टेंट ट्यूबर क्यूलॉसिस) का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए प्राइवेट अस्पतालों से भी इलाज करानेवाले मरीजों का आंकड़ा जुटाया जा रहा है. आंकड़ा एकत्र करने और मरीजों की देखभाल करने के लिए कर्मचारी लगाये गये हैं. यह कर्मचारी प्राइवेट डॉक्टरों के पास जाकर मरीजों की पूरी जानकारी और दवा छोड़नेवालों की पहचान करते हैं.
जानकारों की मानें तो
टीबी मरीजों का सही आंकड़ा न मिलने से योजना
बनाने में कठिनाई हो रही है. बीच में इलाज छोड़ने वालों
की निगरानी भी नहीं हो पा रही है. स्वास्थ्य विभाग की
मानें, तो सभी अधिकारियों को पत्र भेज कर
प्राइवेट अस्पताल को जोड़ने के निर्देश
दिये गये हैं.
पंजीकरण जरूरी, इलाज मुफ्त
प्राइवेट हॉस्पिटल में इलाज करा रहे टीबी के मरीजों की तलाश जारी है. निश्चय प्रोग्राम के तहत टीबी मरीजों का इलाज करनेवाले प्राइवेट अस्पतालों को पंजीकरण कराना चाहिए.
डॉ डीपी सिंह, प्रदेश अध्यक्ष, आइएमए
टीबी अब लाइलाज बीमारी नहीं है. अगर दो सप्ताह से अधिक खांसी हो, तो अस्पताल में जाकर टीबी की जांच करवा ले. सरकारी अस्पतालों में टीबी का इलाज पूरी तरह से मुफ्त है.
डॉ मृत्युंजय चौधरी, अध्यक्ष, आइएमए

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