सबौर: व्यवस्था से इन्हें सख्त नाराजगी है. पढ़े-लिखे लोग भी गिने-चुने हैं, पर इनकी जागरूकता ऐसी कि अपनी सबसे बड़ी ताकत मतदान को समझते हैं. बाबूपुर के सरस्वती स्थान के समीप रहनेवाली 45 साल की चानो देवी कहती हैं-भैया की कहभौं, सरकारें कुछु देलखौं ते नै. जारनो पर आफत, लेकिन वोट देबै भैया, तभिये ने कोय कुछु करतै हमरा सब लेली.
कट जायेगा गांव, तो कहां जायेंगे
सरस्वती स्थान से थोड़ी ही दूरी पर एक पेड़ से सटे बजरंगबली का ध्वजा गड़ा था, जहां दो बुजुर्ग पेड़ की छांव में बैठे थे. आपस में बातचीत कर रहे थे 70 वर्षीय चेतनारायण मंडल और 65 वर्षीय अजरुन मंडल. कटाव के बारे में पूछते ही बुजुर्ग चेतनारायण मंडल सवाल को लपकते हुए कहते हैं-तब 25 साल के थे. गंगा इस गांव से डेढ़ कोस दूर थी. वह उंगली की दिशा मोड़ते हुए दिखाते हैं-उ जे आमù रù गाछ देखी रहलो छो, वाहीं छै गंगा. आज यह दूरी महज 500 मीटर रह गयी है. उन्हें इस बात की आशंका है कि दो-तीन साल में गंगा उनके गांव को खुद में समा लेगी. उन्हें इस बात की चिंता भी है कि गांव कट जायेगा, तो बाल-बच्चे को लेकर कहां जायेंगे.
नहीं तो मारी जायेगी मजदूरी
बाबूपुर के अजरुन मंडल कहते हैं कि साल तो याद नहीं, पर कई साल पहले उनके चाचा कारु मंडल का घर और उनकी सारी जमीन-जगह काट ले गयी थी गंगा. तबसे चाचा उस पार में पचासी गांव में परिवार के साथ जाकर बस गये. उनकी गोद में खेला करते थे. उनकी सब पर निगरानी रहती थी. पर अब अपने चचेरे भाइयों से चाह कर भी मिलने नहीं जा पाते. कैसे जायेंगे, एक दिन की मजदूरी मारी जायेगी.