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जेएलएनएमसीएच: मरीजों की बढ़ती संख्या से तंत्र व संसाधन बेहाल, इमरजेंसी में बेड रखना भी मुश्किल

भागलपुर: बढ़ते मरीजों की संख्या के आगे मायागंज प्रशासन का संसाधन व तंत्र बुरी तरह से पस्त नजर आ रहा है. जेएलएनएमसीएच स्थित 40 बेड वाले इमरजेंसी वार्ड में अब तो एक बेड तक रखने की जगह नहीं बची है. जिससे यहां पर रखी जाने वाली मशीनें हॉस्पिटल के किसी कोने में पड़ी-पड़ी धूल फांक […]

भागलपुर: बढ़ते मरीजों की संख्या के आगे मायागंज प्रशासन का संसाधन व तंत्र बुरी तरह से पस्त नजर आ रहा है. जेएलएनएमसीएच स्थित 40 बेड वाले इमरजेंसी वार्ड में अब तो एक बेड तक रखने की जगह नहीं बची है. जिससे यहां पर रखी जाने वाली मशीनें हॉस्पिटल के किसी कोने में पड़ी-पड़ी धूल फांक रही है. इसका परिणाम यह हो रहा है कि एक तरफ जहां यहां भरती मरीजों को जरूरी जांच से वंचित होना पड़ रहा है, वहीं यहां पर तैनात चिकित्सक एवं नर्सों की हालत ड्यूटी करते-करते पस्त होने लगी है.
जगह की कमी, मशीनों को नहीं रखा जा रहा इमरजेंसी में
एबीजी मशीन : एक्सीडेंट में घायल हुए मरीजों के खून में ऑक्सीजन मापने वाली इस मशीन की खरीद करीब तीन से चार साल पहले की गयी थी. एक तो ये मशीन आज की तारीख में इमरजेंसी में जगह न होने के कारण नहीं है. दूसरे दो एबीजी मशीन आइसीयू में रखी है तो यह भी वर्तमान में काम नहीं कर रही है. जबकि कम से कम एक एबीजी मशीन तो इमरजेंसी वार्ड में होना ही चाहिए. इसका परिणाम यह हो रहा कि एक्सीडेंट में घायल मरीजों के खून में ऑक्सीजन का माप नहीं हो पा रहा है. मजबूरी में गंभीर रूप से घायल मरीजों को सिलीगुड़ी या फिर पटना रेफर करना पड़ रहा है.
वेन व्यूअर मशीन : जब मरीजों की नब्ज (नस) नहीं मिलती है, तब इस मशीन का इस्तेमाल किया जाता है. ताकि मरीजों को स्लाइन से लेकर इंग्जेक्शन, कैथेटर आदि को लगाकर उसकी हालत को ठीक किया जा सके. करीब एक दर्जन वेन व्यूअर मशीन की खरीद करीब डेढ़ साल पहले हुई थी. इसे मेडिसिन, सर्जरी समेत करीब हर विभाग में नसों की जांच के लिए रखा गया. लेकिन एक बार इस मशीन की नस जो गुम हुई, फिर कभी भी काम नहीं किया. अगर ये इमरजेंसी में रखा जाता है तो गंभीर रूप से बीमार मरीजों के इलाज के लिए रामबाण साबित होता.
इंफ्यूजन पंप : इस पंप का इस्तेमाल मरीजों को नसों में दवा देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. ढाई साल पहले करीब डेढ़ दर्जन इंफ्यूजन पंप की खरीद कर उसे आइसीयू में रखा गया. शुरूआत में इसका इस्तेमाल हुआ लेकिन एक बार बिगड़ने पर यह कबाड़ की शोभा बढ़ा रहा है. ये भी गंभीर रूप से बीमार मरीजों की जान बचाने में मुफीद है.
काॅर्डियक मानीटर : कॉर्डियक मानीटर का इस्तेमाल मेडिसिन व एक्सीडेंट में घायल मरीजों के इलाज के लिए जरूरी है. इससे पल्स रेट को मापने एवं इसकी मानीटरिंग के लिए बहुत लाभदायक है. यह हर औसत दर्जे के हर ट्रामा सेंटर में होता है. कम से कम चार कॉर्डियक मानीटर इमरजेंसी वार्ड में होना चाहिए. लेकिन जगह न होने के कारण इस सेवा से भी इमरजेंसी के मरीज वंचित हैं.
सॅक्शन मशीन : इसका इस्तेमाल छाती में भरे पानी को निकालने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. ये भी मायागंज हॉस्पिटल में उपलब्ध है. मरीजों की संख्या के हिसाब से इमरजेंसी में कम से कम आधा दर्जन सॅक्शन मशीन रहना ही चाहिए. लेकिन जगह न होने के कारण ये मशीन भी इमरजेंसी से गायब है. इसके अलावा सेंट्रल पाइपलाइन फाॅर सॅक्शन होना चाहिए, जो कि आज की तारीख में इमरजेंसी से गायब है.

100 बेड की इमरजेंसी हो, तो बनेगी बात : डॉ हेमशंकर शर्मा
जेएलएनएमसीएच के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ हेमशंकर शर्मा बताते हैं कि मायागंज हॉस्पिटल के इमरजेंसी में जिस तरह से हर रोज 70-80 मरीज भरती हो रहे हैं, उस लिहाज से कम से कम यहां पर 100 बेड की इमरजेंसी बनें तो मरीजों का बेहतर इलाज हो सकेगा. इसके तहत इमरजेंसी के मेडिसिन में 50 बेड, सर्जरी में 30 व पीडियाट्रिक्स वार्ड में 20 बेड होना ही चाहिए.
विभाग को भेजा है प्रस्ताव
विभाग को भेजा है प्रस्ताव
मरीजों का लोड बढ़ने के कारण ही इमरजेंसी में भरती मरीजों के बेहतर इलाज में कुछ परेशानी आ रही है. फिर भी हमारा प्रयास रहता है कि मरीजों को बेहतर एवं पूरा इलाज मिले. 100 बेड की इमरजेंसी वार्ड बनाने का प्रस्ताव स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों को भेज दिया गया है. वहां से हरी झंडी मिलने के बाद ही इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाया जा सकता है.
डॉ आरसी मंडल, अधीक्षक जेएलएनएमसीएच भागलपुर
बेड 40, हर रोज भरती हो रहे 75 से 80 मरीज
इमरजेंसी स्थित मेडिसिन, सर्जरी व पीडियाट्रिक्स वार्ड की क्षमता 40 बेड की है. लेकिन मरीजों के लोड बढ़ने के कारण दो बेडों के बीच की दूरी को घटाकर एवं जरूरी मशीनों को हटाकर 43 बेड कर दिया गया है. लेकिन हर रोज इन तीनों वार्ड में औसतन 75 से 80 मरीज भरती हो रहे हैं. इसका परिणाम यह हो रहा है कि यहां पर जांच के लिए जरूरी मशीनें तक नहीं रखा जा पा रहा है तो करीब 35 से 40 मरीजों का इलाज जमीन पर गद्दा बिछाकर करना पड़ रहा है. जमीन पर लेटे मरीजों को तो स्लाइन स्टैंड तक के लिए इंतजार करना पड़ता है.

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