बेगूसराय/नीमाचांदपुरा : छठ पर्व के संपन्न होने के बाद सैकड़ों परदेसी वापस लौटने लगे हैं. गुरुवार को वापस लौटने के लिए जैसे ही एक परदेसी ट्रेन पर चढ़े उनकी उदास हो गयी. पत्नी को उदास देख देख पति भी उदास हो गया. परंतु, करता क्या पापी पेट का सवाल है. ज्ञात हो कि ऐसी दास्तां यहां हर रोज देखने को मिल रही है.
कोई पत्नी को, तो कोई मां-बाप समेत परिजनों से बिछुड़ कर परदेस पलायन करने को मजबूर होते रहते हैं. ऐसे में सरकार की महत्वाकांक्षी महात्मा गांधी रोजगार गारंटी स्कीम द्वारा गरीब-मजदूरों को गांवों में ही कम से कम 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराने की तमाम घोषणाएं हवा-हवाई साबित हो रही है. इधर, रोजी-रोटी की तलाश में कोलकाता रहे गढ़पुरा प्रखंड स्थित कुम्हारसों निवासी रामजी पंडित, डंडारी प्रखंड के बांक गांव निवासी पप्पु सहनी, रंजीत सहनी,
हरियाणा जा रहे सदर प्रखंड क्षेत्र के जिनेदपुर गांव निवासी कारी पासवान, मंझौल निवासी रामविलास कुमार आदि ने बताया कि घर में मां-बाप बूढ़े हैं. पत्नी के जिम्मे घर छोड़ कर परदेस जाने को विवश हूं. इन लोगों ने कहा कि यदि गांवों में ही मनरेगा के तहत रोजगार मिलता तो परिवार के संग घर में रहते. उक्त लोगों ने साफ कहा कि सरकार चाहे जितनी भी घोषणाएं कर लें, परंतु गांवों में बिचौलिये हावी रहने से उनकी घोषणाएं धरातल से कोसों दूर ही रह जाती है. मजदूरों ने कहा कि छठ पर्व में घर आये थे. परिवार के संग रहे अब वापस जा रहे हैं. जहां रास वहीं वास पर. इस संबंध में रेलवे के एक अधिकारी ने कहा कि पर्व खत्म होने के बाद मजदूरों की भीड़ से किसी भी ट्रेनों में तिल रखने की जगह नहीं मिल रही है.