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यहां दी जाती है भैंसे की बलि

बखरी (नगर) . जादू-टोने की नगरी बखरी में भगवती की आराधना का विशेष महत्व है. यहां सच्चे मन से मन्नत मांगनेवालों की हरेक मुराद पूर्ण होती है. यही वजह है कि आदि शक्ति पीठ पुरानी दुर्गा मंदिर मुगल काल से ही अटूट आस्था का केंद्र बना हुआ है. अति प्राचीन, गरिमायमी, समृद्धशाली एवं फलदायिनी इस […]

बखरी (नगर) . जादू-टोने की नगरी बखरी में भगवती की आराधना का विशेष महत्व है. यहां सच्चे मन से मन्नत मांगनेवालों की हरेक मुराद पूर्ण होती है. यही वजह है कि आदि शक्ति पीठ पुरानी दुर्गा मंदिर मुगल काल से ही अटूट आस्था का केंद्र बना हुआ है. अति प्राचीन, गरिमायमी, समृद्धशाली एवं फलदायिनी इस शक्तिपीठ की प्रसिद्धि बिहार के अलावा अन्य राज्यों में भी है. आश्विन में लगनेवाले तीन दिवसीय मेले में भक्त पहुंच कर सिद्ध पीठ में अपनी साधना को पूर्ण करते हैं. भगवती यहां साक्षात मौजूद हैं. नवमी को हजारों छागर के अलावा भैंसे की बलि माता को प्रसन्न करने के लिए दी जाती है. दसवीं के दिन नीलकंठ को उड़ा कर शोभायात्र निकाली जाती है. यहां ऐसी धारणा है कि माता के दरबार में सच्चे मन से झोली फैलानेवाले कभी खाली हाथ नहीं लौटते. क्षेत्र के लोग नवरात्र आरंभ के साथ ही परंपरा के अनुसार भगवती की आराधना करते हैं. वर्तमान में भी परमार वंशजों द्वारा इस मंदिर की विधि व्यवस्था को संचालित किया जाता है. परमार वंशीय अठखुट्टी के अध्यक्ष दिग्विजय सिंह सहित कार्यसमिति के अन्य सदस्य प्रसिद्ध शक्तिपीठ की विधि व्यवस्था एवं मेले की व्यापक तैयारी में जुटे हैं. इन लोगों ने बताया कि माता की परंपरागत तरीके से पूजा हेतु लोगों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए इस बार विशेष व्यवस्था की जा रही है. पंडितों द्वारा किये जा रहे वैदिक मंत्रोच्चार से संपूर्ण माहौल भक्तिमय बना हुआ है.

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