– विपिन कुमार मिश्र –
बलिया में नौका दुर्घटना के बाद मचा कोहराम
बेगूसराय (नगर) : बलिया में मंगलवार को भीषण नाव दुर्घटना ने सरकारी व्यवस्था की पोलखोल दी है. इस बड़े हादसे के बादविभिन्न क्षेत्रों में लोग जहां सहमे हुए हैं, वहीं शासन व प्रशासन के लोगों की भी नींद खुल गयी है.
बलिया के पहाड़पुर में जिस तरह की नौका दुर्घटना हुई, अगर पूर्व में प्रशासन द्वारा सावधानी बरती गयी होती, तो इस तरह की घटना को रोका जा सकता था. लेकिन, दुखद बात यह है कि जिले के आधा दर्जन से अधिक प्रखंडों की एक लाख से अधिक की आवादी बाढ़ की चपेट में है, लेकिन अभी तक सरकारी व्यवस्था बाढ़पीड़ितों तक नहीं पहुंच पायी है. इसका स्पष्ट नजारा नौका दुर्घटना के बाद बलिया में देखने को मिला.
दो घंटे के बाद पहुंचा प्रशासन
बताया जाता है कि इस भीषण हादसे के लगभग दो घंटे बाद स्थानीय प्रशासन घटनास्थल पर पहुंच पाया, जिससे लोगों का आक्रोश चरम पर पहुंच गया था. इसी का नतीजा हुआ कि घटनास्थल पर पहुंचीं आपदा प्रबंधन मंत्री रेणु कुमारी कुशवाहा और अन्य नेताओं को आम लोगों के आक्रोश का शिकार ही नहीं होना पड़ा, वरन उन्हें घटनास्थल से लौटना पड़ा.
स्थानीय लोगों का कहना है कि गंगा का पानी पिछले कई दिनों से क्षेत्र में कहर मचा रहा है, लेकिन लोगों की मांग के बाद भी बाढ़ प्रभावित इलाकों में नावों की समुचित व्यवस्था नहीं करायी जा सकी है. इसी का नतीजा है कि लोग अपने क्षेत्र को छोड़ कर पलायन करने लगे हैं. बताया जाता है कि मंगलवार को भी पहाड़पुर में लोग बाढ़ के पानी के बढ़ते दबाव के कारण घर छोड़ कर दूसरी जगहों पर शरण लेने के लिए जा रहे थे. लेकिन, नाव की ठीक व्यवस्था नहीं होने और पानी की तेज धारा के चलते नाव पलट गयी व कई लोग गंगा के गर्भ में समा गये.
कुशल नाविकों का है अभाव
नाव दुर्घटना का सबसे प्रमुख कारण है कि आनेवाले आपदा को देखते हुए जिला प्रशासन द्वारा किसी तरह से नाव की व्यवस्था तो करा दी जाती है, लेकिन उस पर कुशल नाविक है कि नहीं, इसकी तहकीकात नहीं कर पाती है. नतीजा होता है कि अप्रशिक्षित नाविकों के चलते नाव नदी की तेज धारा में पलट जाती है.
जिला प्रशासन अगर नाव उपलब्ध कराने के समय नाविक की सही जांच करे, तो इस घटना पर बहुत हद तक विराम लगाया जा सकता है. दूसरा प्रमुख कारण है कि नाव पर क्षमता से अधिक लोगों को सवार कर लिया जाता है, जिसके चलते नदी की तेज धारा में नाव असंतुलित हो जाती है और लोगों की जान खतरे में हमेशा बनी रहती है.
जिला प्रशासन के अधीन जिन घाटों पर नावों को चलाया जाता है वहां के ठेकेदार द्वारा अधिक से अधिक पैसे कमाने की चाहत में लोगों की जान के साथ खिलवाड़ कर बैठते हैं. जिले के मटिहानी–शाम्हों घाट पर भी तमाम नियम व कानून को ताक पर रख कर नावों को चलाया जाता है. कई बार शाम्हों गंगा घाट के बीच धार में नाव डूबने की स्थिति में आ जाती है.
टेंडर तक ही समझते हैं जिम्मेवारी
ताज्जुब की बात यह है कि प्रत्येक वर्ष नाव घाटों का टेंडर होता है, लेकिन टेंडर के बाद जिला प्रशासन के लोग कार्य की इतिश्री मान लेते हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर समय–समय पर जिला प्रशासन के अधीनस्थ कर्मचार इन नाव घाटों का निरीक्षण करते तो नाव चलानेवाले लोगों में दहशत होती और नाव को लोग दुरुस्त बना कर रखते. लेकिन, ऐसा नहीं होता है.
नाव घाट में ठेका लेने वाले लोग जजर्र नाव व जजर्र हालत में मोटर रख कर उससे नाव चलवाते हैं. इसका नतीजा होता है कि नाव खुलने के बाद बीच गंगा में जाकर मशीन खराबी के कारण बंद हो जाता है और लोगों की जान खतरे में आ जाती है. इस तरह की घटना लगातार विभिन्न क्षेत्रों में घटती रही है.
बलिया की घटना के बाद लोग अपनों को खोजने के लिए घटनास्थल की ओर दौड़ पड़े. हालांकि, चारों तरफ से बाढ़ का पानी घिरा होने के कारण लोगों को घटनास्थल पर पहुंचने में परेशानी हो रही थी. इसके बाद भी घटनास्थल पर मेले जैसा दृश्य पूरे दिन बना रहा. पीड़ित परिवारों के क्रंदन से पूरा वातावरण गमगीन हो गया.