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दूसरे दिन भी नहीं मिला बच्चे का शव

गुरुवार की सुबह नहाने के क्रम में सत्यम गंगा में डूब गया था दूसरे दिन एसडीआरएफ की टीम और दो गोताखोर शव की तलाश में लगे रहे बरौनी (नगर) : 36 घंटा बीत जाने के बाद भी बच्चे का शव बरामद नहीं हो सका. जैसे-जैसे दिन ढलता गया एसडीआरएफ के जवानों के साथ परिजनों के […]

गुरुवार की सुबह नहाने के क्रम में सत्यम गंगा में डूब गया था

दूसरे दिन एसडीआरएफ की टीम और दो गोताखोर शव की तलाश में लगे रहे
बरौनी (नगर) : 36 घंटा बीत जाने के बाद भी बच्चे का शव बरामद नहीं हो सका. जैसे-जैसे दिन ढलता गया एसडीआरएफ के जवानों के साथ परिजनों के चेहरे पर भी नाउम्मीद होने का भाव बढ़ता गया. विदित हो कि गुरुवार की सुबह साढ़े आठ बजे बीहट नगर परिषद के वार्ड 19 स्थित मथुरापुर टोला निवासी संजय पाठक का 15 वर्षीय पुत्र सत्यम कुमार की मौत नहाने के क्रम में गंगा की तेज धारा में बह जाने के कारण हो गयी. बरौनी प्रखंड के प्रशासनिक अधिकारियों की तत्परता के कारण जिले से एसडीआरएफ की टीम सिमरिया गंगा घाट पहुंची. एसडीआरएफ द्वारा करीब तीन घंटे तक बोट की सहायता से शव को खोजा गया, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी.
दूसरे दिन भी चला सर्च अभियान :
शुक्रवार की सुबह मृत बालक के परिजन किसी उम्मीद की तलाश में अहले सुबह से ही सिमरिया गंगा घाट पहुंच गये और घाट-घाट जाकर खोजने का हरसंभव प्रयास किया. लेकिन निराशा ही हाथ लगी. फिर बरौनी सीओ अजय राज के साथ एसडीआरएफ की टीम और उसके साथ दो गोताखोर रविशंकर झा और चंदेश्वर मांझी भी सिमरिया घाट पहुंचे.पूरे दिन चले सर्च अभियान के दौरान गोताखोरों और एसडीआरएफ के जवानों के प्रयास के बावजूद शव को बरामद नहीं किया जा सका. यहां तक कि इंजन चलित नाव को मटिहानी क्षेत्र के खोरमपुर होते हुए चाकघाट तक भेजा गया. लेकिन सबके हाथ खाली रहे. वहीं एसडीआरएफ की एक बोट शाम्हो होते हुए मुंगेर तथा दूसरी बोट सीधे मुंगेर की तरफ आगे बढ़ी. लेकिन समाचार भेजे जाने तक शव नहीं मिल पायी है.
दो मिनट में पहुंच जइबे मुंगेर :घटना के प्रत्यक्षदर्शी सर्वमंगला के सुरेश झा ने बताया कि नहाने के क्रम में गंगा की तेज धार को देखते हुए अपने दोस्तों से कह रहा था कि ऐसे में तो दो मिनट के अंदर मुंगेर पहुंच जइबे. यही उसके अंतिम शब्द थे.उसके बाद ही वह स्नानघाट पर बने रेलिंग से पानी में कूदा और ऐसा समाया कि घटना के 36 घंटे बाद भी उसके शव को बरामद नहीं किया जा सका है. दादा रमेश पाठक और पिता संजय पाठक के कंपकंपाते होठों से आवाज तक नहीं निकल पा रही है. दोनों बस एकटक से गंगा की ओर टकटकी लगाये बैठे रहे.

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