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फाइलों में ही सिमट रहीं योजनाएं
िवभाग व अिधकारियों की उदासीनता से मछुआरों की बढ़ी परेशानी बेगूसराय : कभी पूरे राज्य को मछली खिलाने का दावा करने वाले बेगूसराय के मछुआरे को खुद मछलियों के लाले पड़ने लगे हैं. यहां के मछुआरे भी दूसरे जिले पर आश्रित हो चुके हैं. बेगूसराय में मत्स्य पालन की अधिकांश योजनाएं संचिकाओं में दम तोड़ […]
िवभाग व अिधकारियों की उदासीनता से मछुआरों की बढ़ी परेशानी
बेगूसराय : कभी पूरे राज्य को मछली खिलाने का दावा करने वाले बेगूसराय के मछुआरे को खुद मछलियों के लाले पड़ने लगे हैं. यहां के मछुआरे भी दूसरे जिले पर आश्रित हो चुके हैं. बेगूसराय में मत्स्य पालन की अधिकांश योजनाएं संचिकाओं में दम तोड़ रही है. एक ओर अधिकारियों की उदासीनता तो दूसरी तरफ पानी के स्रोत की कमी और उसमें आयरन की मात्रा अधिक होने के कारण मछुआरे इस कारोबार से मुंह मोड़ने लगे हैं. इस दिशा में शासन और प्रशासन के द्वारा सकारात्मक पहल नहीं की जा रही है. नतीजा है कि इस कारोबार में लगे सैकड़ों परिवारों के चेहरे पर मायूसी छायी हुई है.
14 हजार मीटरिक टन सालाना है खपत:आंकड़े पर नजर डालें तो जिले में मछली की वार्षिक खपत 14 हजार मिटरिक टन है लेकिन उत्पादन महज आठ हजार मिटरिक ही टन हो रहा है.
खपत के अनुसार मछली का उत्पादन नहीं होने से इसके शौकीन लोगों को ताजा, स्वादिष्ट व लोकल मछलियों के लिए दूसरे जिले पर निर्भर होना पड़ता है. मछुआरों के बीच पानी में आयरन की मात्रा अधिक काफी बाधा पहुंचा रही है.
जिले में 3032 एकड़ जमीन में है जलकर :जानकारी के अनुसार जिले में सरकारी टैंक 311 है. यह 3032 एकड़ जमीन में फैला हुआ है. जबकि 3450 एकड़ जमीन में प्राइवेट 2674 टैंक तथा दो हजार एकड़ में 25 चौर में मछली का पालन होता है. इसके अलावा गंगा, गंडक, बलान, बागमती, बैंती के 250 किलोमीटर लंबे तट में मछली का उत्पादन होता है. सुखाड़ रहने के कारण मछलियों के प्राकृतिक भोजन में निरंतर कमी आ रही है. पूरक आहार के माध्यम से मछली पालन घाटे का सौदा हो रहा है. यहां मछलियों का राजा के रूप में जाना जाने वाला रोहू, कतला, मिरगल, ग्रास, कार्प, कामन कार्प, सिल्वर कार्प व ब्रीग्रेड का मछली पालन होता है. जानकारी के अनुसार मत्स्यजीवी सहयोग समिति की संख्या 18 है. चांदपुरा, डंडारी, चेरियाबरियारपुर, बछवाड़ा, नावकोठी आदि शामिल है.
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