विलुप्त होती जा रही सांस्कृतिक गतिविधियां

कभी बिहार के बाहर भी दाउदनगर के कलाकारों का था जलवा

By Prabhat Khabar Print | May 22, 2024 5:06 PM

दाउदनगर. दाउदनगर शहर अपनी अलग सांस्कृतिक पहचान रखता है. एक दौर ऐसा था जब कई नाट्य संस्थाएं दाउदनगर में सक्रिय होती थी. रंगकर्मियों की कई संस्थाएं दाउदनगर में सक्रिय थी, जिनके द्वारा बिहार के बाहर भी जाकर नाटकों की प्रस्तुति की जा चुकी हैं. अंतिम नाटक 2012 में लाला अमौना में रंगकर्मियों ने खेला था. करीब एक दशक से दाउदनगर में सांस्कृतिक गतिविधि विलुप्त होती जा रही है. नाटक दिख नहीं रहा है. नाटक के नाम पर ग्रामीण क्षेत्रों में मंच तो बन रहे हैं, लेकिन वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों तक ही सीमित होकर रह जा रहे हैं. हालांकि, पिछले वर्ष रेपुरा और छक्कु बिगहा जैसे गांवों में नाट्य महोत्सव की सफलता यह साबित करता है कि यदि इस कला को प्रोत्साहन दिया जाये, तो प्रतिभाओं की कमी नहीं है. यह कहा जाये, तो गलत नहीं होगा कि दाउदनगर के समृद्ध सांस्कृतिक विरासत नाट्य कला विलुप्त होती जा रही है. नाट्य संस्थाएं रही हैं सक्रीय दाउदनगर में कला कुंज, दर्पण, अभिनव कला परिषद, ज्ञान गंगा, अभिनय, आर्य कला परिषद, कला संगम जैसी संस्थाएं करीब डेढ़ दशक पहले तक सक्रिय हुआ करती थी. यहां के रंग कर्मियों द्वारा ई मिट्टी हमर हे, हरियर ठूंठ, अरावली का शेर, नेफा की शाम, पराजय, घुंघरू, एक लोटा पानी, आगाजे रोशनी, अग्निशिखा, रक्तदान, 21वीं सदी की पहली सुबह, बापू तोहार देश में जैसे नाटकों की प्रस्तुतियां की गयी है. यहां की नाट्य संस्थाएं बिहार से बाहर जाकर भी अपनी कला का परचम लहरा चुके हैं, लेकिन पिछले करीब एक-डेढ़ दशक से नाट्य कला विलुप्त हो गयी है. न तो पहले वाले कलाकारों में उत्साह दिख रहा है और न ही वर्तमान पीढ़ी नाट्य कला को अपनाते दिख रही है. रिहर्सल के लिए भी जगह का अभाव है. एक समय था, जब कलाकारों की टीम एक महीना पहले से ही नाटक का मंचन करने की तैयारी में लग जाती थी. कलाकारों द्वारा ही मंच तैयार किया जाता था. किसी के घर में रिहर्सल किया जाता था और मंचीय प्रस्तुति की जाती थी. वर्तमान पीढ़ी इस कला को अपनाते नहीं दिख रही है ,जिसके कई कारण माने जा रहे हैं. अभ्यास के लिए जगह का अभाव दाउदनगर की धरती कलाकारों की धरती रही है. यहां के कलाकारों ने राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहराया है, लेकिन स्थानीय स्तर पर सही हालत में कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहां स्थानीय कलाकार रिहर्सल कर सकें या अपनी प्रस्तुति दे सकें. दाउदनगर के मौलाबाग टाउन हॉल परिसर में स्थित नगर भवन उपेक्षा का शिकार है. जहां कार्यक्रमों के दौरान तालियों की गूंज सुनाई पड़नी चाहिए थी, वहां सन्नाटा पसरा हुआ है. अगर यही स्थिति रही तो आने वाले समय में यह भवन भी सिर्फ सिर्फ जर्जर भवन में तब्दील होकर रह जाएगा. इसके जीर्णोद्धार के लिए जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक स्तर पर किसी प्रकार की कोई सकारात्मक पहल नहीं देखी जा रही है.

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