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महशिवरात्रि. पांडव काल का साक्षी है सुंदरनाथ शिव मंदिर इच्छा पूरी करते हैं सुंदरनाथ राजा विराट और पांडवकालीन इतिहास का साक्षी है जिले के कुर्साकांटा प्रखंड का शिव मंदिर सुंदरनाथ. पांच हजार वर्ष पूर्व राजा विराट की ओर से राज्य के कल्याण के लिए सुंदर वन में शिवलिंग की स्थापना की गयी थी. पूजा करने […]

महशिवरात्रि. पांडव काल का साक्षी है सुंदरनाथ शिव मंदिर

इच्छा पूरी करते हैं सुंदरनाथ
राजा विराट और पांडवकालीन इतिहास का साक्षी है जिले के कुर्साकांटा प्रखंड का शिव मंदिर सुंदरनाथ. पांच हजार वर्ष पूर्व राजा विराट की ओर से राज्य के कल्याण के लिए सुंदर वन में शिवलिंग की स्थापना की गयी थी. पूजा करने के लिए राजा विराट की ओर से इस क्षेत्र में महल का निर्माण कराया गया था. इसका अवशेष आज भी मंदिर के उत्तर पश्चिम कोण पर अवस्थित है.
अररिया : महा शिवरात्रि के अवसर पर जिले के सभी शिव मंदिरों को मंदिर कमेटी की ओर से आकर्षक साज सज्जा प्रदान किया जा चुका है. चारों तरफ शिव के मंत्र से वातावरण शिवमय हो रहा है. श्रद्धालुओं का उत्साह भी चरम पर है. ऊं नम: शिवाय के उद्घोष से वातावरण गूंज रहा है. जिले में शिव का ऐसा वातावरण होना भी लाजिमी है.
क्योंकि जिले में कुछ ऐसे शिव मंदिर भी हैं जो अपने ऐतिहासिक दावा का कहानी बयां करती है. द्वापर कालीन युग से जुड़ी हुई एक शिव मंदिर कुर्साकांटा प्रखंड के डुमरिया पंचायत में नेपाल की सीमा पर अवस्थित है. हालांकि यह मंदिर सुंदर वन में स्थित है इसलिए उसका नाम सुंदरनाथ धाम के नाम पर विख्यात है. भारत समेत नेपाल के श्रद्धालुओं की जुटनी वाली भीड़ सुंदर नाथ के प्रसिद्धि को और भी पुख्ता प्रमाण प्रस्तुत करता है. सुंदरनाथ शिव लिंग के स्थापना को लेकर पांच हजार पूर्व के राजा विराट के शासनकाल के इतिहास के चिह्न आज भी इस क्षेत्र के वादियों में विराजमान है.
मंदिर के प्रमुख महंत घनश्याम गिरि व सिंहेश्वर गिरि ने बताया कि बाबा सुंदर नाथ महादेव पांच हजार वर्षों से अपने भक्तों की मनोकामना को पूर्ण करते आये हैं.
राजा विराट ने की थी स्थापना : महंथ श्री घनश्याम गिरि के अनुसार उन्होंने बाबा सुंदरनाथ शिव लिंग पर आधारित इतिहास को अपने कलम से पिरोने की कोशिश की है. उन्होंने बताया कि आज से पांच हजार वर्ष पूर्व द्वापरकाल में राजा विराट के राज्य का हिस्सा हुआ करता था सुंदर वन जहां की अभी वर्तमान में सुंदरनाथ मंदिर स्थित है. अज्ञात वास के दौरान पांचों पांडव राजा विराट के शरण में पहुंचे थे. जहां पांडवों की ओर से विभिन्न रूप व परिधानों में रह कर राजा विराट की दासता की थी. लोगों की मानें तो राजा विराट के शासनकाल के चिह्न आज भी सुंदरनाथ मंदिर के उत्तर पश्चिम में लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक टीले में अवस्थित है जहां राजा का महल हुआ करता था. कहते हैं नेपाल की सीमा पर स्थित मधुबनी गांव में महाभारत कालीन विशाल पोखर भी स्थित है.
चरवाहे ने देखा था पहली बार शिवलिंग : मंदिर के महंथ ने बताया कि वर्ष 1904 के आस -पास सुंदरलाल साह के चरवाहा सुंदर सदा मवेशी को चारा चराने के दौरान इस स्थान पर पहुंचा. उसने जैसे ही शिवलिंग को देखा तो दौड़ कर इसकी सूचना गांव के लोगों को दी. लोगों ने पहुंच कर जमीन मेंे दबे शिवलिंग को खोद कर बाहर निकाला. ग्रामीणों ने इसकी सूचना तत्कालीन राजा गढबनेली स्टेट कलानंद सिंह को सूचना दी. कलानंद सिंह ने पहुंच कर संुदरनाथ शिवलिंग को गढबनेली स्टेट ले जाने का पूरा प्रयास किया.
लेकिन शिव लिंग अपने स्थान से हिला तक नहीं. हार कर राजा धन ओर ग्रामीणों के परिश्रम से मंदिर का निर्माण हुआ. कहते हें उसी खुदाई के दौरान उस स्थान पर मां पार्वती की मूर्ति भी मिली थी. वर्षों पुराने इस मंदिर के जर्जर होने के कारण श्रद्धालुओं व पूर्व राज्यमंत्री विजय कुमार मंडल की ओर से लोगों से आर्थिक सहयोग लेकर मंदिर का नव निर्माण वर्ष 1995 में प्रारंभ हुआ. दक्षिण भारतीय कलाकृति को मंदिर के नव निर्माण में उकेरने का पूरा प्रयास किया गया है. हालांकि मंदिर के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए धार्मिक न्यास बोर्ड की ओर से बाबा सुंदरनाथ को अपने अधीन लिये जानी की बात भी पदाधिकारियों की ओर से कही जा रही है.

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