सेवा आश्रम से जुड़ी इतिहास पंजी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हैं हस्ताक्षरहोमियोपैथ चिकित्सा से हुआ था 1925 में महामारी का इलाज बेलूर मठ से आये दो स्वामियों ने अररिया समेत आस पास के क्षेत्रों से किया था महामारी का अंतसेवा आश्रम व होमियोपैथ अस्पताल की स्थापना 1925 में हुई, ब्रिटिश सरकार ने 1928 में कराया था भवन का निर्माण प्रतिनिधि, अररिया आश्रम चौक पर अवस्थित रामकृष्ण सेवा आश्रम की स्थापना का गौरव शाली इतिहास रहा है. मां दुर्गा की पूजा तो इस आश्रम में 1952 में प्रारंभ हुई, लेकिन सेवा आश्रम की स्थापना 1925 में ही हो गयी थी. आजादी से पूर्व 1925 में स्थापित सेवा आश्रम से जुड़ी इतिहास की पंजी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा 1925 में सेवा आश्रम पहुंचने का प्रमाण खुद उनके कलम से अंकित है. इसमें उन्होंने सेवा आश्रम के उन्नति पर बल दिया था. इस बात के प्रमाण भी हैं कि अगर सेवा आश्रम नहीं होता तो अररिया क्षेत्र में हैजा, कॉलरा, कालाजार जैसे महामारी को उस समय रोक पाना संभव नहीं हो पाता. अररिया में फैल चुके इस रोग के रोकथाम के लिए 1925 में डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के वाइस चेयरमेन राय बहादुर ज्योतिष चंद्र भट्टाचार्य ने रोग के उपचार के लिए बेलूर मठ के तत्कालीन अध्यक्ष शिवानंद जी महाराज से अनुरोध किया. शिवानंद जी महाराज ने शारदा देवी माता से दीक्षित महादेवानंद जी महाराज व गिरजानंद जी महाराज को अररिया भेजा. इन दोनों के अथक परिश्रम से तीन वर्षों की लंबी अवधि के बाद महामारी का इलाज संभव हो पाया. तत्कालीन अंगरेजी अखबार पूर्णिया मिरर के 23 जनवरी 1928 के अंक में इस बात का प्रमाण मिलता है कि बेलूर मठ के इन्हीं दोनों संतों ने होमियोपैथिक चिकित्सा के जरिये 1925 में 6540 मरीज, 1926 में 12756 मरीज व 1927 में 1132 मरीजों का इलाज कर महामारी पर रोक लगायी थी. उस वक्त डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के वाइस चेयरमेन राय बहादुर ज्योतिष चंद्र भट्टाचार्य की अनुशंसा पर इन्हें मेहनताना के रूप में 75 रुपये प्रतिमाह दिया जाता था. इसमें दवा का मूल्य भी शामिल था. महामारी पर रोक के बाद पराधीन देश को महसूस हुई थी, इनकी जरूरत उस दौर में यातायात की सुविधा तो दूर जिले के गांव में पैदल चलना भी कठिन था. बेलूर मठ के इन महापुरुषों के द्वारा किये गये परिश्रम को भुला पाना असंभव है . 1927 के आसपास ब्रिटिश सरकार के डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के वाइस चेयरमेन श्री भट्टाचार्य, पूर्णिया के जमींदार राय बहादुर निशि व तत्कालीन एमएलसी राजा पीसी लाल चौधरी की अनुशंसा पर ब्रिटिश सरकार के द्वारा न सिर्फ महादेवानंद जी व गिरजानंद जी महाराज को अररिया में रह कर मरीजों के इलाज करने के लिए रजामंद कर लिया गया, बल्कि इनको व्यवस्थित कराने को लेकर उस समय होमियोपैथिक अस्पताल खोलने के लिए ब्रिटिश सरकार को तैयार भी कर लिया गया. जमीन की कमी को पूरा किया सुल्तानपुर स्टेट फारबिसगंज के जमींदार ने. उन्होंने दो एकड़ जमीन दान स्वरूप मंदिर व होमियोपैथिक अस्पताल की स्थापना के लिए दी. इन भवनों के निर्माण के लिए एमएलसी राजा पीसी लाल की अनुशंसा पर ब्रिटिश सरकार ने उस वक्त पांच सौ रुपये दिये. बाद में पुन: अन्य भवनों के निर्माण के 27 सौ रुपये भी दिये गये. भवन निर्माण के बाद 13 जनवरी 1928 को सेवा आश्रम के नव निर्मित भवन का विधिवत उद्घाटन हुआ. इसमें राजा पीसी लाल, पूर्णिया के राय बहादुर निशि, डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के वाइस चेयरमंन राय बहादुर ज्योतिष चंद्र भट्टाचार्य, तत्कालीन सेक्रेटरी तारा बाबू प्रसाद गुप्ता आदि मौजूद थे.सेवा आश्रम मे पहुंचते थे माननीयसेवा आश्रम के पुजारी स्वामी स्वरूपानंद ने बताया कि कहते हैं कि हैजा, कॉलरा, कालाजार जैसी महामारी का इलाज होमियोपैथ के माध्यम से करने के बाद लोगों की आस्था आश्रम के दोनों स्वामी महादेवनांनद जी महाराज व गिरजानंद जी महाराज के प्रति दिनों दिन बढ़ती जा रही थी. लोगों का आना जाना प्रारंभ हो गया. यहां असाध्य रोगों का उपचार आसानी से होने लगा. ब्रिटिश सरकार भी इस आश्रम को संज्ञान में ले चुकी थी. अब आश्रम में माननीयों का आगमन प्रारंभ होने लगा. आज भी आश्रम की इतिहास पंजी में 1925 में महात्मा गांधी, 1928 में राजा पीसी लाल बैठा, 17 फरवरी 1962 को भागलपुर डिविजन के कमिश्नर के अब्राहम, आठ मई 1964 को विधानसभा के तत्कालीन स्पीकर लक्ष्मी नारायण सुधांशु, 1965 में तत्कालीन मंत्री बिहार सरकार डुमरलाल बैठा आदि के आश्रम पहुंचने के स्व हस्ताक्षरित अभिलेख मौजूद हैं.
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सेवा आश्रम से जुड़ी इतिहास पंजी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हैं हस्ताक्षर
सेवा आश्रम से जुड़ी इतिहास पंजी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हैं हस्ताक्षरहोमियोपैथ चिकित्सा से हुआ था 1925 में महामारी का इलाज बेलूर मठ से आये दो स्वामियों ने अररिया समेत आस पास के क्षेत्रों से किया था महामारी का अंतसेवा आश्रम व होमियोपैथ अस्पताल की स्थापना 1925 में हुई, ब्रिटिश सरकार ने 1928 में […]
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