अररिया : जैन श्वेतांबर तेरापंथ महासभा के ग्यारहवें आचार्य श्री महाश्रमण जिला प्रवास के आठवें दिन व तेरापंथ भवन अररिया प्रवास के तीसरे दिन मंगलवार को शहर का परिभ्रमण किया. शहर परिभ्रमण के दौरान आचार्य श्री महाश्रमण अपने सह धार्मिक संप्रदाय के लोगों को अलावा अन्य धर्म प्रेमियों के आवास पर पहुंचे.
जैन श्वेतांबर तेरापंथ समाज के लोगों अपने ग्यारहवें गुरु के घर आगमन से काफी उत्साहित नजर आये. लोगों ने अपने आचार्य का पगलिया कर उनका अभिनंदन किया. इस संबंध में विशेष जानकारी देते हुए तेयुप के मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र बोथरा ने बताया कि आचार्य वर अपने प्रवास के दौरान सभी घरों का परिभ्रमण करेंगे. परिभ्रमण के क्रम में श्रद्धालु के घरों में पहुंच कर आचार्य लगभग पांच से दस मिनट का समय देते हैं. इस दौरान वे घरों के सदस्यों को अहिंसा, सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति के संदेश को अमल करने व इसका प्रचार दूर-दूर तक अपने संबंधियों के बीच कर विश्व व्यापक बनाने का काम करने का अनुरोध किया. वे लोगों से अध्यात्म से जुड़ने का सलाह देकर उसे धारण करने की सलाह देकर आगे बढ़ते गये.
मंगलवार के परिभ्रमण के दौरान आचार्य महाश्रमण जी नवरतन चौक, एडीबी चौक, बंगाली टोला व महावीर नगर के कुछ घरों लगभग 31 घरों का परिभ्रमण किया. आचार्य श्री महाश्रमण के शहर परिभ्रमण के दौरान शहर वासियों में भी खासा उत्साह देखने को मिला. आचार्य श्री महाश्रमण के साथ जैन धर्म प्रेमियों अलावा अन्य संप्रदाय के लोग भी शामिल थे.
तेरापंथ भवन में संगोष्ठीआचार्य श्री महाश्रमण ने दिया प्रश्नों का जवाब बुद्धि को नैतिकता की ओर ले जाने का दिया संदेशप्रतिनिधि, अररियाजैन श्वेतांबर तेरापंथ भवन में तीन दिनों से चल रहे आचार्य श्री महाश्रमण के कार्यक्रम के दौरान मंगलवार को शहर के बुद्धिजीवी वर्गों के बीच विशेष संगोष्ठी का आयोजन किया गया. संगोष्ठी में शहर के बुद्धिजीवी वर्गों में साहित्य, कला, प्रेस, व्यवसाय आदि वर्गों से जुड़े लोग पहुंचे. लोगों के अहिंसा यात्रा पर पूछे गये प्रश्नों व जैन धर्म पर पूछे गये पूछे गये जिज्ञासा का जवाब आचार्य श्री महाश्रमण ने लोगों को एक-एक कर दिया.
आचार्य श्री महाश्रमण ने प्रश्नों के जवाब देने के क्रम में कहा कि जैन धर्म के दो भाग हैं. एक दिगंबर दूसरा श्वेतांबर. दिगंबर वैसे लोग हैं जो जैन धर्म को मानते हैं लेकिन शरीर पर वस्त्र नहीं रखते हैं. श्वेतांबर धर्म को मानने वाले भी दो प्रकार के जैनी हैं. एक वह जो मूर्ति पूजा को नहीं मानता है और दूसरा जो मूर्ति पूजा को मानते हैं.
आचार्य श्री महाश्रमण ने बताया कि उनमें तेरापंथ वह धर्म है जिसमें मूर्ति पूजा को नहीं माना जाता. उन्होंने इसके इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इसका उदय 256 वर्ष पूर्व राजस्थान के मेवाड़ में हुआ था. इसके प्रथम गुरु आचार्य भिक्षु हुए. उन्होंने श्वेतांबर धर्म के पालन करने वाले साधु संतों के दिनचर्या पर प्रकाश डालते हुए कहा कि न खाना पकाते हैं, न खाना पकवाते हैं, लोगों के घरों में बने भोजन से भिक्षा ग्रहण कर अपना काम चलाते हैं.
सूर्य अस्त होने के बाद जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करते हैं. हालांकि इसके पीछे उन्होंने जीव हत्या के बचाव करने के उद्देश्य को बताया. आचार्य श्री महाश्रमण ने अपने पद यात्रा के आरंभ होने की तिथि नौ नवंबर 2014 बताया और कहा कि वर्ष 2020 तक उन्हें हैदराबाद पहुंच कर वहां होने वाले चतुर्मास में भाग लेना है. जबकि इस बीच वर्ष 2016 में असम, वर्ष 2017 में कोलकता आदि होने वाले चतुर्मास में पद यात्रा कर भाग लेने की बात कही.
संगोष्ठी के आरंभ होने के साथ आचार्य ने मनुष्य को बुद्धि के साथ विकास के तदात्मय बना कर चलने की सलाह लोगों को दी. उन्होंने कहा कि बुद्धि अगर लगाओ तो समस्या उत्पन्न हो सकती है लेकिन बुद्धि अगर लगाओ तो समस्या समाप्त हो सकती है. इसलिए अपने बुद्धि को शुद्ध बुद्धि के रुप में लगाओ जिससे आप को कामधेनु के सामान हमेशा फायदा मिलता रहे.
बुद्धि का सही इस्तेमाल मनुष्य को सही मार्ग पर ले जा सकता है. आत्मा अमूर्त और शरीर मूर्त होता हैइनके योग से होता है जीवन का निर्माण-आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा नश्वर शरीर से करें अमर आत्मा का कल्याणफोटो:6-प्रवचन करते आचार्य फोटो:7-प्रवचन के दौरान मौजूद भक्त.प्रतिनिधि, अररिया तीसरे दिन के प्रवास के दौरान आचार्य महाश्रमण जी ने मंगलवार को तेरापंथ भवन में प्रवचन के दौरान संयम, प्रेम व आत्मा के अमरत्व पर अपने विचार रखे.
आचार्य श्री महाश्रमण ने कहा कि आत्मा अमूर्त और शरीर मूर्त होता है. मनुष्य अपने जीवन में सांसारिक भोगों का उपभोग करते हुए भौतिकता का जीवन जीता है. काफी यत्न कर दो रुपये कमा लेता है लेकिन उसे आत्मिक शांति नहीं मिलती. उन्हें कहा कि आत्मिक शांति के लिए मनुष्य को साधना में जाना पड़ता है.
साधना के लिए मनुष्य को संयम बरतना होगा उसके बाद वह सच्चा साधक बन पायेगा. अध्यात्म ओर संयम की साधना आत्मा का कल्याण कर सकती है तथा मोक्ष को प्रदान कर सकती है. उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन मिला है तो इसका सदुपयोग कर आत्मा को कर्मों से छुटकारा दिलाने का प्रयास करना चाहिए.
गृहस्थ के पारिवारिक गतिविधियों में रहते हुए भी अमोह का प्रयास करना चाहिए ताकि उसके पाप कर्मों का बंधन कम हो सके. उन्होंने भक्तों से कहा कि सिर्फ सुनो नहीं बल्कि उस पर अमल करो. अगर अमल नहीं कर सके तो सुनने से क्या फायदा. जीवन में कुछ समय साधना के लिए निकालनी चाहिए क्योंकि साधना से मन शांत होता है.
मनुष्य को आत्मा के कल्याण के लिए सदैव संयम की साधना का प्रयास करना चाहिए. आत्मा नश्वर शरीर में रह कर भी अमर कहलाता है. लेकिन मनुष्य को अपने अमर आत्मा की पहचान नहीं हो पाती. निश्चय ही बुरे कर्मों से आत्मा भी दुखी होता है. सद कर्म से आत्मा भी प्रफुल्लित होती है. अपने स्थूल शरीर को आशीर्वाद देती है.
शरीर और आत्मा दोनों अलग -अलग तत्व हैं . लेकिन शरीर दिखाई देता है और आत्मा अदृश्य होता है. इस अवसर पर मुनि आलोक कुमार की संसारपक्षीय माता का देहावसान होने पर आए हुए उनके परिजनों को आचार्य प्रवर द्वारा आत्मिक संबल प्रदान किया गया. मुनि आलोक कुमार ने भी गुरु कृपा पर अपने विचार रखें.