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नेपाल में एक बार फिर तीव्र हुआ मधेशी आंदोलन

अररिया : नेपाल के संविधान में अपनी भागीदारी को लेकर मधेशियों के द्वारा जारी प्रदर्शन एक बार फिर हिंसक तनाव में बदलता दिख रहा है. नेपाल के अंदर जारी इस हिंसक आंदोलन व महंगाई के कारण दशहरा का पर्व भी नेपाल में अन्य वर्षों की भांति लोग उत्सवी माहौल में नहीं मना पाये. नेपाल में […]

अररिया : नेपाल के संविधान में अपनी भागीदारी को लेकर मधेशियों के द्वारा जारी प्रदर्शन एक बार फिर हिंसक तनाव में बदलता दिख रहा है. नेपाल के अंदर जारी इस हिंसक आंदोलन व महंगाई के कारण दशहरा का पर्व भी नेपाल में अन्य वर्षों की भांति लोग उत्सवी माहौल में नहीं मना पाये.

नेपाल में दशहरा के अवसर पर विशेष रूप से मनाये जाने वाले टीका की प्रथा पर भी नेपाल में चल रहे आंदोलन का असर दिखा. हालांकि मधेशी पार्टियों के निर्णय के बाद पर्व के दौरान आंदोलन का दौर थोड़ा कम जरूर हुआ था. लेकिन शनिवार को एक बार फिर नेपाल के विभिन्न सीमा क्षेत्र के नाका के अलावा जोगबनी नाका को भी प्रदर्शनकारी द्वारा बंद कराने को लेकर आंदोलन को तेज किया जाने लगा है.

इससे एक बार फिर नेपाल में स्थिर हो रही अर्थव्यवस्था के खराब होने की संभावना प्रबल हो रही है. दो माह से जारी है नेपाल में तनावनेपाल के मधेशी, थारु व जन जातीय समुदाय के द्वारा संविधान में व्यापक भागीदारी को लेकर दो माह से जारी प्रदर्शन अब तक थमने का नाम नहीं ले रहा है. 17 अगस्त 2015 को प्रारंभ हुआ प्रदर्शन हिंसक आंदोलन में तब्दील हो गया.

नेपाल सरकार को आर्थिक रूप से नुकसान पहुंचाने के मकसद से आर्थिक नाकाबंदी का असर ऐसा हुआ कि नेपाल को खाद्यान्न, पेट्रोलियम पदार्थ, एलपीजी, दवा आदि के किल्लत के दौर से गुजरना पड़ा. हालांकि 20 सितंबर 2015 को कोईराला सरकार ने नव निर्मित संविधान को देश में लागू कर दिया.

इसके बाद आंदोलन ने और भी व्यापक रूप ले लिया. इन प्रदर्शनों में 40 मौतों की भी पुष्टि हुई. इधर नेपाल में खाद्यान्न व अन्य सामग्री की हो रही किल्लत को दूर करने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर मामलों को सुलझाने का प्रयास किया गया. एसएसबी के आइजी, डीएम हिमांशु शर्मा, एसपी सुधीर कुमार पोरिका आदि द्वारा ट्रक चालकों को समझाने के बाद सीमा पर खाद्यान्न लदे वाहन लेकर चालक नेपाल जाने लगे.

लेकिन दशहरा के समाप्त होने के बाद 24 अक्तूबर से एक बार फिर सीमा पर मधेशियों के द्वारा आंदोलन जोर पकड़ने लगा है.प्रधानमंत्री के समक्ष है आंदोलन को शांत करने की जिम्मेदारी11 अक्तूबर 2015 को देश के नये प्रधानमंत्री के रूप में चुने गये केपी शर्मा ओली के समक्ष नाराज मधेशियों को शांत कर देश को शांतिपूर्ण माहौल में चलाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है.

जानकारी अनुसार इस दिशा में 18 अक्तूबर को उनके द्वारा तराई में सक्रिय मधेशी संगठनों को बातचीत करने को लेकर राजी करने की बात सामने आ रही थी, लेकिन बातचीत होती तो परिणाम सामने आते. ज्ञात हो कि 11 अक्तूबर को नेपाल के संविधान सभा में हुए मतदान में यूएमएल के प्रमुख केपी ओली को 338 मत मिले थे. जबकि नेपाल कांग्रेस के अध्यक्ष कोईराला के पक्ष में 249 मत पड़े थे. इस मतदान में नेपाल के 587 सदस्यों ने भाग लिया था. ओली को यूसीपीएन माओवादी,

राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी नेपाल, मधेशी जनाधिकार फोरम डेमोक्रेटिक व कुछ अन्य दलों का समर्थन मिला था. जबकि पूर्व प्रधानमंत्री कोईराला को यूनाइटेड डेमोक्रेटिक मधेशी फ्रंट में शामिल चार दलों का समर्थन मिला था. अब नव निर्वाचित प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के सामने एक बार फिर भारत की सीमा पर लगे मुख्य व्यापारिक चौकी की नाकाबंदी और प्रदर्शन से निबटने की चुनौती है. चीन के व्यापारिक मार्ग रासावगुधी का निर्माण तेजी के साथ हो रहा है.

पेट्रोलियम पदार्थों को भी अनुदानित कीमत पर नेपाल को देने के लिए चीन सहमत हो गया है. लेकिन 1751 किलो मीटर लंबे भारत व नेपाल के सीमा क्षेत्र में स्थित व्यापारिक मार्ग पर पैदा हो रही बाधा को दूर किये बगैर नेपाल के आर्थिक हालात को सुधारना प्रधानमंत्री के लिए आसान नहीं होगा.

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