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रामकृष्ण सेवा आश्रम में बंगाली पद्धति से होती है मां दुर्गा की पूजा

रामकृष्ण सेवा आश्रम में बंगाली पद्धति से होती है मां दुर्गा की पूजा षष्ठी को नव पत्र में मां का किया जाता है आह्वान, फिर होती है विधिवत पूजा फोटो:1-रामकृष्ण सेवाश्रम में स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमाफोटो:2-स्वामी स्वरूपानंद जी फोटो:3-अशोक कुमार दास प्रतिनिधि, अररिया रामकृष्ण सेवा आश्रम में मां दुर्गा की पूजा बंगाली पद्धति से […]

रामकृष्ण सेवा आश्रम में बंगाली पद्धति से होती है मां दुर्गा की पूजा षष्ठी को नव पत्र में मां का किया जाता है आह्वान, फिर होती है विधिवत पूजा फोटो:1-रामकृष्ण सेवाश्रम में स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमाफोटो:2-स्वामी स्वरूपानंद जी फोटो:3-अशोक कुमार दास प्रतिनिधि, अररिया रामकृष्ण सेवा आश्रम में मां दुर्गा की पूजा बंगाली पद्धति से की जाती है. षष्ठी को कलश स्थापना के बाद सप्तमी से विधिवत पूजा प्रारंभ होती है. यहां अन्य कोई वाद्य यंत्र नहीं बजता, किसी भी प्रकार का कोलाहल नहीं रहता, लेकिन नवमी को पश्चिम बंगाल से लाये ढाक को जब कलाकार बजाते हैं तो आस पास का माहौल मां की भक्ति से ओतप्रोत हो जाता है. बेलुर मठ से जुड़ा है मंदिर का इतिहासआश्रम चौक पर अवस्थित रामकृष्ण सेवा आश्रम की स्थापना का अपना गौरवशाली इतिहास रहा है. सेवाश्रम की स्थापना 1925 में हुई थी, लेकिन यहां मां दुर्गा की पूजा की शुरुआत 1952 में हुई. मंदिर के वर्तमान पुजारी स्वामी स्वरूपानंद जी ने बताया कि वे 29 वर्षों से मंदिर में रह कर देवी की पूजा करते हैं. उन्होंने बताया कि 1925 में जिले में महामारी फैली थी. इसको लेकर बेलुर मठ से भेजे गये स्वामी स्वरूपानंद जी व गिरिजानंद जी महाराज के सफलतम उपचार के बाद महामारी का प्रभाव खत्म हुआ था. इसके बाद सुलतानपुर स्टेट के जमींदार ने आश्रम को दान स्वरूप जमीन दी थी. अभी मंदिर में पूजा का संचालन कमेटी के द्वारा स्वतंत्र रूप से किया जाता है.मां की पूजा के लिए अपनायी जाती है विशेष पद्धति मंदिर के दूसरे पुजारी हराधन दास ने बताया कि मंदिर में मां की प्रतिमा की स्थापना षष्ठी को की जाती है. स्थापना काल से ही वंशवादी परंपरा के तहत कटिहार के मूर्तिकार द्वारा मां की मूर्ति बनायी जाती है. उन्होंने बताया कि नवरात्र के षष्ठी को बोधन, आमंत्रण व अधिवास के बाद मां की प्रतिमा मंदिर में स्थापित की जाती है. नव पत्रिका की इस रस्म को निभाने की पद्धति काफी रोचक व धार्मिक भाव से पूर्ण होती है. केला, कच्चु, हल्दी, बेल की डाल, अनार की डाल, अशोक की डाल, मान कच्चु, धान का पौधा आदि को एक साथ एकत्र कर बेल वृक्ष के नीचे मां दुर्गा का आह्वान किया जाता है. इसके बाद नव पत्रिका को मां के प्रतिमा के समीप रख कर मां की पूजा प्रारंभ होती है. सप्तमी,अष्टमी, नवमी व दशमी को ढाक वाद्य यंत्र से मां की पारंपरिक पूजा की जाती है. दशमी को मां की प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है. मां के प्रति मुसलिम परिवारों में भी है आस्थामंदिर की देखरेख की जिम्मेदारी वैसे तो दोनों पुजारी स्वामी स्वरूपानंद जी व हराधन दास पर है, लेकिन आस्था के प्रतीक सेवाश्रम में स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमा के प्रति मुसलिम भाइयों की भी अटूट श्रद्धा है. सुलतानपुर स्टेट के जमींदार जो मुसलिम थे, उन्होंने आश्रम को दो एकड़ जमीन दान स्वरूप दी थी. वहीं मंदिर में मां की पूजा के प्रति श्रद्धा रखने वाले मुसलिम परिवार के लोग भी मंदिर में आ कर चंदा देते हैं. पूजा के लिए प्रसाद व अगरबत्ती देना तो आम बात है.मंदिर कमेटी सशक्त, फिर भी पूजा में नहीं होता है आडंबर सेवा आश्रम में मां की पूजा में आडंबर नहीं किया जाता है, बल्कि बंगाली पद्धति से आडंबर मुक्त पूजा की जाती है. पूजा में सप्तमी से लेकर नवमी तक श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. कमेटी के सदस्य अशोक कुमार दास ने बताया कि कमेटी के सचिव संजय प्रधान हैं. वहीं दुर्गा प्रसाद घोष, विमलनेंदु दास गुप्ता, समीर कांति मुखर्जी, देव नारायण सेन आदि इसके सदस्य हैं. इनके द्वारा समाज के सहयोग से प्रति वर्ष पूजा की जाती है. मां की पूजा में समाज के हर तबके के लोगों का सहयोग मिलता है.

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