अररिया: जहां एक तरफ सोमवार को फर्जी डॉक्टर राजीव रंजन के पुलिस गिरफ्त में आने के बाद से अवैध क्लिनिक व नर्सिग होम चलाने वालों में फिर एक बार हड़कंप मच गया है. वहीं जिला स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली व फर्जीवाड़ा पर नकेल कसने के मामले में विभाग के ढुलमुल रवैये की भी पोल खुल गयी है. सबसे बड़ा सवाल ये उठा रहा है कि जिस फर्जीवाड़ा का खुलासा एक शख्स ने आरटीआइ का सहारा लेकर आसानी कर दिया. उस फर्जीवाड़ा को लेकर जिला स्वास्थ्य विभाग का रवैया इतना सुस्त क्यों था. ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या विभाग मामले की लीपापोती के प्रयास में लगा था.
गौरतलब है कि शहर में सदर अस्पताल के आसपास ही निजी क्लिनिक चलाने वाले डॉ राजीव रंजन की डिग्री उस समय शक के दायरे में आयी थी जब एक शख्स ने उनके प्रमाण पत्रों व डिग्री को फर्जी बताते हुए जिलाधिकारी से लिखित शिकायत करते हुए जांच की मांग की थी. हालांकि डीएम ने निर्देश पर कार्रवाई करते हुए नौ मार्च को एसडीओ संजय कुमार ने उन्हें थाना ला कर पूछताछ की थी. उस समय सीएस डॉ बीके ठाकुर भी मौजूद थे.
पर ये रहस्य ही रह गया था कि पूछताछ के बाद उन्हें क्यों छोड़ दिया गया था. वैसे मीडिया कर्मियों को जानकारी देते हुए संबंधित अधिकारियों ने बताया था कि डॉ राजीव रंजन को प्रमाण पत्रों की प्रतियां स्वास्थ्य विभाग में जमा करने का निर्देश देकर छोड़ा गया है. कागजात जमा करने के लिए उन्हें सप्ताह भर का समय देने की बात भी कही गयी थी. ये भी कहा गया था कि प्रमाण पत्रों का सत्यापन कराया जायेगा, तब तक क्लिनिक बंद रहेगा. मिली जानकारी के अनुसार हुआ यूं कि डॉ राजीव रंजन ने अपना क्लिनिक दूसरे दिन ही फिर से चालू कर दिया. कुछ दिनों तक वे सादे कागज पर दवा लिखते रहे. खास ये कि उन्होंने अपने प्रमाण पत्रों की प्रतियां भी स्वास्थ्य विभाग में जमा कर दी थी, लेकिन हैरत में डालने वाली बात ये है कि स्वास्थ्य विभाग ने प्रमाण पत्रों की जांच कराने के बजाय उन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया. विभाग ने ऐसा क्यों किया, इसको लेकर भी सवाल उठा रहे हैं.
राजीव रंजन के प्रमाण पत्रों के फर्जी होने का सच आरटीआइ के तहत दायर एक आवेदन के जरिया हो पाया. खास ये कि ये काम भी जिला स्वास्थ्य विभाग के बजाये किसी अन्य व्यक्ति ने किया. मामले की गंभीरता को देखते हुए डीएम ने एसडीओ संजय कुमार को सोमवार को राजीव रंजन को थाना ला कर प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया. इसी के बाद राजीव रंजन पर शिकंजा कसा जा सका. जिले में फर्जी डिग्री धारी डॉक्टरों की भरमार बतायी जाती है. जानकारों का कहना है कि शहर में सदर अस्पताल के आसपास भी कई ऐसे क्लिनिक व नर्सिग होम धड़ल्ले से चल रहे हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि वहां डॉक्टर बन कर रोगियों का इलाज करने वाले लोग कोई वैध डिग्री नहीं रखते हैं. आम अवाम को तो ऐसी जानकारी है. समाचार पत्रों में भी ऐसी खबरें छपती रहती है, पर हैरत इस बात को लेकर है कि जिला स्वास्थ्य विभाग इनकी जांच को लेकर कभी संजीदा नहीं दिखा है. हां इतना जरूर है कि विभाग कभी कभार रस्मी कार्रवाई करता रहा है.
बोले सीएस
सिविल सजर्न डॉ बीके ठाकुर ने बताया कि गैर कानूनी रूप से प्रैक्टिस करने सहित अन्य आरोपों के तहत उन्होंने राजीव रंजन के खिलाफ नगर थाना में प्राथमिकी दर्ज करवायी है. प्रमाण पत्रों के सत्यापन के बाबत पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि कुछ साक्ष्य स्वास्थ्य विभाग ने भी जमा किये थे, जबकि आरटीआइ के तहत मिली जानकारी सीधे डीएम को उपलब्ध करायी गयी थी.