अररियाः इन दिनों लगातार डीजे की तीखी आवाज व रंग-बिरंगी रोशनी के बीच थिरकते युवाओं की टोली एहसास दिला जाती है कि शादी का मौसम है. बरात की टोली है. उन्मुक्त होकर युवा थिरकते हैं व उनके अभिभावक या तो मुंह छिपाये वाहन पर बैठे होते हैं. या फिर नजर अंदाज भी कर देते हैं. उन्हें भी पता होता है उनका लाडला किस खास एनर्जी से थिरक रहा है. गांव-गांव में शराब की दुकानें खुली है. उसी तरह दवा की दुकानें का भी सजी मिल जाती है. कोडिनयुक्त कफ सिरफ की भरमार रहती है.
दवा की दुकानों में न तो जवाबदेह पदाधिकारी इसे देख रहे हैं और न ही समाज के लोग इस स्थिति के विरुद्ध आवाज उठा रहे हैं. समाज में सामूहिक नेतृत्व का अभाव से समाज भी निरंकुशता की ओर बढ़ रहा है. आखिर इस स्थिति से निजात कैसे मिलेगी? सामाजिक दबाव की कमी से लोक लज्जा से बेफ्रिक होता युवा नशा के आगोश में समाता चला जा रहा है. ऐसे में सुंदर भविष्य की कल्पना करना बेईमानी होगी.
जानकार कहते हैं कि व्यक्ति वादी सोच आर्थिक लाभ पाने की आकांक्षा के वजह समाज में कथित तौर पर दबंग समङो जाने वाले इस तरह के कारोबार कर समाज के नयी पीढ़ी के जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं. थिरकते युवा जब बरात में जाते हैं, तो उन्हें कोडिनयुक्त दवा उपलब्ध कराने वाला भी मिल जाता है. गंध हीन होने के कारण बेधड़क उसे गटक कर मदमस्त हो जाता है. इस स्थिति के विरुद्ध आखिर कब उठेगी आवाज यह यक्ष प्रश्न बन कर खड़ा है, जबकि सभी मानते हैं कि नशा पान के कारण ही समाज में यदा-कदा रिश्ते को शर्मसार करने वाली घटनाएं घटती है. आपराधिक वारदात को अंजाम दे डालता है. मानवीय संवेदनाएं कब जगेगी. आज के समय में समाज में चर्चा का विषय बना हुआ है.