पटना: जब मरीज मरने लगे या उसके पास पैसा खत्म होने लगे, दोनों स्थिति में उसे पीएमसीएच रेफर कर दिया जाता है. देखा गया है कि इसके कारण हर दिन सामान्य बीमारी से मरने वाले मरीजों की संख्या 20 से अधिक होती है और इसमें से अधिकतर मरीज ऐसे होते हैं जो मरने के कुछ दिन पहले किसी निजी नर्सिग होम से रेफर होकर आये थे. जानकारी के मुताबिक ऐसे रेफर मरीजों की हालत काफी गंभीर होती है.
निजी नर्सिग होम नहीं बनाना चाहते हैं मृत्यु प्रमाणपत्र : अधिकतर निजी नर्सिग होम में मरीजों का इलाज भगवान भरोसे किया जाता है. क्योंकि इसके संचालक खुद डॉक्टर नहीं होते हैं. इनका नर्सिग होम भाड़े के चिकित्सकों से चलता है, जो पीएमसीएच व आइजीआइएमएस के चिकित्सक होते हैं. इन चिकित्सकों के नाम पर मरीजों को भरती कराया जाता है. जांच व बीमारी को गंभीर बता कर इनसे पैसा वसूला जाता है और जब मरीज मरने लगता है और उसके पास पैसा खत्म होने लगता है तो उसे पीएमसीएच रेफर कर दिया जाता है. ऐसे में मरीज पीएमसीएच चले जाते हैं और यह मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने से बच जाते हैं.
बड़े डॉक्टरों के नाम पर चलता है निजी अस्पताल : राजधानी में चलने वाले नर्सिग होम में बड़े चिकित्सकों का नाम होता है, लेकिन वह नियमित रूप से शायद ही अपनी सेवा देते हैं. दिन में कभी एक बार आ जाते हैं, क्योंकि उनको अपने प्राइवेट क्लिनिक में भी समय देना पड़ता है, लेकिन मरीज को उनके नाम पर लाया जाता है. कुछ अस्पतालों को छोड़ दे, तो अधिकतर मरीज सामान्य से गंभीर हो जाता है. इन अस्पतालों में मरीजों के इलाज के लिए बहुत कुछ नहीं है, फिर भी मरीजों को लूटा जा रहा है.
अस्पताल का नाम खराब नहीं हो इसलिए करते हैं रेफर
यह देखा जाता है कि इमरजेंसी में भरती होने वाले अधिकतर मरीज मरने की हालत में भरती होते हैं. इलाज के दौरान पता चलता है कि मरीज किसी निजी अस्पताल में भरती था अब वहां उसका इलाज वहां संभव नहीं है. ऐसे में मरीज को हमारे अस्पताल में भेज दिया जाता है और वह कुछ समय बाद मर जाता है जिसका मृत्यु प्रमाण पत्र हमें देना पड़ता है. निजी अस्पताल के संचालक पैसा वसूलने में आगे रहते हैं, लेकिन मरीज का इलाज करने में पीछे और अस्पताल का नाम खराब नहीं हो , इसलिए उसे पीएमसीएच रेफर कर दिया जाता है.
डॉ आरके सिंह, पीएमसीएच उपाधीक्षक