पटना: सावधान हो जाइए. चेक करिए आप दूध पी रहे हैं या बीमारी. पटना में रोज करीब तीन लाख लीटर मिलावटी दूध बेचा जा रहा है. इसमें आधे से ज्यादा सिंथेटिक दूध है और बाकी में गंदे पानी की मिलावट. इस दूध का गिलास आपकी सेहत नहीं बना रहा बल्कि जिंदगी को पी रहा है. सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि दूध में मिलावट करने वालों को उम्रकैद दी जाये, पर पटना में छह माह से दूध की जांच तक नहीं हुई. बड़े पैमाने पर खुलेआम सिंथेटिक दूध बिक रहा है.
* हर रोज नौ लाख लीटर खपत
पटना में हर दिन औसतन 9 लाख लीटर दूध की खपत है. इसमें डेयरी क्षेत्र का हिस्सा करीब 40 फीसदी (पौने चार लाख लीटर) जबकि खटाल व अन्य माध्यमों से आपूर्ति होने वाले दूध का हिस्सा करीब 60 फीसदी (सवा पांच लाख लीटर) है. डेयरी के माध्यम से आपूर्ति होने वाले दूध की शुद्धता की थोड़ी-बहुत गारंटी होती है, मगर खटालों या मुहल्लों से आपूर्ति होने वाले दूध की कोई गांरटी नहीं है.
* हाथ पर हाथ धरे बैठे अधिकारी : राजधानी में कई जगहों पर होने वाले दूध में मिलावट के खेल की जानकारी सबको है, पर अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते हैं. जंक्शन के दूध मार्केट से लेकर अलग-अलग मुहल्ले में खुलेआम सिंथेटिक व मिलावटी दूध बनता है, पर किसी की नजर नहीं जाती. करीब तीन साल पहले तत्कालीन सदर एसडीओ मो मकसूद आलम ने जंक्शन दूध मार्केट में जांच सैंपल लिया था, मगर उसकी रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं हुई. इस दूध मार्केट से शहर के बड़े होटलों में दूध की सप्लाइ होती है. कंकड़बाग, पटेल नगर, बहादुरपुर सहित कई मुहल्लों में भी लोग घरों में मिलावटी दूध का निर्माण कर उसकी सप्लाइ करते हैं.
* गड़बड़ी नहीं दिखती : खाद्य सामग्रियों की जांच करने वाले अभिहीत पदाधिकारी (डेजिगनेटेड ऑफिसर) नारायण राम की माने तो राजधानी में छह महीने से दूध की जांच को लेकर कोई छापेमारी नहीं हुई है. हाजीपुर व आसपास के इलाके में जरूर अभियान चलाया गया है. उन्होंने बताया कि शहर में बिकनेवाले दूध में कहीं गड़बड़ी की शिकायत नहीं है. हां, पनीर में आरारोट मिलाने की शिकायत मिली थी. जांच की गयी. थाने के अधिकारियों का कहना है कि बगैर खाद्य विभाग उनको कार्रवाई का अधिकार नहीं है. अभिहीत पदाधिकारी ही इसकी जांच के लिए सक्षम पदाधिकारी हैं. हालांकि, पटना प्रमंडल के अभिहीत पदाधिकारी के जिम्मे पटना सहित आस-पास के कई शहरों की भी जिम्मेवारी है, इसलिए ज्यादा समय नहीं दे पाते.
* पुराना खेल : दूध में मिलावट का खेल कोई नया नहीं है. इसमें पानी मिलाकर बेचे जाने की शिकायत जमाने से रही है. बदलते समय के साथ मिलावट के तरीके भी बदले. अब तो कृत्रिम दूध बनाने के लिए यूरिया, चीनी, स्टार्च, डिटर्जेंट, सोडा जैसे केमिकल्स का इस्तेमाल धड़ल्ले से हो रहा है. 2008 में चीन में दूध में मेलामाइन के मिलावट का मामला सामने आया. दूध से बनी चीजों में प्रोटीन का लेवल ज्यादा दिखाने के लिए वहां मेलामाइन की मिलावट की जा रही थी. वहां करीब तीन लाख लोगों की सेहत पर असर पड़ा था. हजारों बच्चे अस्पतालों में भरती हुए थे, जिनमें छह छह मौत हुई थी.
– ऐसे करें जांच
* लैक्टोमीटर से रीडिंग 28 से 32 होनी चाहिए. अगर रीडिंग 28 से नीचे हो, तो पानी की मिलावट शर्तिया है
* अगर दूध में स्टार्च मिला हो, तो उसे आयोडिन मिला कर गरम करने से दूध का रंग नीला हो जायेगा.
* दूध में बराबर मात्रा में अल्कोहल मिलाने से घटिया किस्म का दूध फट जाता है
* चिकनी खड़ी सतह पर दूध की एक बूंद गिराएं. गिरने की रफ्तार धीमी हो और पीछे सफेद निशान छोड़े, तो साफ है कि मिलावट नहीं है.
शैंपू और डिटर्जेट की होती मिलावट
पाउडर से बनाये दूध में झाग के लिए कास्टिक सोडा मिलाते हैं. शैम्पू, डिटर्जेट, सोडा, रिफाइंड ऑयल आदि का भी इस्तेमाल.
रंग बनाने के लिए उसमें यूरिया या दूसरे केमिकल मिलाये जाते हैं.
पानी मिले दूध को गाढ़ा बनाने के लिए आरारोट, यूरिया, चीनी, स्टार्च जैसे पदार्थ मिलाये जाते हैं.
कैंसर का भी खतरा
यूरिया किडनी पर असर डालता है. कास्टिक सोडा एसीडिटी और गैस्ट्रेटाइटिस जैसी बीमारियां पैदा करता है.
ज्यादा आरारोट शरीर में जाने पर कैंसर की आशंका.
गंदे पानी से पेचिश, एमिनिशियस, टायफाइड जैसी बैक्टीरीयल बीमारियां पैदा होती हैं. यह दूध में
मौजूद पोषक तत्व में भी कमी लाता है.