पटना: ठहरिए, नगर बस सेवा की बसों में चढ़ कर कहीं आप अपनी जान जोखिम में तो नहीं डाल रहे? राजधानी में दौड़ रही नगर सेवा की 20 फीसदी से अधिक बसें जजर्र हैं. इन बसों ने अपनी 15 साल की आयु पार कर ली हैं, फिर भी जुगाड़ टेक्नोलॉजी के सहारे फिट होने का सर्टिफिकेट लेकर रोड पर दौड़ रही हैं. बसों की हालत ऐसी है कि किसी में सीट फटी है तो किसी की बॉडी टूटी.
दरवाजे पर चढ़ते वक्त टूटे पार्ट-पुज्रे से आप घायल हो जायें, तो कोई आश्चर्य नहीं. बसों के अंदर की बॉडी के टूटे हुए चदरे से डेली कई यात्री जख्मी होते हैं. इतना ही नहीं, यात्रियों के बैठने की सीट भी सही सलामत नहीं है. बस की रफ्तार पकड़ने पर बॉडी हिलने लगती है. बस में शायद ही किसी खिड़की में शीशा नजर आये. ऐसी स्थिति में इस सर्दी के मौसम में लोग ठिठुरते हुए यात्र करने को विवश हैं. इससे भी खराब स्थिति बारिश के मौसम में होती है. यात्री भीगने से बच नहीं पाते.
प्रदूषण फैलाने में भी आगे
यही नहीं, यें बसें रात में बिना रोशनी के दौड़ती हैं. क्यों चौंक गये क्या? अधिकांश बसों में लगी लाइट खराब है. कमोबेश ब्रेक की भी यी स्थिति है. ब्रेक मारने पर शायद निर्धारित जगह पर रुके. अगर अचानक ऐसी कोई स्थिति आ जाये, तो दुर्घटना होनी तय है. शहर में प्रदूषण फैलाने में भी इनकी अहम भूमिका है. नगर बस सेवा में शामिल बसों में टाटा-407 की स्थिति सबसे अधिक जजर्र है. ऐसी बसें कुर्जी से गांधी मैदान वाया पटना जंकशन ज्यादा चल रही हैं.