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बिहार के होनहार इंजीनियरिंग व प्रबंधन की नौकरी छोड़ कर रहे खेती

* बिहार के होनहारों ने दिखायी राह, सैकड़ों लोगों को दे रहे रोजगार पटना :पढ़ि लिख के गोबर गिजत इ लड़की (पढ़ लिख कर यह लड़की गोबर मथेगी). मधुबनी के मधवापुर प्रखंड के सुजातपुर की मंदाकिनी ने 2009 में आइबीएस कोलकाता से एमबीए कर जब वर्मी कंपोस्ट यूनिट लगाने का फैसला किया, तो गांववाले के […]

* बिहार के होनहारों ने दिखायी राह, सैकड़ों लोगों को दे रहे रोजगार

पटना :पढ़ि लिख के गोबर गिजत इ लड़की (पढ़ लिख कर यह लड़की गोबर मथेगी). मधुबनी के मधवापुर प्रखंड के सुजातपुर की मंदाकिनी ने 2009 में आइबीएस कोलकाता से एमबीए कर जब वर्मी कंपोस्ट यूनिट लगाने का फैसला किया, तो गांववाले के ये शब्द थे. मंदाकिनी आज दर्जन से अधिक लोगों को रोजगार देने के साथ गांववालों की आय बढ़ाने में मदद कर रही है. इंजीनियरिंग और प्रबंधन और ऊंची डिग्री हासिल करनेवाले लड़के और लड़कियां खेती करने लगे हैं. इनके प्रयास से खेती को घाटे का काम कहनेवालों की धारणा बदलने लगी है. पेश है पटना से पंकज कुमार सिंह की रिपोर्ट.

* 25 लाख की लागत से लगाया वर्मी यूनिट

मंदाकिनी के पिता मणिभूषण प्रसाद द्विवेदी खेती करते थे, लेकिन जल जमाव के कारण अच्छी उपज नहीं मिलती. मंदाकिनी ने जब पिता को जैविक खेती की बात कही, तो पिता ने वर्मी कंपोस्ट यूनिट लगाने को कहा. वर्मी कंपोस्ट पर तत्कालीन बामेती निदेशक डॉ आरके सोहाने की पुस्तक पढ़ा. बाद में पटना आकर सोहाने से मिले और बड़े यूनिट लगाने की बात कही. सोहाने ने हौसला बढ़ाया और छोटे स्तर से शुरुआत की सलाह दी.

प्रबंधन डिग्रीधारी समस्तीपुर के विकास कुमार चौधरी के साथ मिल कर मंदाकिनी ने 2010 में छोटे स्तर पर वर्मी पिट लगाया. बाद में सरकार से अनुदान लेकर 25 लाख की लागत से वर्मी यूनिट लगाया. कई झंझावात से जूझ कर तीन वर्ष के अंदर ही आज सालाना 15 से 17 हजार क्विंटल वर्मी कंपोस्ट तैयार कर रहीं है. इससे मंदाकिनी को सालाना 10 से 12 लाख रुपये की आय होती है. दो दर्जन से अधिक लोगों को रोजगार भी मिला है. पशुपालन को भी बढ़ावा मिला है. गांव व आसपास के अधिकांश लोग जैविक खेती कर अधिक आय कमाने लगे.

* आइआइटियन हैं स्वप्निल सानू

बिहारशरीफ के स्वप्निल सानू ने 2011 में आइआइटी खड़गपुर से इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग में बीटेक की डिग्री ली. इंजीनियरिंग की नौकरी के बदले खेती का पेशा चुना. फार्म एंड फामर्स क्लब से जुड़ कर स्वप्निल किसानों को उपज का अधिक मूल्य दिलाने के लिए प्रयास करते हैं. स्वप्निल बताते हैं कि कॉलेज से निकलने के बाद एक वर्ष शिक्षा के अधिकार पर फेलोशिप करने के बाद बेहतर खेती के लिए काम शुरू किया. शुरू से ही बिहार के किसानों की आय बढ़ाने के लिए खुद कुछ योगदान का सपना था.

इंजीनियरिंग के अपने सीनियर साथी की प्रेरणा से काम शुरू किया. सबसे बड़ी बात है कि इस काम से आत्म संतोष मिल रहा है. किसानों के खेतों पर जाकर उन्हें समेकित खेती के लिए प्रोत्साहित करते हैं. साथ ही राजमा व अन्य औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रेरित करते हैं.

* ये भी जुड़े हैं खेती से

आइआइटी दिल्ली से डिग्री हासिल करनेवाले शशांक कुमार, आइआइटी खगड़पुर से डिग्री हासिल करनेवाले मनीष कुमार ने वैशाली में फार्म व फामर्स क्लब की स्थापना की. आइएसएम धनबाद से मैकेनिकल इंजीनियरिंग का डिग्री हासिल करने वाले आदर्श श्रीवास्तव और एमबीए डिग्रीधारी कौशलेंद्र कुमार भी खेती से जुड़े हैं.

* कम्प्यूटर इंजीनियर हैं अमरेंद्र सिंह

रोहतास के डेयरी ऑन सोन स्थित सखरा गांव के 22 वर्षीय अमरेंद्र सिंह एनआइटी जमशेदपुर से कम्प्यूटर इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है. बड़ी कंपनियों के ऑफर ठुकरा कर गांव में खेती कर रहे हैं. किसानों को आर्थिक आय बढ़ाने के लिए धान व गेहूं के साथ ही सब्जी, राजमा और औषधीय पौधों की खेती के लिए लोगों को प्रेरित किया. किसानों के उत्पाद की मार्केटिंग व्यवस्था को दुरुस्त किया.

किसानों के चावल को स्थानीय बाजार की अपेक्षा पश्चिम बंगाल के व्यापारियों से ऊंची कीमत मिल जाती है. अमरेंद्र बताते हैं राजमा की खेती से अच्छी आमदनी हुई. अश्वगंधा की खेती करायी. फार्म व फामर्स संगठन से जुड़ कर इंजीनियरिंग व ऊंची डिग्री हासिल करनेवाले युवा किसानों का उत्साह बढ़ा रहे हैं. खेती में ऐसे युवाओं के जुड़ने से किसानों का सम्मान भी बढ़ रहा हैं.

* लैपटॉपवाले मुखिया के नाम से फेमस

बेगूसराय मंसूरचक के नयपुर गांव के स्वर्णिम सोलंकी कंपनी सेक्रेटरी का कोर्स किया है. स्वर्णिम बताते हैं कि जीरो टिलेज तकनीक से सोयाबीन की खेती की. सूखे की स्थिति में भी सोयाबीन कारगर है. सोयाबीन सहित अन्य फसल की खेती से सालाना छह से आठ लाख रुपये की आय होती है. स्वर्णिम की खेती से गांव व आसपास के किसान भी प्रेरित हो रहे हैं.

* इंगलैंड से किया है मैनेजमेंट

कटिहार के हसनपुर प्रखंड के रामपुर गांव के आनंद चौधरी ने इंगलैंड के लंकास्टर यूनिवर्सिटी प्रबंधन की डिग्री हासिल की. लंदन में दो लाख रुपये प्रतिमाह की नौकरी छोड़ गांव में 18 एकड़ की जमीन पर दुधिया मालदह आम के 3200 पौधे लगाया है. आनंद बताते हैं गांव और आसपास के गांवों को खेती के मामले में देश का मॉडल बनाने का सपना बचपन से ही था.

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