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मगध विश्वविद्यालय फर्जी !

पटना: रोजगार देनेवाली देश की बड़ी कंपनियों में एक टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) ने मगध विश्वविद्यालय, बोधगया को ही फर्जी करार दे दिया है. कंपनी ने बिहार में काम कर रहे अपने पांच कर्मियों को सिर्फ इसलिए नौकरी से निकाल दिया कि उन्होंने मगध विवि से डिग्री ले रखी थी. रिटेनर पद पर हुई थी […]

पटना: रोजगार देनेवाली देश की बड़ी कंपनियों में एक टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) ने मगध विश्वविद्यालय, बोधगया को ही फर्जी करार दे दिया है. कंपनी ने बिहार में काम कर रहे अपने पांच कर्मियों को सिर्फ इसलिए नौकरी से निकाल दिया कि उन्होंने मगध विवि से डिग्री ले रखी थी.

रिटेनर पद पर हुई थी बहाली : छह साल पहले एक सितंबर, 2007 को खगौल के सुमित वर्मा टीसीएस में इंटरव्यू देकर रिटेनर पद पर बहाल हुए थे. उनके बाद अलग-अलग तारीखों को चार अन्य लोग संजय कुमार चंद्रा, शाहनवाज अशरफी, राजेश सिंह और सैयद ताबिश की भी नियुक्ति हुई. सुमित ने बताया कि मैंने 30 अप्रैल, 2010 तक रिटेनर के पद पर काम किया. इसके बाद एक मई, 2010 से मुङो बिजनेस एसोसिएट बना कर चेन्नई की कंपनी आर्गी स्टाफिंग सर्विसेज के साथ लगा दिया गया. मगर, वेतन भुगतान टीसीएस ही करती रही.

अचानक मिला नोटिस : राजेश सिंह ने बताया कि अचानक मुङो 20 जून, 2013 को इ-मेल मिला, जिसमें उनका बीजीसी (बैकग्राउंड चेक फॉर्म) निगेटिव बताते हुए नौकरी से तत्काल हटाये जाने का नोटिस दिया गया. इससे पहले 14 जून को सुमित वर्मा को भी ऐसा ही नोटिस मिला था. इ-मेल में कंपनी के सीनियर एचआर हेड आनंद बरोत ने जूनियर एचआर अधिकारी अपर्णा के हवाले से मिली जानकारी के आधार पर कहा कि मैंने अर्पणा से समझा है कि दोनों अभ्यर्थी जिस विवि से पढ़े हैं, वह विवि टीसीएस की फेक लिस्ट में शामिल है. इस केस में कुछ नहीं किया जा सकता. उन्होंने इस आधार पर दोनों उम्मीदवारों को 15 जून तक हटाने का निर्देश दिया.

नहीं मिला इ-मेल का जवाब
अचानक मिले इस इ-मेल से परेशान दोनों कर्मियों ने अपने सीनियर अधिकारियों से इस बाबत जानकारी लेनी चाही, मगर उनको जवाब नहीं मिला. किसी भी अधिकारी ने उनके इ-मेल का जवाब तक नहीं दिया. इसके बाद 15 जून को उनकी सेवा समाप्त कर दी गयी.

मगध विवि से मांगा जवाब
इसके बाद उन्होंने आरटीआइ के तहत मगध विवि के लोक सूचना पदाधिकारी से विवि की मान्यता को लेकर जवाब मांगा. जवाब में लोक सूचना पदाधिकारी ने बताया कि एक मार्च, 1962 से संचालित मगध विवि को यूजीसी से मान्यता प्राप्त है. किसी संस्था द्वारा मगध विवि को फेक विवि घोषित किया जाना नियम के विरुद्ध है. वैधानिक तौर पर ऐसा करने के लिए वे अधिकृत एवं सक्षम भी नहीं हैं. इसके बाद अभ्यर्थियों ने पटना हाइकोर्ट की वकील कुसुम लता दास के माध्यम से कंपनी को नोटिस भेजवाया, मगर उसका जवाब भी अब तक नहीं मिल सका है. कोई भी रास्ता नहीं निकलता देख पांचों अभ्यर्थी कानूनी लड़ाई का मन बना रहे हैं.

बिहार में कई क्षेत्रों में काम कर रही टीसीएस
टीसीएस बिहार में कई क्षेत्रों में काम कर रही है. कंपनी ने बिहार में इ-गवर्नेस की प्रोजेक्ट ले रखी है. इसके साथ ही सरकारी कार्यालयों को पेपरलेस बनाने की प्रोजेक्ट आइडब्ल्यू डीएमएस (इंटीग्रेटेड वर्क फ्लो डॉक्यूमेंट मैनेजमेंट सिस्टम) और व्यापारियों को टिन नंबर अलॉट करने की वैट प्रोजेक्ट पर भी काम कर रही है. निकाले गये कर्मियों में सुमित वर्मा और राजेश सिंह आइडब्ल्यू डीएमएस प्रोजेक्ट से जुड़े थे और सरकारी कार्यालयों को पेपरलेस कैसे करें, इसको लेकर अधिकारियों के समक्ष प्रेजेंटेशन देते थे. सुमित ने मगध विवि के प्रतिष्ठित एएन कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की थी.

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