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कहीं से भी छह घंटे में राजधानी

बिहार के बारे में कहा जाता था कि यहां कुछ भी संभव नहीं है. खासकर झारखंड के अलग होने के बाद कहा गया कि यहां सिर्फ बालू ही रह गया है. लेकिन, बदलाव के आठ साल में राज्य गवर्नेस और डेवलपमेंट के मोरचे पर लगातार आगे बढ़ रहा है. वह भी अपने दम पर. नीतीश […]

बिहार के बारे में कहा जाता था कि यहां कुछ भी संभव नहीं है. खासकर झारखंड के अलग होने के बाद कहा गया कि यहां सिर्फ बालू ही रह गया है. लेकिन, बदलाव के आठ साल में राज्य गवर्नेस और डेवलपमेंट के मोरचे पर लगातार आगे बढ़ रहा है. वह भी अपने दम पर. नीतीश सरकार के आठ वर्ष 24 नवंबर को पूरे हो रहे हैं. प्रस्तुत है विकास की कहानी की दूसरी कड़ी.

पटना: बिहार में पिछले आठ वर्षो में निर्माण के क्षेत्र में बड़े बदलाव हुए. सड़क व पुलों के निर्माण की गति तेज हुई. बड़ी इमारतें बननी शुरू हुईं. रीयल एस्टेट के क्षेत्र में भारी निवेश हुआ. सरकार ने किशनगंज जैसे दूर जिले से भी छह घंटे में राजधानी पहुंचने की योजना के तहत सड़क और पुलों के निर्माण की योजना बनायी है. बिहार में नेशनल हाइवे आज भी 37.28 प्रतिशत सिंगल व मिडिल लेनवाले हैं.

शेष एनएच डबल व फोरलेन वाले हैं. 2011 से स्वर्णिम चतुभरुज योजना के तहत प्रथम चरण में 205.70 किमी एनएच को फोरलेन में तब्दील किया गया है. बिहार सरकार ने इस्ट-वेस्ट कॉरिडोर की 513 किमी नेशनल हाइवे को फोरलेन में तब्दील करने के भारतीय राष्ट्रीय राज मार्ग उच्च पथ प्राधिकरण को हस्तांतरित किया है. इसका 90 प्रतिशत काम हो चुका है. यूपी की सीमा पर 120 किलो मीटर और झारखंड सीमा से सटे 85 किलोमीटर नेशनल हाई-वे को भी छह लेन में तब्दील करने की योजना है. पिछले आठ वर्षो में 3214 किलोमीटर नेशनल हाइवे का उन्नयन कराया गया है.

शेष सड़कों का उन्नयन हो जाने के बाद किसी भी जिले से छह घंटे में राजधानी पटना पहुंचने का रास्ता साफ हो जायेगा. बिहार में स्टेट हाइवे का भी आठ वर्षो में कायाकल्प कराया गया है. 63.79 प्रतिशत स्टेट हाइवे फोर और डबल लेन में तब्दील किये गये हैं. अभी भी 1023.92 और 739.95 किलोमीटर स्टेट हाइवे सिंगल और मिडिल-लेन वाले हैं. सरकार ने 4857 किलोमीटर स्टेट हाइवे को डबल लेन में बदलने की महात्वाकांक्षी योजना शुरू की है. राष्ट्रीय सम विकास योजना और एशियन डेवलपमेंट बैंक ऋण से 183.40 किलोमीटर स्टेट हाइवे का निर्माण भी कराया गया है. स्टेट हाई-वे के निर्माण और उन्नयन के काम में मानी हुई निर्माण कंपनियों को लगाया गया है.

केंद्रीय लोक निर्माण विभाग और इरकॉन जैसी संस्थाएं वैशाली, समस्तीपुर, दरभंगा और मधुबनी में स्टेट हाइवे का निर्माण कर रही हैं. हासिये पर चल रही 2581 किलोमीटर जिला सड़कों को स्टेट हाइवे में शामिल किया गया है. ऐसी सड़कों को डबल-लेन वाले स्टेट हाइवे में तब्दील करने की योजना है. 635 किलोमीटर जिला सड़कें डबल-लेन में तब्दील हो गयी हैं. इसके लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक ने ऋण मुहैया कराया है. जिला सड़कों के भी उन्नयन का काम आठ वर्षो में बड़े पैमाने पर हुआ है. नाबार्ड,भारत-नेपाल सीमा समानांतर सड़क विकास कार्यक्रम,राज्य योजना और ग्रामीण अधिसंरचना विकास कोष से जिला सड़कों का कायाकल्प कराया जा रहा है. गैर योजना मद से भी 383.17 किलोमीटर जिला सड़कों का उन्नयन कराया जा रहा है. सूबे में छोटे-छोटे पुलों का भी बड़े पैमाने पर निर्माण हो रहा है. 25 लाख की लागत से मुख्यमंत्री सेतु निर्माण योजना के तहत छोटे-छोटे पुलों का निर्माण कराया जा रहा है. अधिक लागत वाले पुलों का निर्माण पुल निर्माण निगम करा रहा है.

बन रहे मेगा ब्रिज

गोपालगंज में गंडक नदी पर : 317. 43 करोड़

प.चंपारण में धनहा-रतवल पुल: 358. 67 करोड़

कोसी नदी पर नवगछिया में : 367. 81 करोड़

कोसी पर बलुआहाघाट में : 531. 15 करोड़

आरा-छपरा में गंगा पर : 676.00 करोड़

मुख्यमंत्री सेतु निर्माण योजना के तहत बने 67 पुल

विभिन्न मदों से 57 पुलों का भी हो रहा निर्माण

बदलाव के आठ साल

205.70 किमी एनएच फोरलेन में तब्दील

यूपी-झारखंड सीमा पर 205 किमी एनएच

63.79 प्रतिशत स्टेट हाइवे फोर और डबल लेन में तब्दील

एसएच में शामिल हुईं 2581 किमी जिला सड़कें

इन पुलों का हुआ निर्माण

सोन नदी पर अरवल-सहार पुल

पटना में चिरैयाटाड़ पुल

पटना में मीठापुर पुल

पटना में कुम्हरार फ्लाई ओवर

पटना में अगमकुआं फ्लाई ओवर

बिहार में सड़कें

एनएच: 4200. 71 किमी

राजकीय उच्च पथ : 4857 किलोमीटर

वृहद जिला पथ : 9030. 59 किलोमीटर

अभी बहुत कुछ करना बाकी
आधारभूत संरचना के क्षेत्र में सबसे अहम योगदान सड़क का है. गांधी सेतु पर प्राय: जाम लगा करता है. हाजीपुर से पटना आने में छह से आठ घंटे लग जाते हैं. केंद्र सरकार ने डेढ़ साल में पुल की मरम्मत करने की बात कही थी. यह काम समय पर पूरा नहीं हो सका. बिहार सरकार के समक्ष इस तरह की कई चुनौतियां हैं. नेशनल हाइवे के मरम्मत की गति संतोषजनक नहीं है. पीपराकोठी-रक्सौल को उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है.

जबकि, यह सड़क अंतरराष्ट्रीय है. ऐसी ही स्थिति शाखा सड़कों की है. अरेराज से छपवां के बीच सड़क निर्माण पर 14 करोड़ रुपये खर्च हुए, लेकिन बड़ी गाड़ियों के परिचालन के कारण यह जजर्र हो चुका है. गांधी सेतु का विकल्प दीघा रेल सह सड़क सेतु बन सकता है, लेकिन इसकी प्रगति असंतोषजनक है. रेलवे परियोजना समय पर पूरी हो,यह बेहद जरूरी है. हाजीपुर से सुगौली रेल खंड का शिलान्यास 10-12 साल पहले हुआ, लेकिन अब तक निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका. इनके बन जाने से इस क्षेत्र में औद्योगिक क्रांति हो सकती थी. बिजली भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

जरूरत के अनुसार प्रदेशवासियों को बिजली मिले. इसके लिए सरकार को उपलब्धता बढ़ानी होगी. सिंचाई की अनदेखी नहीं करनी चाहिए. रोड मैप में बनी योजनाओं का सही तरीके से क्रियान्वयन करना होगा. सिंचाई के क्षेत्र में काफी संभावनाएं हैं. अभी जो सिंचाई का दायरा बताया जाता है, वास्तविकता में वह सही नहीं है. बिहार की खेती अब भी मॉनसून पर निर्भर है. लघु सिंचाई के क्षेत्र में भी काफी काम करना है. बाढ़ की समस्या अब तक दूर नहीं हो सकी है.

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