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पिछड़ते बिहारवासियों! आप इन्हें भी जानिए

संदर्भ: बिजली संकट -हरिवंश- वर्ष 1991 आते-आते बंगाल और खास कर कलकत्ता में बिजली संकट उसी तरह बढ़ गया था, जैसा कई वर्ष पहले बिहार (खास तौर) से रांची और छोटानागपुर) में, बंगाल में जब बिजली संकट बहुत चरम पर था, तब भी आज के बिहार की स्थिति से 1991 के जनवरी तक वहां बिजली […]

संदर्भ: बिजली संकट

-हरिवंश-

वर्ष 1991 आते-आते बंगाल और खास कर कलकत्ता में बिजली संकट उसी तरह बढ़ गया था, जैसा कई वर्ष पहले बिहार (खास तौर) से रांची और छोटानागपुर) में, बंगाल में जब बिजली संकट बहुत चरम पर था, तब भी आज के बिहार की स्थिति से 1991 के जनवरी तक वहां बिजली की स्थिति कई गुना बेहतर थी. बिहार में बिजली संकट गहराया, तो यहां के बिजली मंत्री तुलसी मेहता ने 1992 में कलकत्ता में पत्रकारों को बताया कि हमारे समर्थक गांवों में रहते हैं, उन्हें बिजली की जरूरत नहीं है. (संयोगवश उल्लेख करना प्रासांगिक होगा. श्री मेहता की कई बसें हाजीपुर से चलती हैं.

बिजली मंत्री बनने के बाद उनके बसों की संख्या काफी बढ़ गयी है.) बिहार के बिजली मंत्री जब यह फरमा रहे थे, तब बंगाल की माकपा सरकार में 25 जून 1991 को नये बिजली मंत्री के रूप में डॉ शंकर सेन को शपथ दिलायी जा रही थी. डॉ शंकर सेन के शपथ ग्रहण के दो-चार दिनों के अंदर ही बंगाल में ‘ग्रिड फेल’ होने की दूसरी घटना हुई. अंधकार पसरता जा रहा था.डॉ सेन ने इस ‘अंधकार’ को दूर करने की चुनौती स्वीकारी. पश्चिम बंगाल विद्युत बोर्ड में उन्होंने तुरंत तकनीकी विशेषज्ञों की नियुक्ति की. सुबीर दासगुप्ता बोर्ड के प्रमुख बनाये गये.

बीएन बोस की नियुक्ति चेयरमैन के रूप में हुई. दुर्गापुर विद्युत परियोजना की क्षमता में वृद्धि की गयी. बिजली के विशेषज्ञ संथालडीह पावर प्लांट को बहुत पहले ही खारिज कर चुके थे. पर डॉ सेन ने यहां भी आधुनिकीकरण और प्लांट के रख-रखाव बेहतर करने का अभियान साथ-साथ चलाया. उत्पादकता बढ़ायी.

बिजली के क्षेत्र में बंगाल में चमत्कार हुआ. जो बंगाल 1991 तक बिहार की स्थिति में पहुंच चुका था. वह अब न सिर्फ अधिक विद्युत उत्पादन कर रहा है, बल्कि दिल्ली, असम और उड़ीसा को अतिरिक्त बिजली उत्पादन आपूर्ति कर रहा है. यह भी नहीं हुआ कि तीन वर्षों में डॉ सेन ने नये प्लांट खड़ा कर दिये या आर्थिक समृद्धि के कारण स्थिति सुधार दी. वह लगातार अपने काम, उत्पादकता और प्रशासन को ठीक करने में डूब गये. 1990 में बंगाल में बिजली की मांग और उत्पादन में 350 मेगावाट का फर्क था.

जिसे डॉ सेन ने दूर किया. फिर भी वह बहुत संकोच और विनम्रता के साथ कहते हैं, ‘लेकिन मैंने अपने लक्ष्य का महज 25 फीसदी ही पाया है.’ वह गांवों के बिजलीकरण से संतुष्ट नहीं हैं, और बंगाल के गांवों में बहुत कुछ करना चाहते हैं.

बिहार के जिन गांवों में बिजली के खंभे पहुंच गये हैं, उनमें से क ई गांव ऐसे हैं, जहां कभी बिजली पहुंची ही नहीं. जिन गांवों में बिजली पहुंचती भी है, वहां 24 घंटे में बमुश्किल एकाध घंटे.

पर बंगाल में यह चमत्कार करनेवाले डॉ सेन कौन हैं?
डॉ सेन खुद इंजीनियर हैं. वह जादवपुर विश्वविद्यालय के कुलपति रहे हैं. बीइ कॉलेज के इंजीनियरिंग स्नातक. लंदन के इंपीरियल कॉलेज ऑफ साइंस एंड टेक्नॉलाजी से उन्होंने पीएचडी की है. अखबारवाले उनके पास नहीं जाते, क्योंकि मीडिया से वह दूर रह कर अपना काम करने में विश्वास करते हैं. पिछले दिनों एक अखबारनवीश को उन्होंने कहा, ‘मुझे जीवन में कोई बड़ी आकांक्षा नहीं है. और न मैं कोई प्रचार करता हूं.’
डॉ सेन पावर प्लांटों का औचक निरीक्षण करते हैं. लोकल ट्रेनों से यात्रा कर अचानक बिजली के सबस्टेशनों पर जा पहुंचते हैं. छुट्टी के दिन वह सरकारी गाड़ी पर नहीं चढ़ते. कलकत्ता की भीड़ भरी बसों और मिनी बसों में यात्रा करते हैं.इस संदर्भ में एक पत्रकार ने उन्हें बार-बार कुरेदा, तो उन्होंने कहा, ‘मैं सामान्य और औसत दर्जे का आदमी हूं.’ वह युवा पीढ़ी की मूल्यवीहनता से चिंतित हैं, पर मानते हैं कि हमने उनके सामने कोई आदर्श नहीं रखा. डॉक्टर सेन ने अपने घर में ’इनवर्टर’ या ‘जेनरेटर’ नहीं रखा है. कभी बिजली कटती है, तो मोमबत्ती जला कर काम करते हैं.
हावड़ा स्टेशन पर अपने घरवालों को लेने या पहुंचाने भी वह अक्सर आते-जाते हैं. पर सरकारी गाड़ी से नहीं. कोई उनकी बिजली उत्पादन में उपलब्धि की चर्चा करता है, तो वह कहते हैं, ‘कलकत्ता ही, पश्चिम बंगाल नहीं है.’ वह खुद अपने विभाग की कमियों को गिनाते हैं. कहते हैं कि जिलों में वितरण व्यवस्था बहुत खराब है, उसे हम ठीक करना चाहते हैं. अपनी उपलब्धि के लिए एक शब्द नहीं कहते.
बिहारवासियों (अगर कोई बिहारी है. यहां तो जातियों, उपजातियों में बंटे लोग हैं), आपके राज्य में पक्ष या विपक्ष में कैसे लोग हैं? जो अपराध करे-कराये, लूटपाट करे-कराये, जिसे अस्त्र-शस्त्र, तस्करी, झूठ, फरेब, जनता के साथ धोखाधड़ी में जितनी महारत है, वह उतना ही बड़ा नेता है. जिसे पढ़ने-लिखने, तेजी से बदलती दुनिया के संबंध में जानकारी रख कर अपने राज्य को बेहतर बनाने से परहेज है, वह उतना ही कुशल राजनेता है. आपके विधायक-सांसद क्या करते-कराते हैं, इसका ब्योरा जानिए, नहीं तो आपका राज्य अन्य राज्यों के मुकाबले पांच-दस वर्षों में सबसे पिछड़ा, क्रूर और न रहने योग्य बनेगा. अपने बिजली मंत्री (जो कहते हैं कि बिजली संकट नहीं है. हमारे समर्थक गांवों में रहते हैं) की तुलना बंगाल के बिजली मंत्री से कर, कम-से-कम डॉ सेन का अपमान आप नहीं करेंगे.

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