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लक्ष्मणपुर बाथे मामले में उच्च न्यायालय का फैसला अस्वीकार्य

नयी दिल्ली : वाम दलों ने पटना उच्च न्यायालय द्वारा 1997 के लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार मामले के सभी 16 आरोपियों को बरी करने के आदेश को आज ‘‘अस्वीकार्य’’ बताया और नीतीश कुमार सरकार से कहा कि वह इसके खिलाफ अपील करे. माकपा पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा, ‘‘ पटना उच्च न्यायालय की खंडपीठ […]

नयी दिल्ली : वाम दलों ने पटना उच्च न्यायालय द्वारा 1997 के लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार मामले के सभी 16 आरोपियों को बरी करने के आदेश को आज ‘‘अस्वीकार्य’’ बताया और नीतीश कुमार सरकार से कहा कि वह इसके खिलाफ अपील करे. माकपा पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा, ‘‘ पटना उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा लक्ष्मणपुर बाथे मामले के सभी आरोपियों को बरी करना एक अस्वीकार्य फैसला है. निचली अदालत ने 16 आरोपियों को मौत की सजा दी थी तथा दस अन्य को आजीवन कारावास की सजा दी थी.’’पार्टी ने कहा, ‘‘अब उन्हें संदेह का लाभ दिया जा रहा है जबकि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि गांव (बिहार के अरवल जिले) में 58 दलितों का नरसंहार हुआ.’’

बयान के अनुसार ‘‘यह महज एक इत्तेफाक है कि उंची जाति वाली निजी सेना द्वारा दलितों की जान लेने के एक अन्य मामले में आरोपियों को बरी कर दिया गया. ’’ पार्टी ने बिहार सरकार से मांग की कि ‘‘इस त्रुटिपूर्ण निर्णय के खिलाफ अविलंब अपील की जाये.’’ भाकपा माले (लिबरेशन) के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा कि बाथे नरसंहार फैसला ‘‘एक न्यायिक नरसंहार है जो बथानीटोला, नगरी एवं मियांपुर नरसंहार मामलों में इसी तरह बरी किये जाने के बाद आया है.’’ उन्होंने उच्च न्यायालय द्वारा ‘‘थोक में बरी किये जाने’’ के बाद मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग की. उन्होंने कहा कि इस फैसले से उनके ‘‘पीड़ितों के लिए न्याय’’ के दावों के पीछे का क्रूर सत्य बेनकाब हो गया है.

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