पटना: छोटे-छोटे निवेशकों के साथ धोखाधड़ी करनेवाली जालसाज कंपनियों पर सरकार लगाम कसेगी. सरकार ने इसके लिए बिहार जमाकर्ताओं के हितों के लिए 2002 में बने अधिनियम को और धारदार बनाया है. अधिनियम में नुकीले दांत लगाये गये हैं. ऐसे दांतों की संख्या भी बढ़ायी गयी है. ये बातें बुधवार को वित्त विभाग के प्रभारी मंत्री विजय चौधरी ने कहीं. वह विधानसभा में ‘बिहार जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण और वित्तीय संस्थाओं में संशोधन विधयेक-2013’ पर सरकार का पक्ष रख रहे थे. उन्होंने कहा कि इस मामले में सरकार की मंशा स्पष्ट है.
संशोधन में सक्षम पदाधिकारी की परिभाषा बदली गयी है. जिला समाहर्ता व अपर जिला समाहर्ता को सक्षम पदाधिकारी बनाया गया है. साथ ही नॉन बैंकिंग कंपनियों द्वारा अचल संपत्ति, पौधारोपण, पशुपालन, रिसोर्ट व मनोरंजन पार्क आदि के नाम पर धनराशि लेने पर भी रोक लगायी गयी है. नॉन बैंकिंग कंपनी खोलने के लिए अब मेनडेटरी इन्फॉर्मेशन देना होगा. ऐसी संस्थाओं को पंजीकरण कराना होगा और लाइसेंस लेना होगा. इसके लिए सघन स्क्रीनिंग होगी, तब जाकर कंपनी चलानेकी अनुमति मिलेगी. पहले से काम कर रही कंपनियों को भी 30 दिनों के अंदर लाइसेंस लेना होगा. प्रभारी मंत्री ने कहा कि विपक्ष ने सहकारिता समितियों की गड़बड़ियों की जांच कराने का जो सुझाव दिया है, उस पर भी सरकार अमल कर रही है. कई गड़बड़ियों की जांच चल रही है. आर्थिक अपराध इकाई ने अब तक 53 मामले दर्ज किये हैं. सदन ने आज विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया.
बिल पर प्रतिपक्ष के नेता नंद किशोर यादव ने कहा कि सरकार की मंशा इस बिल से पूरी नहीं होगी. भाजपा विधायक अच्युतानंद ने कहा कि जेबीजी व हेलियस जैसी नॉन बैंकिंग कंपनियां लोगों के पैसे लेकर भाग चुकी हैं. अभी तक महज 25 लाख रुपये ही उपभोक्ताओं को लौटाये गये हैं. सीआइडी के पास जब से यह मामला गया है, लीपापोती हो रही है. उन्होंने सरकार से पूछा कि नॉन बैंकिंग कंपनियों को अनापत्ति प्रमाणपत्र देनेवाले अधिकारियों पर क्या कार्रवाई हुई? अरुण शंकर प्रसाद ने विधेयक पर और मंथन करने की सलाह दी. उन्होंने सहकारी समितियों को भी इस गिरफ्त में लेने की मांग की. भाजपा के अवनिश सिंह व राजद के दुर्गा प्रसाद ने भी कई संशोधन प्रस्ताव दिये, लेकिन सभी खारिज हो गये.