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पेंशन खातों में धोखाधड़ी

पटना: बुढ़ापे में आर्थिक सहायता के लिए चल रही स्कीम में धोखाधड़ी की बात सामने आ रही है. देश भर में चल रही ‘स्वावलंबन’ योजना में इसका खुलासा प्रारंभिक जांच में हुआ है. बिहार के किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया समेत अन्य सीमावर्ती जिलों में इसके कुछ मामले सामने आये हैं. घोटाला कितना बड़ा और किस स्तर […]

पटना: बुढ़ापे में आर्थिक सहायता के लिए चल रही स्कीम में धोखाधड़ी की बात सामने आ रही है. देश भर में चल रही ‘स्वावलंबन’ योजना में इसका खुलासा प्रारंभिक जांच में हुआ है. बिहार के किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया समेत अन्य सीमावर्ती जिलों में इसके कुछ मामले सामने आये हैं. घोटाला कितना बड़ा और किस स्तर का है, इसका आकलन अभी किया जा रहा है.

मामले की गंभीरता को देखते हुए अब तक सात एग्रीगेटरों के लाइसेंस को पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट ऑथोरिटी (पीएफआरडीए) रद्द कर चुकी है. इनमें कुछ एग्रीगेटर बिहार से भी जुड़े हुए हैं. अक्तूबर, 2010 से शुरू हुई इस योजना से देश भर में अब तक 33 लाख 74 हजार लोग जुड़ चुके हैं. बिहार में शामिल लोगों की संख्या एक लाख सात हजार है.

इस मामले को लेकर हाल में पेंशन फंड रेगुलेटरी एंड डेवलपमेंट ऑथोरिटी (पीएफआरडीए) के उच्च अधिकारियों की सिडबी, संबंधित बैंकों और संस्थानों के साथ खास बैठक हुई है. इस बैठक में स्वावलंबन योजना से जुड़ी कई संस्थानों के लोगों के साथ धोखाधड़ी की बात सामने आयी है. पीएफआरडीए के अधिकारियों ने कहा कि अगर उनके पास इसकी कोई लिखित शिकायत करेगा, तो संस्थान का लाइसेंस रद्द करने के साथ-साथ सख्त कार्रवाई की जायेगी. साथ ही इस योजना से जुड़े तमाम संस्थानों की कार्य प्रणाली पर सख्त नजर रखने को कहा है.

गड़बड़ी की करें शिकायत

योजना से जुड़े जिस व्यक्ति को गड़बड़ी की आशंका हो, वे पहले संबंधित बैंक (जहां से उनका खाता खुला है) से जाकर अपने प्रैन कार्ड के माध्यम से अपने खाते की पूरी जानकारी ले सकते हैं. धोखाधड़ी की शिकायत या किसी तरह की मदद के लिए पीएफआरडीए के टॉल फ्री नंबर- 1800222080 और 1800110708 पर फोन करें.

योजना : जितना जमा करोगे, उतना सरकार भी देगी

‘राष्ट्रीय पेंशन योजना- स्वावलंबन’ से किसी तरह के असंगठित क्षेत्र में काम करनेवाला या कोई भी गरीब व्यक्ति जुड़ सकता है. इस योजना से जुड़नेवाले व्यक्ति का पहले से किसी तरह का पीएफ, इपीएफ, जीपीएफ या इस तरह का कोई खाता नहीं होना चाहिए. इसके तहत व्यक्ति साल में कम-से-कम एक हजार और अधिकतम 12 हजार रुपये जमा कर सकता है. इतने ही रुपये सरकार भी संबंधित व्यक्ति के खाते में जमा करती है. खाता खुलवाने वाले व्यक्ति की न्यूनतम उम्र 18 और अधिकतम 60 वर्ष होनी चाहिए. जो व्यक्ति जितने रुपये जितने साल तक जमा करेगा, उसे उसके हिसाब से 60 साल के बाद पेंशन मिलेगी. जो व्यक्ति इस योजना के तहत अपना खाता खुलवाता है, उसे कोई पासबुक नहीं मिलती है, बल्कि एटीएम की तरह प्लास्टिक का पीआरएएन या प्रैन (परमानेंट रिटायरमेंट एकाउंट नंबर) कार्ड मिलता है. इसमें व्यक्ति के फोटो से लेकर तमाम जानकारियां लिखी रहती हैं.

बैंक में कम हुए जमा

राज्य में योजना के संचालन के लिए 28 एग्रीगेटर (समूहक या एक तरह का माध्यम या एजेंट) नियुक्त किये गये हैं. एग्रीगेटरों की सूची में एलआइसी, मध्य बिहार ग्रामीण बैंक, बिहार ग्रामीण बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र समेत कई बैंकों के अलावा अलंकित, कैसफोर, बंधन, सैजा, सी-डॉट समेत अन्य बड़े संस्थान भी शामिल हैं. बैंक या बड़े संस्थानों ने यह काम करने के लिए छोटे संस्थानों को इसकी जिम्मेवारी दे रखी है. इन्हें सब-एग्रीगेटर कहते हैं. इनकी जिम्मेवारी आम लोगों के पास जाकर पैसे लेने की होती है. ये सब-एग्रीगेटरों दिहाड़ी मजदूरी या अन्य छोटे-मोटे रोजगार करनेवालों से जितने पैसे ले रहे हैं, उससे कम पैसे इनके खातों में जमा कर रहे हैं. बीच के रुपये हड़प जा रहे हैं.

सात के लाइसेंस रद्द

देश भर में इस योजना के तहत गड़बड़ी करने के अरोप में पीएफआरडीए ने सात एग्रीगेटर के लाइसेंस रद्द किये हैं. इसमें स्पैनको लिमिटेड, सहज ए- विलेज या सेरी सहज ए-विलेज, मध्य प्रदेश स्टेट इलेक्टॉनिक्स डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड, बंधन कोन्नागर, फाइनेंसियल इंक्लूजन नेटवर्क एंड ऑपरेशन लिमिटेड, सोसायटी फॉर एजुकेशन एंड इकोनॉमिक्स डेवलपमेंट (सीड) और असोमि फाइनेंस प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं.

इसलिए बहुत शिकायतें सामने नहीं आ रहीं

स्वावलंबन योजना से अधिकतर असंगठित क्षेत्र के कामगार या मजदूर वर्ग के लोग ही जुड़े हैं. इन्हें यह पता नहीं होता कि अगर गड़बड़ी होती है, तो इसकी शिकायत कहां करनी है. दूसरा, ये नियमित तौर पर अपने खाते की जांच नहीं कर पाते. तीसरा, कम शिक्षित होने के कारण इन्हें हिसाब करने में समस्या होती है. चौथा, कई लोगों को योजना की बिना पूरी जानकारी लिये इससे जुड़े गये हैं. जानकारी की कमी और जागरूकता नहीं होने का कई छोटे संस्थान इसका फायदा उठा रही हैं. इस काम में जुड़े सब-एग्रीगेटर की विस्तृत जानकारी सिर्फ इनके एग्रीगेटरों को ही होती है. इससे कोई शिकायत मिलने पर इनकी जांच प्रशासनिक स्तर से करने में दिक्कत होती है.

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