पटना: तारामंडल सभागार में आयोजित तीन दिवसीय भारतीय कविता समारोह के उद्घाटन समारोह में मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि मैं न तो कवि हूं, न विद्वान. मैं मानता हूं कि मुङो समारोह के उद्घाटन के लिए एक परंपरा के तहत बुलाया गया है. समारोह में मैं क्या कहूं, क्या न कहूं, समझ में नहीं आ रहा है.
बचपन में सुनता था ‘जहां न जाये रवि-वहां जाये कवि.’. कवि-साहित्यकार तो समाज के दर्पण होते हैं. हम जैसे कम बुद्धि वालों को कवि-साहित्यकार समझाये. भारतीय कविता समारोह में कवियों का दर्शन कर हम तर गये. उन्होंने कहा कि कवि-साहित्यकार सिर्फ छायावादी या रहस्यवादी कविताएं ही नहीं लिखें, बल्कि गरीबों का यर्थाथवादी चित्रण भी करें.
कवि-साहित्यकार दिखाते हैं रास्ता : उन्होंने कहा कि कविता या साहित्य समारोहों के आयोजन के लिए बिहार सरकार हर मोरचे पर मदद करेगी. उन्होंने कहा कि जब कभी हम जैसे लोग अहंकार व भूल से कोई गलती कर बैठते हैं, तो कवि-साहित्यकार रास्ता दिखाते हैं. कवि-साहित्यकारों की महत्ता को कोई समाप्त नहीं कर सकता.
लेखनी की दिशा बदल देते हैं साहित्यकार : मुख्यमंत्री ने कहा कि कभी-कभी कवि-साहित्यकार भी किसी खास से प्रेरित हो कर अपनी लेखनी की दिशा बदल देते हैं. कई पात्रों के बारे में पक्षपातपूर्ण लेखन का मामला सामने आया है. रामायण में लक्ष्मण की पत्नी की त्याग-तपस्या का उल्लेख कम ही हुआ है. उसी तरह महाभारत में कर्ण को भी महत्व नहीं मिला. उन्होंने कहा कि भारतीय कविता समारोह के आयोजन का श्रीगणोश करा कर पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बड़ा काम किया है. उन्होंने विकास, सामाजिक समरसता और साहित्य के मोरचे पर जो काम किया, वह एक उदाहरण बन गया है. बिहार अब पहले वाला बिहार नहीं रह गया. इस मौके पर उन्होंने उड़िया कवि रामाकांत रथ की पुस्तक ‘ ही राधा’ का विमोचन भी किया.
भाषा का विराट अवमूल्यन हो रहा : अशोक वाजपेयी
मशहूर कवि अशोक वाजपेयी ने कहा कि यदि बिहार न होता,तो हिंदी के लेखकों को लेखक होने का एहसास न होता. बिहार के लोगों में अच्छी-सच्ची कविता सुनने की ललक है. कविता का सच अधूरा सच है, जो पूरा श्रोताओं से होता है. व्यंग्य में उन्होंने कहा अच्छे दिन आ गये हैं, लेकिन भाषा का विराट अवमूल्यण हो रहा है. सच तो यह है कि शब्दों में कटौती हमारी मानवीयता की कटौती है. आज हम हिंसक समाज में रह रहे हैं. हर दिन आदिवासी, महिला, दलित, महादलित और अल्पसंख्यकों पर हिंसा हो रही है. दूसरे कोई नहीं मरते, हम ही मरते हैं. कविताएं हमे मनुष्य होने के नजदीक ले जाती है.
सलीके से रोटी खाना सिखाती है कविता : रॉय
विधान पार्षद व समारोह के अध्यक्ष राम वचन रॉय ने कहा कि पिछली बार की तुलना में इस समारोह में आठ अन्य भाषाओं के कवि-साहित्यकारों को बुलाया गया है. उन्होंने कहा कविता भले ही रोटी न देती हो, लेकिन सलीके से रोटी खाना सिखाती है. कवि सम्मेलन लोगों को वैचारिक खुराक देती है. सच तो यह है कि कविता का जनतंत्र हमारे संवैधानिक लोकतंत्र को मजबूत करता है. कविता की संस्कृति यदि हम बचा कर रखें, तो हमारी संस्कृति भी जीवित रहेगी. समारोह को उड़िया कवि रामाकांत रथ और कला-संस्कृति विभाग के सचिव आनंद किशोर ने भी संबोधित किया. समारोह का संचालन विकास कुमार झा कर रहे थे.