पटना: अपराधियों को जल्द सजा दिलाने की मुहिम अब दम तोड़ने लगी है. 2006 में शुरू हुए स्पीडी ट्रायल की मॉनीटरिंग अब पुलिस मुख्यालय के स्तर से लगभग बंद हो चुकी है.
वर्ष 2005 के अंत में नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार ने सूबे की कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करने और सक्रिय अपराधियों को उनके किये की सजा दिलाने के लिए स्पीडी ट्रायल का कांसेप्ट लाया था. लेकिन, पिछले डेढ़ साल से न तो राज्य पुलिस मुख्यालय और न ही राज्य सरकार के स्तर से इसकी मॉनीटरिंग की जा रही है. हालात यह है कि राज्य पुलिस मुख्यालय के पास वर्ष 2013 के जून के बाद राज्य भर में चल रहे स्पीडी ट्रायल के तहत कितने अपराधियों को सजा दिलायी गयी है, इसका भी कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है.
वर्ष 2006 के जनवरी से शुरू किये गये स्पीडी ट्रायल के तहत राज्य में पिछले साढ़े सात वर्षो में 83,302 अपराधियों को एक तय समय सीमा के अंदर कोर्ट से सजा दिलायी गयी थी. इसका ओड़िशा, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ व आंध्रप्रदेश जैसे राज्यों ने अनुसरण भी किया. लेकिन, स्पीडी ट्रायल के जन्मदाता बिहार में ही इसका असर कम हो चुका है. पहले राज्य के सभी 40 पुलिस जिलों के साथ-साथ रेल एसपी को भी हर महीने स्पीडी ट्रायल की रफ्तार के संबंध में रिपोर्ट भेजनी पड़ती थी और मुख्यालय स्तर से भी सभी एसपी के साथ समन्वय कर अपराधियों को एक निर्धारित समय सीमा के अंदर उनके अपराधों के लिए सजा दिलाने का टारगेट तय किया जाता था. विगत साढ़े सात वर्षो में ही स्पीडी ट्रायल के तहत राज्य भर में कुल 164 लोगों को फांसी और 12,585 को आजीवन कारावास की सजा सुनायी जा चुकी है.
स्पीडी ट्रायल को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही थी पुलिस
अपराधियों को कम समय में उनके किये की सजा दिलाने के लिए पुलिस मुख्यालय स्तर पर एडीजी (मुख्यालय) द्वारा इसकी मॉनीटरिंग की जाती रही है. वर्ष 2013 के जून तक के आंकड़े भी हर महीने पुलिस मुख्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध कराये जाते रहे हैं. स्पीडी ट्रायल के लिए सभी जिलों के एसपी को सख्त हिदायत दी गयी थी कि आर्म्स एक्ट से लेकर सं™ोय अपराधों के मामले में पुलिस एक समय सीमा के अंदर आरोपपत्र दायर कर सभी आरोपितों के खिलाफ मामले की सुनवाई ‘डे टुडे’ के आधार पर करने करने का आग्रह करेगी. इस संबंध में पुलिस कोर्ट को यह सूचित करेगी कि वह मामले की जांच पूरी कर चुकी है और इस मामले का स्पीडी ट्रायल कर उसका निबटारा करे. लेकिन, स्पीडी ट्रायल की मॉनीटरिंग की व्यवस्था ढीली होते ही अब जिलों के एसपी भी इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दे रहे.