पटना: राज्य में अब पत्थर खनन उन्हीं जिलों में होगा, जहां पांच हेक्टेयर या उससे ज्यादा के कलस्टर मौजूद हैं. फिलहाल ऐसे चार जिलों – शेखपुरा, नवादा, गया और बांका की पहचान की गयी है.
सासाराम, औरंगाबाद और कैमूर में ऐसे ब्लॉक को चिन्हित करने का काम अभी चल रहा है. इन जिलों में अगले वित्तीय वर्ष (वर्ष 2015-16) से पत्थर खनन के लिए टेंडर जारी होगा. वैसे खनन एवं भूतत्व विभाग ने सभी डीएम को अपने-अपने जिले में पांच हेक्टेयर के कलस्टर को चिन्हित करने के लिए पत्र लिखा है. इस नयी व्यवस्था से निर्माण कार्य में पत्थर की कमी पूरी तरह दूर तो नहीं होगी, लेकिन निर्माण एजेंसियों को थोड़ी राहत मिल जायेगी.
फिलहाल शेखपुरा, नवादा और कैमूर जिले में पत्थर खनन का छोटे स्तर पर किया जा रहा है. शेष जिलों में पत्थर खनन पर रोक है. जिन पहाड़ों के खनन का लीज मिला है, उनकी अवधि भी मार्च, 2015 में समाप्त हो रही है. नयी पत्थर खनन नीति के तहत टेंडर जारी करने की प्रक्रिया जनवरी, 2015 में शुरू हो जायेगी. अप्रैल, 2015 से नये सिरे से लीज होगा.
यहां नहीं होगा खनन :राज्य में वन भूमि वाले क्षेत्र, पर्यटन स्थल और पुरातात्विक महत्व के स्थलों में किसी तरह का कोई खनन नहीं होगा. इनमें जमुई, बेतिया, जहानाबाद, कैमूर और औरंगाबाद के कुछ क्षेत्र शामिल हैं. एएसआइ (आर्किलॉजिकल सव्रे ऑफ इंडिया), कला-संस्कृति विभाग, वन भूमि के तौर पर रेखांकित स्थल और पर्यटन विभाग की तरफ से चिन्हित ऐसे स्थलों की सूची तैयार की जा रही है. कुछ नये स्थलों को भी इसमें शामिल कर इसकी सूची जारी कर दी जायेगी. कई जिले ऐसे हैं, जहां पहाड़ तो हैं, लेकिन वन भूमि या सुरक्षित स्थल घोषित होने के कारण वहां खनन नहीं होगा.
फिलहाल गिट्टी की है कमी : दो साल पहले बिहार सरकार ने तय किया था कि पत्थर खनन के क्षेत्र में जिन कंपनियों की लीज की अवधि पूरी हो जायेगी, उनका नवीकरण नहीं किया जायेगा. ऐसा पहाड़ों के संरक्षण के लिए किया गया था. फिर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, जिसमें कहा गया कि पत्थर खनन की अनुमति कुछ शर्तो के साथ दी जायेगी. राज्य में गिट्टी की कमी का असर सरकारी निर्माण कार्यो – सड़क, पुल-पुलिया, भवन आदि पर पड़ता रहा है. पहाड़ों का उत्खनन रोकने के कारण राज्य में गिट्टी की कीमत पिछले एक साल में दोगुना हो गया है.