पटना: बिहार में मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए चाहे जो भी प्रयास किये जा रहे हों, लेकिन मानवाधिकारों के हनन को लेकर सबसे अधिक दागदार खुद पुलिस की वरदी है.
राज्य में मानवाधिकारों का जितना हनन अकेले पुलिस करती है, उतनी तो यहां विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय माफिया भी नहीं करते हैं. पुलिस के खिलाफ केवल पुलिस हिरासत में ही बंदियों के साथ क्रूरता के मामले नहीं हैं, बल्कि पुलिसिया रौब और वरदी की धौंस दिखा कर गरीब तबके के लोगों के शोषण की भी शिकायतें बिहार मानवाधिकार आयोग को प्राप्त हो रही हैं.
इस तरह की शिकायतों की रोज बढ़ रही संख्या को देखते हुए बिहार मानवाधिकार आयोग ने सभी जिलों में पुलिसकर्मियों को मानवाधिकारों की सुरक्षा का पाठ पढ़ाने का फैसला लिया है.
आयोग की मानें, तो पुलिस तंत्र व उसमें शामिल अधिकारियों व कर्मचारियों के विरुद्ध आयोग को न केवल फर्जी मुठभेड़ और हिरासत में अमानवीय तरीके से मारपीट के ही मामले दर्ज हैं, बल्कि कई ऐसे मामलों का भी आयोग ने संज्ञान लिया है, जिसमें गरीब मिस्त्री, पलंबर और इस तरह के लोगों से मुफ्त में काम कराने के बाद पारिश्रमिक मांगे जाने पर उनके खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज करा कर सबक सिखाने की कोशिश की गयी है.
तब थानेदार ने कर दी थी पिटाई
पिछले दिनों बक्सर में एक मिस्त्री विवेक कुमार ने थानेदार की मोटरसाइकिल का पंर बनाने के बाद जब उनसे 30 रुपये की पारिश्रमिक मांगी, तो धनसोई थाने के तत्कालीन थानेदार महेंद्र प्रसाद ने उसे हाजत में बंद कर बेरहमी से पिटाई कर दी. इस मामले को लेकर धनसोई बाजार को लोगों ने बंद कराया था. यह मामला वर्ष 2013 में 18 नवंबर का है. अगर बिहार मानवाधिकार आयोग के आंकड़ों को देखें, तो वर्ष 2008 में आयोग के गठन के बाद से ही पुलिस के खिलाफ आयोग को लगातार इस तरह की शिकायतें मिलनी शुरू हो गयी थीं.