पटना: महात्मा गांधी सेतु के निर्माणकाल से ही इसकी तकनीक पर विवाद रहा है. इस बार पुल के दो पाये डैमेज हो गये हैं, जिन पर क ाम चल रहा है. लोड बढ़ने से बाकी पायों पर भी असर पड़ रहा है. धीरे-धीरे ये भी कमजोर हो रहे हैं. राजेंद्र पुल के बंद हो जाने से महात्मा गांधी सेतु पर बोझ और भी बढ़ गया है.
तकनीकी रूप से कमजोर
34 साल पुराना यह पुल तकनीकी रूप से कमजोर तो है ही, अब ओवरलोडेड होने के कारण हादसे की ओर बढ़ रहा है. लंबे समय से कुछ हिस्सों में एक ही लेन पर सारा दबाव है, जिसका असर दूसरे हिस्सों पर भी पड़ रहा है. केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद के कारण मरम्मत बहुत देर से शुरू हुई. आज हालत यह है कि इस पर हाइ अलर्ट लेकर काम नहीं किया गया, तो किसी दिन इसका हिस्सा धंस भी सकता है. जरूरत है बिहार को जोड़नेवाले इस सबसे बड़े पुल की बेहतर तरीके से रिपेयरिंग और बढ़ते भार की समीक्षा क ी जाये. एक्सपर्ट का भी मानना है कि बढ़ती आबादी और लोड के हिसाब से यह पुल धीरे-धीरे दम तोड़ रहा है.
एक ही लेन पर चल रहीं गाड़ियां
1982 में बने गांधी सेतु का पश्चिमी-लेन सबसे अधिक डैमेज है. कई जगह उस पर गाड़ियों का परिचालन बंद है. शुक्र है कि पूर्वी लेन चालू है, जिससे होकर गाड़ियां गुजर रही हैं. पाया संख्या 44-ए और बी का पुनर्निर्माण और 120 मीटर सतह का नये सिरे से निर्माण होने के बाद भी गांधी सेतु के रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया गया, तो आनेवाले दिनों में इसके हालात और बदतर होंगे.
इस तकनीक से देश में बने कुल तीन पुल, दो पहले ही ध्वस्त
बैलेंस कैंटी लीवर तकनीक से पुल निर्माण का क्रेज 80 के दशक में बेहद पॉपुलर हुआ था. एशिया के सबसे लंबे पुल गांधी सेतु का निर्माण भी इसी तकनीक से गैमन इंडिया कंपनी ने कराया था. इस तकनीक से पहला पुल जापान में बना था, किंतु पहले ही पुल के निर्माण और उसकी उम्र का अनुभव जापान सरकार के लिए कटु रहा. जापान सरकार ने दोबारा इस तकनीक से कोई पुल नहीं बनाया. भारत में बैलेंस कैंटी लीवर तकनीक से गोवा और बिहार में कुल मिला कर तीन पुल बने. गोवा में बने दो पुल तो कब के ध्वस्त हो गये. गोवा के मांडनी में बना पुल गिर गया. गोवा में बना जुआरी का दूसरा पुल जर्जर हाल में है. उसे बंद कर दिया गया. किसी तरह गांधी सेतु को जिंदा रखा गया है.
बिहार में ब्रिज मेंटेनेंस कमेटी जरूरी
गांधी सेतु कैंटी लीवर सिस्टमवाला देश का सबसे बड़ा इकलौता पुल है. इसके रखरखाव और मरम्मत पर गंभीर चर्चा होनी चाहिए. सरकार सिर्फ इसकी मरम्मत के नाम पर खानापूरी कर रही है. गांधी सेतु की समस्या के स्थायी निदान के लिए राष्ट्रीय स्तर के ब्रिज इंजीनियरों के सेमिनार का आयोजन बिहार में कभी नहीं हुआ. ब्रिज इंजीनियरों के डिस्कशन में पुल की लंबी उम्र और इसकी सेहत की पुख्ता सुरक्षा का कोई-न-कोई उपाय अवश्य निकलेगा. यही नहीं, पुल की मरम्मत और इसके उचित रखरखाव के लिए एक्सपर्ट कमेटी भी बननी चाहिए. एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट पर सरकार और विभाग को एक्शन भी लेना होगा. ब्रिज निर्माण का काम कराने के लिए मैं देश भर में घूमता रहा हूं. कई राज्यों ने ब्रिज मेंटेनेंस और उसके रखरखाव के लिए योजना भी बनायी है. बिहार में ऐसा देखने को नहीं मिला. मैंने हाल ही में गंगा सेतु का अपनी टीम के साथ निरीक्षण भी किया है. टीम ने माना कि सेतु का उचित रखरखाव नहीं हो रहा और इसकी सेहत दिन-व-दिन बिगड़ती जा रही है.
आलोक भौमिक, एमडी, बीएनएस इंजीनियरिंग प्राइवेट लिमिटेड