रियो ओलंपिक में खराब प्रदर्शन के लिए निशानेबाजों, कोचों और महासंघ की हुई जमकर खिंचाई

नयी दिल्ली : अभिनव बिंद्रा की अगुआई वाली भारतीय राष्ट्रीय राइफल संघ (एनआरएआई) की समीक्षा समिति ने कमतर प्रदर्शन करने वाले निशानेबाजों को तो निशाना बनाया ही लेकिन रियो ओलंपिक में निशानेबाजों के खराब प्रदर्शन के लिए कोचों और महासंघ को भी नहीं बख्शा और आमूलचूल बदलाव की सिफारिश की है. चार सदस्यीय समिति ने […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 5, 2016 8:37 PM

नयी दिल्ली : अभिनव बिंद्रा की अगुआई वाली भारतीय राष्ट्रीय राइफल संघ (एनआरएआई) की समीक्षा समिति ने कमतर प्रदर्शन करने वाले निशानेबाजों को तो निशाना बनाया ही लेकिन रियो ओलंपिक में निशानेबाजों के खराब प्रदर्शन के लिए कोचों और महासंघ को भी नहीं बख्शा और आमूलचूल बदलाव की सिफारिश की है.

चार सदस्यीय समिति ने प्रदर्शन की समीक्षा करते हुए 36 पन्नों की कड़ी रिपोर्ट दी है. एशियाई खेलों की पूर्व स्वर्ण पदक विजेता टेनिस खिलाड़ी मनीषा मल्होत्रा इसकी समन्वयक हैं. समिति ने निष्कर्ष दिया है कि एथेंस ओलंपिक 2004 से निशानेबाजी में लगातार आ रहे पदकों ने खेलों से जुड़े सभी लोगों को आत्ममुग्ध बना दिया.
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘सभी ने सोच लिया कि अपने आप ही प्रगति होती रहेगी और यह सुनिश्चित करना भूल गए कि स्वस्थ प्रक्रिया होनी चाहिए.” इसमें कहा गया, ‘‘समिति की चर्चा का निष्कर्ष निकालते हुए कहा जा सकता है कि रियो ओलंपिक में सफलता का फार्मूला गलत था और भारतीय निशानेबाजी पिछले कुछ वर्षों से भाग्य के सहारे रही है लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि कुछ शानदार प्रतिभावान खिलाडियों से मदद मिली है.” रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाले भारत के 12 निशानेबाजों में से कोई भी पदक नहीं जीत पाया था जिसके बाद प्रदर्शन की समीक्षा के लिए समिति का गठन किया गया था. बिंद्रा का 10 मीटर एयर राइफल में चौथे स्थान पर रहना भारत का निशानेबाजी में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था.
समिति ने अपनी रिपोर्ट में सर्वसम्मति से कहा कि भारतीय निशोनबाजी में बदलाव की जरुरत है. रवैये, नीतियों और योजनाओं में बदलाव की जरुरत है जिससे कि प्रतिभा को स्वस्थ माहौल में पनपने का मौका मिले. समिति ने साथ ही कहा कि भारतीय खेलों में जो ‘चलता है’ रवैये का साया है उसे छोड़ना होगा.
समिति ने गगन नारंग और हीना सिद्धू जैसे सीनियर खिलाडियों के अलावा आयोनिका पाल जैसी उभरती हुई निशानेबाज को भी नहीं बख्शा. हीना की अपने पति रोनक पंडित को निजी कोच बनाने के लिए आलोचना हुई थी और समिति ने कहा कि उन्हें अपनी स्पर्धाओं को लेकर कुछ कडे फैसले करने होंगे.
समिति ने कहा, ‘‘शायद उसे ट्रेनिंग वर्ष (2017) का इस्तेमाल यह स्पष्ट करने के लिए करना चाहिए कि 25 मीटर स्पोर्ट्स पिस्टल असल में उनकी पसंदीदा 10 मीटर एयर पिस्टल को सहयोग देती है या नहीं. स्पष्ट तौर पर जटिलता है. राष्ट्रीय कोच पावेल स्मिरनोव के साथ कोई सहयोग नहीं था जिससे स्थिति में मदद नहीं मिली.” आयोनिका के बारे में पैनल का मानना है कि यह प्रतिभावान युवा निशानेबाज अपनी योजनाएं बनाने के लिए सक्षम नहीं थी.
समिति ने कहा कि आयोनिका ने वित्तीय फायदे के लिए थामस फारनिक को कोच और सुमा शिरुर को मेंटर दिखाया लेकिन समिति के सामने पेश रिपोर्ट और दस्तावेज साबित करते हैं कि सुमा पूर्णकालिक कोच थीं और ओलंपिक की तैयारी के प्रयासों में पूरी ईमानदारी नहीं दिखाई गई.
प्रबल दावेदार जीतू राय के उम्मीदों पर खरा नहीं उतरने पर समिति का कहना है कि इस पिस्टल निशानेबाज को सही विशेषज्ञता नहीं मिली और वह विदेशी कोच स्मिरनोव के साथ काम करने के रिश्ते नहीं बना पाया. प्रकाश नांजप्पा के लिए योजना नहीं बना पाने के लिए स्मिरनोव की भी आलोचना की गई.
समिति ने 2012 लंदन खेलों में कांस्य पदक जीतने वाले नारंग की भी कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि यह निशानेबाज खेलों में एडी की चोट के साथ उतरा और अपने लिए बनाई गई ट्रेनिंग योजना पर कायम नहीं रहा.
समिति ने कहा, ‘‘कोच स्टेनिसलास लेपीडस को यकीन था कि नारंग उनके ट्रेनिंग कार्यक्रम पर नहीं चल रहे हैं जिसकी सूचना कई बार एनआरएआई को दी गई. हालांकि कोई कार्रवाई नहीं हुई. फिटनेस के मुद्दे को नंजरअंदाज किया गया और नारंग के एडी में चोट के साथ ओलंपिक में जाने को लेकर एनआरएआई अंधेरे में था.” समिति ने राइफल निशानेबाज अपूर्वी चंदेला की भी कड़ी आलोचना की.
समिति ने कहा कि उसका मानना है कि कोच लेपीडस का यह दावा कि अपूर्वी को ट्रेनिंग के लिए कोष हासिल करने के लिए जूझना पड़ा भ्रमित करने वाला है. टाप्स योजना में अपूर्वी का मामले सबसे पहले स्वीकृति पाने वालों में शामिल था. हालांकि अपूर्वी के ट्रेनिंग योजना और कार्यक्रम नहीं सौंपने तक कोष जारी नहीं किए जा सके. बिंद्रा के चौथे स्थान पर रहने के लिए भाग्य को जिम्मेदार ठहराते हुए समिति ने कहा कि यह शानदार करियर का अच्छा अंत था, हालांकि इसमें परिकथा जैसे अंत की कमी थी.

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