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सैयद मुश्ताक अली ने विदेशी सरजमीन पर जड़ा था पहला टेस्ट शतक

इंदौर : वर्ष 1936 में विदेशी सरजमीन पर भारत की ओर से पहला टेस्ट शतक जडकर क्रिकेट की दुनिया में अमर होने वाले कैप्टन सैयद मुश्ताक अली अगर आज असल जिंदगी में मौजूद होते, तो 100 बरस के होते. अली की बल्लेबाजी मौजूदा दौर के टी20 क्रिकेट के तूफानी तेवर लिये थी. वह टेस्ट मैचों […]

इंदौर : वर्ष 1936 में विदेशी सरजमीन पर भारत की ओर से पहला टेस्ट शतक जडकर क्रिकेट की दुनिया में अमर होने वाले कैप्टन सैयद मुश्ताक अली अगर आज असल जिंदगी में मौजूद होते, तो 100 बरस के होते. अली की बल्लेबाजी मौजूदा दौर के टी20 क्रिकेट के तूफानी तेवर लिये थी. वह टेस्ट मैचों में गेंदबाजों की बेरहमी से धुनाई करते थे और बल्लेबाजी की धुआंधार अदा के चलते दर्शक उन पर जान छिडकते थे.

अली ने 17 दिसंबर 1914 को इंदौर के एक मध्यमवर्गीय परिवार में आंखें खोली थीं. अपने समय के दिग्गज खिलाडी कर्नल सीके नायडू ने उन्हें 1929 में हैदराबाद में आयोजित प्रतिष्ठित बेहराम..उद्..दौला टूर्नामेंट में खिलाकर प्रतिस्पर्धात्मक क्रिकेट जगत में पहला मौका दिया था. नायडू को वह अपने गुर का दर्जा देते थे.
अली ने अपने करियर का आगाज हालांकि बाएं हाथ के धीमी गति के गेंदबाज के रुप में किया था. लेकिन बाद में उनकी पहचान दांये हाथ के विस्फोटक सलामी बल्लेबाज की बन गयी थी. वह क्रिकेट इतिहास में आज भी खासकर इसी अवतार में दर्ज हैं.
अली ने पांच जनवरी 1934 को कोलकाता के ईडन गार्डन पर इंग्लैंड के खिलाफ अपने टेस्ट जीवन का आगाज किया था. मगर उनके करियर में सबसे अहम मोड जुलाई 1936 में आया, जब टेस्ट सीरीज के दौरान भारत मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफर्ड पर इंग्लैंड से भिडा था. इस सीरीज के दूसरे मैच में अली ने मशहूर बल्लेबाज विजय मचेह्णट के साथ भारत की द्वितीय पारी का उद्घाटन किया था.
दोनों बल्लेबाजों ने फिरंगी गेंदबाजों की बेरहमी से धुनाई करते हुए करीब 140 मिनट में 203 रन जड दिये. इनमें से 112 रन अकेले अली के बल्ले से निकले थे और संयोग से यह टेस्ट क्रिकेट में उनका सर्वाधिक स्कोर भी है. भारत के लिये वे फिरंगी गुलामी के दिन थे. मगर अली सरीखे जुझारु बल्लेबाज ने पहली बार इंग्लैंड के खिलाफ उसी की धरती पर शतक जडकर हर भारतीय का सिर गर्व से उंचा कर दिया था.
अली इस मैच में आरडब्ल्यूवी रॉबिन्स की गेंद पर उन्हीं के द्वारा लपक लिये गये थे. इस पारी में उन्होंने 150 मिनट क्रीज पर डटे रहकर 17 चौकों की मदद से 112 रन जडे थे. यह उस वक्त विदेशी धरती पर भारतीय टीम के किसी बल्लेबाज का पहला टेस्ट शतक भी था. आमतौर पर रनों की धीमी रफ्तार के लिये जाने जाने वाले टेस्ट क्रिकेट में धुआंधार तरीके से रन बनाने में अली को महारथ हासिल थी. उन्हें बोरियत भरी बल्लेबाजी से जैसे चिढ थी.
वह अपने साक्षात्कारों में अक्सर कहते थे, मैं दर्शकों के लिये तेज रफ्तार क्रिकेट खेलता था. मैं सोचता था कि दर्शकों ने पैसा खर्च कर मैच का टिकट लिया है. इसलिये मुझे मैदान पर कुछ ऐसा कर दिखाना चाहिये कि दर्शक जब स्टेडियम से अपने घर लौटें, तो उनके मुंह से बरबस ही निकल पडे कि उन्होंने शानदार क्रिकेट देखा है.
अली की 100 वीं जयंती के उपलक्ष्य में मध्यप्रदेश क्रिकेट संगठन के कल रात आयोजित कार्यक्रम में पूर्व टेस्ट क्रिकेटर माधव आपटे ने कहा, आज के क्रिकेटर 2 पौंड 13 औंस के बल्ले से खेलते हैं. लेकिन हमारे जमाने में क्रिकेट के बल्ले 2 पौंड 3 औंस या 2 पौंड 4 औंस के होते थे.
हालांकि, अली 2 पौंड 1 औंस के अपेक्षाकृत हल्के बल्ले से खेलते थे. हम उनके हल्के बल्ले को मजाक में हाथ पंखा कहते थे. आपटे ने कहा, अली अपने इसी हल्के बल्ले से बेहद खूबसूरती के साथ चौके-छक्के जडकर दर्शकों का मनोरंजन करते थे. मेरे लिये बतौर साथी बल्लेबाज विकेट के दूसरी ओर खडा होकर उनकी इस अदा को निहारना शानदार अनुभव होता था.
क्रिकेट इतिहास के जानकार और अली के नजदीकी रहे सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी कहते हैं, पैनी नजर, शानदार टाइमिंग, कलाई के बढिया इस्तेमाल, सही प्लेसमेंट और उम्दा फुटवर्क ने अली को महान बल्लेबाज बनाया था. उनकी बल्लेबाजी में आक्रामकता और सौम्यता का अनोखा मेल था.
चतुर्वेदी ने बताया कि अली की प्रसिद्धि का यह आलम था कि ऑस्ट्रेलियन सर्विसेस के खिलाफ खेले जाने वाले एक टेस्ट मैच के लिये जब भारतीय टीम में अली को शामिल नहीं किया गया तो कोलकाता के ऐतिहासिक ईडन गार्डन पर उनके चाहने वाले दर्शक भडक गये थे. उन्होंने विरोध प्रदर्शन करते हुए नो मुश्ताक, नो टेस्ट का गगनभेदी नारा लगाना शुरु कर दिया था. आखिरकार चयनकर्ताओं को दर्शकों की मांग के आगे झुककर अली को भारतीय टीम में शामिल करना पडा था.
अली ने 11 टेस्ट मैचों की 20 पारियों में 32.21 के औसत से कुल 612 रन जडे. इनमें दो शतक और तीन अर्धशतक शामिल हैं. उन्होंने वर्ष 1952 में अपने करियर का 11 वां और आखिरी टेस्ट इंग्लैंड के खिलाफ ही खेला था. चेन्नई में खेला गया यह मुकाबला भारतीय क्रिकेट में कभी भुलाया नहीं जा सकता. इसमें टीम इंडिया ने इंग्लैंड को रौंदा था और यह फिरंगियों पर हिंदुस्तानियों की पहली टेस्ट फतह थी.
अली के खाते में विज्डन विशेष सम्मान समेत कई प्रतिष्ठित अलंकरण दर्ज हैं. भारत सरकार ने क्रिकेट में उनके अमूल्य योगदान को सलाम करते हुए उन्हें वर्ष 1964 में पद्म श्री से नवाजा था. अली ने 18 जून 2005 को इस फानी दुनिया को अलविदा कहा था.

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