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Ganga Saptami 2022: कल है गंगा सप्तमी, इस विधि से करें पूजा, नोट कर लें शुभ मुहूर्त

Ganga Saptami 2022 Date: 08 मई को गंगा सप्तमी का पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 10 बजकर 57 मिनट से दोपहर 02 बजकर 38 मिनट तक है. पूजा का शुभ मुहूर्त 02 घंटे 41 मिनट तक रहेगा.

Ganga Saptami 2022 Date: हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख माह शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शिव शंकर की जटाओं में पहुंची थीं, इसलिए इस दिन को गंगा जयंती और गंगा सप्तमी के रूप में मनाया जाता है. इस साल 8 मई को गंगा सप्तमी का पावन पर्व मनाया जाएगा. मान्यता है कि इस दिन मां गंगा की पूजा करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है. इसके अलावा गंगा सप्तमी पर गंगा जी में स्नान का बहुत अधिक महत्व होता है. ऐसे में चलिए आज जानते हैं गंगा सप्तमी कब है और इससे जुड़ी कथा क्या है….

गंगा सप्तमी 2022 शुभ मुहूर्त

08 मई को गंगा सप्तमी का पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 10 बजकर 57 मिनट से दोपहर 02 बजकर 38 मिनट तक है. पूजा का शुभ मुहूर्त 02 घंटे 41 मिनट तक रहेगा.

भगवान शिव का जलाभिषेक करें

गंगा सप्तमी के दिन चांदी या स्टील के कलश में गंगाजल लें. इस कलश में पांच बेलपत्र डाल कर इस जल से ओम नमः शिवाय मंत्र का जाप करते हुए भगवान शिव का अभिषेक करें. मान्यता के अनुसार ये उपाय करने से आपको सौभाग्य की प्राप्ति होगी.

गंगा सप्तमी पूजा विधि

कहा जाता है कि गंगा सप्तमी के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर गंगा नदी में स्नान करना बहुत ही शुभ होता है. इस दिन गंगा जी में डुबकी लगाने से जीवन के सभी दुखों से मुक्ति मिल जाती है, लेकिन यदि आप गंगा में स्नान नहीं कर पा रहे हैं तो सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लें और फिर गंगाजल के छींटे अपने ऊपर मार लें.

इसके बाद अपने घर के मंदिर में मां गंगा की मूर्ति या तस्वीर के साथ कलश की स्थापना करें. इस कलश में रोली, चावल, गंगाजल, शहद, चीनी, इत्र और गाय का दूध इन सभी सामग्रियों को भर कर कलश के ऊपर नारियल रखें और इसके आसपास मुख पर अशोक के पांच पत्ते लगा दें. साथ ही नारियल पर कलावा बांध दें.

इसके बाद देवी गंगा की प्रतिमा या तस्वीर पर कनेर का फूल, लाल चंदन, फल और गुड़ का प्रसाद चढ़ाकर मां गंगा की आरती करें. साथ ही ‘गायत्री मंत्र’ तथा गंगा ‘सहस्त्रनाम स्त्रोतम’ का का जाप करें.

जानें गंगा से जुड़ी कथा

गंगा के जन्म से जुड़ी एक और पौराणिक कथा है. उसके अनुसार, गंगा सप्तमी के दिन, गंगा ने पृथ्वी पर पुनर्जन्म लिया था. एक जगह का नाम कोसल था और राजा भागीरथ उस जगह के शासक थे. बहुत सारे व्यवधान हो रहे थे और राजा भागीरथ को बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था. उन्हें पता चला कि यह उनके मृत पूर्वजों के बुरे कर्मों और पापपूर्ण कार्यों के परिणाम के कारण है.

इस मुसीबत से बाहर आने के लिए, उन्होंने उस पिछले कर्म से छुटकारा पाने के लिए और अपने पूर्वजों की आत्माओं को शुद्ध करने के लिए देवताओं की मदद मांगी. इसके लिए, उन्हें पता चला कि केवल गंगा ही उसे पवित्र करने की शक्ति रखती है. भागीरथ ने बड़ी कठोर तपस्या की और आखिरकार युगों के बाद, भगवान ब्रह्मा ने उन्हें आश्वासन दिया कि देवी गंगा पृथ्वी पर जन्म लेंगी और उनकी सहायता करेंगी.

लेकिन फिर भी, एक बड़ी दुविधा थी क्योंकि गंगा का वेग इतना ज़बरदस्त था कि यह पृथ्वी को पूरी तरह से नष्ट कर सकता था. भगवान ब्रह्मा ने भागीरथ को भगवान शिव से अपने बालों से नदी को छोड़ने का अनुरोध करने के लिए कहा क्योंकि वही एकमात्र ऐसा व्यक्ति थे जो गंगा के प्रवाह को नियंत्रित कर सकता थे. भागीरथ की भक्ति और सच्ची तपस्या के कारण, भगवान शिव सहमत हुए और इस तरह गंगा ने पृथ्वी पर पुनर्जन्म लिया और उस दिन को अब गंगा सप्तमी के रूप में माना जाता है.

लेकिन उसके पारगमन के दौरान, गंगा नदी ने ऋषि जह्नु के आश्रम को मिटा दिया. क्रोध में आकर ऋषि जह्नु ने गंगा का पूरा पानी पी लिया. फिर से भागीरथ ने ऋषि से विनती की और उन्हें सब कुछ समझाया. जब ऋषि का क्रोध शांत हुआ तो उन्होंने अपने कान से गंगा को मुक्त कर दिया और उस दिन से गंगा सप्तमी को जाह्नु सप्तमी के रूप में भी मनाया जाता है.

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