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Dev Deepawali 2021: देव दीपावली पर जरूर करें ये काम, घर में धन की होने लगेगी बरसात

Dev Deepawali 2021: देव दीपावली के दिन भगवान शंकर ने देवताओं की प्रार्थना पर सभी को उत्पीड़ित करने वाले राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया, जिसके उल्लास में देवताओं ने दीपावली मनाई, जिसे देव दीपावली के रूप में मान्यता मिली. इस दिन धन से जुड़ी समस्या को दूर करने के लिए आप विशेष उपाय कर सकते हैं.

देशभर में 19 नवंबर यानी शुक्रवार को देव दीपावली (Dev Deepawali 2020) का पावन पर्व मनाया जाएगा. इस पर्व को हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाने की परंपरा है. इसे त्रिपुरारी पूर्णिमा (Tripurari Purnima) भी कहते हैं. इस दिन पूजन-पाठ, कर्मकांड करना बहुत शुभ होता है.

मान्यता के मुताबिक इस दिन भगवान शंकर ने देवताओं की प्रार्थना पर सभी को उत्पीड़ित करने वाले राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया, जिसके उल्लास में देवताओं ने दीपावली मनाई, जिसे देव दीपावली के रूप में मान्यता मिली. इस दिन धन से जुड़ी समस्या को दूर करने के लिए आप विशेष उपाय कर सकते हैं. इस दिन किए गए उपाय जरूर फलीभूत होगा.

जरूर करें दान-पुण्‍य

कार्तिक पूर्णिमा के दिन दान-पुण्‍य जरूर करें. यदि पवित्र नदियों में स्‍नान न कर पाएं तो पवित्र नदियों के जल को पानी में मिलाकर स्‍नान कर लें. इसके लिए 19 नवंबर 2021 को ब्रम्‍ह मुहूर्त से लेकर दोपहर 02:26 बजे तक शुभ मुहूर्त रहेगा.

नदी में करें स्नान

कार्तिक माह को बहुत पवित्र माना जाता है. इस पूरे महीने में पवित्र नदी में स्नान करने की प्राचीन परंपरा रही है. मान्यताओं के अनुसार, इस शुभ माह में श्री हरि जल में निवास करते हैं.

ऐसे जलाएं दीपक

मिट्टी या आटे का दिया ले कर उसमें घी या तेल डाल दें। इसमें मौली की बाती बना कर लगा दें. इसके बाद इसमें 7 लौंग डालें और 11 बार ‘ऊं हीं श्रीं लक्ष्मीभयो नम:’ का जाप कर लें. इसके बाद दिया मुख्यद्वार के गेट पर पूर्व दिशा में रख दें. ध्यान रहे कि दिया जब भी रखें उसके बाद कम से कम ये चार बजे तक जरूर जले.

करें ये उपाय

एक आटे या मि्टटी का दीपक लें और इसमें तेल या घी कुछ भी डाल लें. इसके बाद इस दीपक में 7 लौंग डाल दें. ध्यान रहे दीपक केवल मिट्टी या आटे का ही होना चाहिए.

Kartik Purnima 2021: मंत्रों का जाप करें

ॐ नम: शिवाय’, ॐ हौं जूं सः, ॐ भूर्भुवः स्वः, ॐ त्र्यम्बेकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धूनान् मृत्योवर्मुक्षीय मामृतात्, ॐ स्वः भुवः भूः, ॐ सः जूं हौं ॐ.

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