Chaturmas 2020: 160 साल बाद लीप ईयर और अधिमास एक ही साल में, श्राद्ध पक्ष के बाद 20 से 25 दिन देरी से आएंगे सभी त्योहार…

Chaturmas 2020: 01 जुलाई से चातुर्मास शुरू हो गया है. चातुर्मास मतलब वो चार महीने जब शुभ काम वर्जित होते हैं. जिसमें त्योहारों का सीजन होता है. देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी के बीच के समय को चातुर्मास कहा जाता हैं. इस बार अधिक मास के कारण चातुर्मास चार की बजाय पांच महीने का होगा. श्राद्ध पक्ष के बाद आने वाले सभी त्योहार लगभग 20 से 25 दिन देरी से आएंगे.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 27, 2020 6:39 AM

Chaturmas 2020: 01 जुलाई से चातुर्मास शुरू हो गया है. चातुर्मास मतलब वो चार महीने जब शुभ काम वर्जित होते हैं. जिसमें त्योहारों का सीजन होता है. देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी के बीच के समय को चातुर्मास कहा जाता हैं. इस बार अधिकमास के कारण चातुर्मास चार की बजाय पांच महीने का होगा. श्राद्ध पक्ष के बाद आने वाले सभी त्योहार लगभग 20 से 25 दिन देरी से आएंगे.

इस बार आश्विन माह का अधिकमास है, मतलब दो आश्विन मास होंगे. इस महीने में श्राद्ध और नवरात्रि, दशहरा जैसे त्योहार पड़ते हैं. आमतौर पर श्राद्ध खत्म होते ही अगले दिन से नवरात्रि शुरू हो जाती है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा. इस बार 17 सितंबर 2020 को श्राद्ध खत्म होंगे, और अगले दिन से अधिकमास शुरू हो जाएगा, जो 16 अक्टूबर तक चलेगा. 17 सितंबर को ही विश्वकर्मा पूजा भी है.

17 अक्टूबर से नवरात्रि शुरू होगी. इस तरह श्राद्ध और नवरात्रि के बीच इस साल एक महीने का समय रहेगा. दशहरा 26 अक्टूबर को और दीपावली 14 नवंबर को मनाई जाएगी. 25 नवंबर को देवउठनी एकादशी रहेगी और इस दिन चातुर्मास खत्म हो जाएगा.

160 साल बाद बन रहा ऐसा योग, लीप ईयर और अधिमास एक ही साल में

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार 19 साल पहले 2001 में आश्विन माह का अधिकमास आया था. अंग्रेजी कैलेंडर का लीप ईयर और आश्विन के अधिकमास का योग 160 साल बाद बन रहा है. इससे पहले 1860 में ऐसा अधिकमास आया था, जब उसी साल लीप ईयर भी था.

हर तीन साल में आता है अधिकमास

एक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, जबकि एक चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है. दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है. ये अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है. इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है, जिसे अतिरिक्त होने की वजह से अधिकमास का नाम दिया गया है. अधिकमास के पीछे पूरा वैज्ञानिक दृष्टिकोण है. अगर अधिकमास नहीं होता तो हमारे त्योहारों की व्यवस्था बिगड़ जाती है. अधिकमास की वजह से ही सभी त्योहारों अपने सही समय पर मनाए जाते हैं.

चातुर्मास में तप और ध्यान करने का है विशेष महत्व

चार्तुमास में संत एक ही स्थान पर रुककर तप और ध्यान करते हैं. चातुर्मास में यात्रा करने से यह बचते हैं, क्योंकि ये वर्षा ऋतु का समय रहता है, इस दौरान नदी-नाले उफान पर होते है तथा कई छोटे-छोटे कीट उत्पन्न होते हैं. इस समय में विहार करने से इन छोटे-छोटे कीटों को नुकसान होने की संभावना रहती है. इसी वजह से जैन धर्म में चातुर्मास में संत एक जगह रुककर तप करते हैं. चातुर्मास में भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं. देवउठनी एकादशी के बाद विष्णुजी फिर से सृष्टि का भार संभाल लेते हैं.

अधिकमास को क्यों कहा जाता है मलमास

अधिकमास में सभी पवित्र कर्म वर्जित माने गए हैं. इस पूरे माह में सूर्य संक्राति नहीं रहती है. इस वजह से ये माह मलिन हो जाता है. इसलिए इसे मलमास कहते हैं. मलमास में नामकरण, यज्ञोपवित, विवाह, गृहप्रवेश, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीदी जैसे शुभ कर्म नहीं किए जाते हैं.

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