Chandra Darshan 2022: अमावस्या के बाद चंद्रमा को देखना होता है शुभ,जानें चंद्र दर्शन की तारीख, पूजा विधि

Chandra Darshan 2022: अमावस्या के बाद के चंद्र दर्शन को अत्यंत शुरू माना जाता है. इस दौरान चंद्रमा की पूजा-अर्चना की जाती हैं.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 2, 2022 2:31 PM

Chandra Darshan 2022: हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार अमावस्या के दूसरे दिन चंद्र दर्शन का विशेष महत्व होता है. अमावस्या के बाद उदय होने वाले चंद्रमा की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. जानें चंद्र दर्शन का मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और मंत्र के बारे में.

तिथि और शुभ मुहूर्त

चंद्र दर्शन की तिथि : 04 जनवरी, मंगलवार

चंद्रोदय : 04 जनवरी, प्रातः 08:47

चंद्र अस्त: 4 जनवरी, सायं 07:20

चंद्र दर्शन का महत्व

धार्मिक मान्यता के अनुसार नवग्रहों में से एक होने के कारण चंद्रमा पृथ्वी पर जीवन को भी प्रभावित करता है. ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में चंद्र को मन का कारक माना गया है, ऐसे में कहा जाता है कि जिन जातकों का चंद्रमा अच्छे स्थान पर होता है, उनका जीवन सफल रहता है. चंद्र देव का विवाह 27 नक्षत्रों से हुआ है, जो प्रजापति दक्ष की बेटियां हैं. साथ ही, वो बुद्ध या ग्रह बुध के पिता हैं. इसलिए, सौभाग्य, सफलता और ज्ञान के लिए आशीर्वाद लेने के लिए इस दिन भगवान चंद्रमा की पूजा करना शुभ माना जाता है. चंद्र दर्शन के दिन चंद्रमा की विशेष पूजा करने से कुंडली में भी चंद्र की स्थिति अच्छी बनती है और चंद्र देव की कृपा प्राप्त होती है. चंद्र दर्शन को पवित्रता, खुशी और ज्ञान का प्रतीक माना गया है.

चंद्र दर्शन के दिन ऐसे करें चंद्रमा की पूजा

  • चंद्र दर्शन के दिन शाम को मंत्रों के साथ विधिवत चांद की पूजा करें .

  • चंद्र देव की रोली, फल और फूल से पूजा करें.

  • चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपना उपवास खोलें.

  • चंद्र दर्शन के दिन चीनी, चावल, गेहूं, कपड़े दान करना भी शुभ माना जाता है.

चंद्र देव को प्रसन्न करने के मंत्र

चंद्र दर्शन का पूजा मंत्र

ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृत तत्वाय धीमहि, तन्नो चन्द्र: प्रचोदयात .

चंद्र देव की उपासना के वैदिक मंत्र

ॐ इमं देवा असपत्नं ग्वं सुवध्यं.

महते क्षत्राय महते ज्यैश्ठाय महते जानराज्यायेन्दस्येन्द्रियाय इमममुध्य पुत्रममुध्यै

पुत्रमस्यै विश वोsमी राज: सोमोsस्माकं ब्राह्माणाना ग्वं राजा.

चंद्र देव की उपासना का पौराणिक मंत्र

दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम .

नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं.

बीज मंत्र

ऊॅँ श्रां श्रीं श्रौं स: चंद्राय नम:

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