Chaitra Navratri 2021: बाल कार्तिकेय को गोद में लिए मां स्कंदमाता का अद्भुत है स्वरूप, जानें इनके इतिहास व पूजा के महत्व के बारे में

Chaitra Navratri 2021, Maa Skandamata Puja Benefits, Swaroop, Origin, History: गोद में कार्तिकेय या भगवान गणेश के भाई मुरुगन को लिए शेर पर सवार मां स्कंदमाता की पूजा चैत्र नवरात्रि 2021 के पांचवें दिन की जाती है. ऐसे में इस बार 17 अप्रैल को इनकी पूजा होगी. ऐसी मान्यता है कि जिस जातक का कुंडली में बुध कमजोर होता है उन्हें विशेष रूप से इनकी पूजा करनी चाहिए. आइये जानते हैं कैसे चार भुजाओं वाली माता स्कंदमाता की उत्पत्ति हुई, क्या है उनका इतिहास और स्वरूप, महत्व व मान्यताएं...

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 17, 2021 5:34 AM

Chaitra Navratri 2021, Maa Skandamata Puja Benefits, Swaroop, Origin, History: गोद में कार्तिकेय या भगवान गणेश के भाई मुरुगन को लिए शेर पर सवार मां स्कंदमाता की पूजा चैत्र नवरात्रि 2021 के पांचवें दिन की जाती है. ऐसे में इस बार 17 अप्रैल को इनकी पूजा होगी. ऐसी मान्यता है कि जिस जातक का कुंडली में बुध कमजोर होता है उन्हें विशेष रूप से इनकी पूजा करनी चाहिए. आइये जानते हैं कैसे चार भुजाओं वाली माता स्कंदमाता की उत्पत्ति हुई, क्या है उनका इतिहास और स्वरूप, महत्व व मान्यताएं…

मां स्कंदमाता का इतिहास

पौराणिक मान्यताओं और ड्रिक पंचांग की मानें तो जब देवी पार्वती भगवान स्कंद अर्थात कार्तिकेय की मां बनीं तब से उन्हें देवी स्कंदमाता के रूप में जाना जाने लगा.

चैत्र नवरात्रि में कब होती मां स्कंदमाता की पूजा

  • नवरात्रि के पांचवें दिन देवी स्कंदमाता की पूजा की परंपरा होती है.

  • किन्हें करनी चाहिए देवी स्कंदमाता की पूजा

  • धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जिस जातक के कुंडली में बुध ग्रह कमजोर स्थिति में होता है उन्हें देवी स्कंदमाता की पूजा अवश्य करनी चाहिए.

देवी स्कंदमाता का स्वरूप

  • देवी स्कंदमाता सिंह की सवारी करती हैं.

  • उनकी गोद में नन्हें मुरुगन (कार्तिकेय और भगवान गणेश के भाई) को लिए दर्शाया गया है.

  • देवी स्कंदमाता चार भुजाओं वाली होती हैं.

  • जिनके ऊपरी बाएं और दाहिने हाथ में कमल का फूल होता है.

  • और एक दाहिने हाथ से नन्हें मुरुगन को संभालती है

  • व दूसरे बाएं हाथ को अभय मुद्रा में रखती है.

  • उन्हें कमल के फूल पर बैठते भी दिखाया गया है. यही कारण है कि इन्हें देवी पद्मासन के नाम से भी जाना जाता है.

Posted By: Sumit Kumar Verma

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