नारी अब न रही अबला, वह तो सबला है.
यह कदम उसका आखिरी नहीं, यह तो पहला है.
उसे अपने बल और आज़ादी को पकड़े रहना है.
कोई भी आततायी, शोषक अब उसके समक्ष बौना है.
क्योंकि वह अब सुशिक्षित, स्वावलंबी है, न कि पुरुष का खिलौना है.
अपने ऊपर हुए अत्याचारों को उसे इतिहास बनाना है.
अब तो उसके सम्मुख उसका सुनहरा सपना है.
स्वयं जूडो-कराटे सीख उसने पुरुष को बनाया अदना है.
अभी भी वह संतुष्ट नहीं उसे बहुत दूर जाना है.
हर दरवाज़े को अपनी योग्यता से खुलवाना है.
पुरुष के हर अत्याचार का बदला उसे चुकाना है.
मर्द को उसकी औक़ात बता , उसे सबक सिखाना है.
हर पद ,हर मंज़िल को अपनी योग्यता से हथियाना है.
पुरुष नतमस्तक हो जाए ऐसा अवसर खोज लाना है.
मर्द की शक्ति को अपनी क़ाबिलियत से तुच्छ बनाना है.
हर दंपती, लड़के की अपेक्षा लड़की चाहे ऐसा माहौल तैयार करना है.
- सीमा बेरी