गिरिडीह, सूरज सिन्हा : गिरिडीह जिले में सामंतों एवं सूदखोरों के खिलाफ दिशोम गुरु झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने आंदोलन के रूप में अभियान छेड़ा था. वह महाजनी प्रथा, शोषण एवं सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ हमेशा संघर्षशील रहे. आदिवासियों, पिछड़ों समेत गरीब-गुरबों के अधिकार की लड़ाई लड़ी. शोषण मुक्त समाज की स्थापना के लिए लोगों को एकजुट किया और संघर्ष के रास्ते पर चलकर जुल्मों के खिलाफ मोर्चा खोला. आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ उनकी मुखरता सामने आयी. नतीजतन वह कई लोगों की आंखों की किरकिरी भी बन गये थे, परंतु दृढ़ इच्छा शक्ति और संकल्प के साथ लड़ाई जारी रखी.
स्वर्गीय विनोद बिहारी महतो, एके राय, शिबू सोरेन, शिवा महतो, सालखन सोरेन सरीखे नेताओं ने गिरिडीह जिला में चार मार्च 1973 को झामुमो की नींव रखी. महाजनी जुल्म के विरुद्ध दशकों से जारी आंदोलन को सांगठनिक रूप दिया गया. पार्टी की स्थापना के बाद जनहित में संघर्ष का सिलसिला शुरू हुआ. ग्रामीण क्षेत्रों में सामंतों व सूदखोरों के शोषण के खिलाफ आंदोलन किये गये. इन आंदोलनों के बूते शोषित-पीड़ित वर्ग को न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ते रहे. गिरिडीह जिला अंतर्गत पीरटांड़, गांडेय, तिसरी आदि इलाकों में जनहित में कई आंदोलन हुए.
शुरुआती दौर में पीरटांड़ प्रखंड में झामुमो ने महाजनी जुल्म व पुलिसिया दमन के खिलाफ हुंकार भरी. श्री सोरेन ने इस क्षेत्र में शोषण के खिलाफ लोगों को गोलबंद किया और अधिकार के लिए लड़ाई लड़ने का आह्वान किया. पूर्व में सहम कर रहने वाला आदिवासी समाज व अन्य शोषित वर्ग के लोग धीरे-धीरे अपने अधिकार को लेकर मुखर होने लगे. इसके लिए कई आंदोलन चलाये गये. परिणामस्वरूप श्री सोरेन के नेतृत्व में आदिवासी एकजुट होने लगे. आंदोलन के दौरान लंबे समय तक वह अंडरग्रांउड भी रहे. इस दौरान उनका डेरा कभी पारसनाथ की पहाड़ी तो कभी टुंडी का जंगली क्षेत्र रहा. पीरटांड़ के साथ उन्होंने गांडेय में भी शोषण के खिलाफ कई आंदोलनों को अंजाम तक पहुंचाया.
शिबू सोरेन ने गांडेय के तीनपतली में बैसी (शोषित समाज का कोर्ट) की स्थापना की थी. यहां पर प्रत्येक शनिवार को शोषितों के आवेदन की सुनवाई होती थी. बैसी में महाजनों और सूदखोरों से गरीब व शोषित आदिवासियों को न्याय दिलाया जाता था. 70 के दशक में आयोजित होने वाली इन बैठकों में शिबू सोरेन उपस्थित रहते थे. इसी कड़ी में तिसरी के जलगोड़ा आश्रम में जाकर लोगों के बीच शिक्षा पर जोर देते थे. जिला के विभिन्न इलाकों में ग्रामीणों के साथ बैठक कर पढ़ाई को लेकर जागरूक करते थे. साथ ही नशा से दूर रहने की सीख देते थे. वह सामाजिक व राजनीतिक आंदोलन चलाते थे. शोषित जनता को गुरुजी में काफी उम्मीदें दिखने लगीं.
गुरुजी ने जिला के पीरटांड़, डुमरी, गांडेय, बेंगाबाद, गावां, तिसरी व देवरी में सांगठनिक विस्तार के साथ अलग झारखंड राज्य की लड़ाई की शुरू की थी. पार्टी की स्थापना में सहयोगी रहे सालखन सोरेन, शिवा महतो, बाबूराम हेंब्रम, किशुन मरांडी, हीरालाल महतो, भगत राम, मास्टर छोटू मरांडी, हलधर राय, जॉन मुर्मू, हुसैन अंसारी, धनेश्वर मंडल, बसंत पाठक, मोती महतो, मुस्लीम अंसारी, भागवत सिंह, भुनेश्वर हांसदा, राजकिशोर राम, मिनहाज खान, प्रधान हेंब्रम, पॉलूस हांसदा, गिरजा प्रसाद सिंह, सुरेश सिंह, अखिलचंद महतो, हीरामन महतो, चुरामन महतो, यदुनंदन चौधरी, सरदार दया किशुन भंवरा समेत कई नेताओं के साथ मिलकर अलग राज्य की लड़ाई तेज की. उस वक्त इन लोगों का कहना था कि बिहार में यह क्षेत्र उपेक्षित है. बिहार के सौतेला व्यवहार और नियोजन के मामले को लेकर एक बड़ी लड़ाई लड़ी गई. इसी क्रम में संगठन का विस्तार भी हो रहा था. हालांकि इसके लिए काफी संघर्ष किया गया. गुरुजी से लोगों को समस्या से निजात दिलाने की उम्मीद जगी थी. लिहाजा महिला, पुरुष व युवा का रुझान झामुमो की ओर लगातार बढ़ता चला गया. पूर्व में ग्रामीण इलाकों तक संगठन सक्रिय था. बाद के दिनों में शहरी क्षेत्र में सांगठनिक विस्तार की कवायद तेज हुई.
अलग झारखंड राज्य गठन की लड़ाई समेत सामंती ताकतों के साथ हुए संघर्ष में गिरिडीह जिला में झामुमो से जुड़े 22 नेता शहीद हुए. जिलाध्यक्ष संजय सिंह ने बताया कि गिरिडीह जिला के शहीदों की सूची में गोपाल महतो, सोनाराम टुडू, घासू राय, छोटेलाल मरांडी, सुखु मरांडी, विश्वनाथ महतो, बसंत पाठक, लक्ष्मी नारायण हेंब्रम, नन्हकू हांसदा, सरदार दया किशुन भौंरा, लालजीत ठाकुर, परमेश्वर बेसरा, चांदोलाल हेंब्रम, किशुन मरांडी, रूपलाल महतो, मुक्तेश्वर महतो, अकलू हेंब्रम, चोवा ठाकुर, दातो हांसदा, मानिक मियां, तिलक मरांडी व मोहन महतो के नाम शामिल हैं.
जिला में वर्ष 1980 से लेकर अब तक सात जिलाध्यक्षों ने जिला झामुमो संगठन की कमान संभाली है. इस बाबत झामुमो जिलाध्यक्ष संजय सिंह ने बताया कि सबसे पहले शिवा महतो जिलाध्यक्ष बनाये गये थे. उनके बाद लालू सोरेन जिलाध्यक्ष बने. पूर्व विधायक सालखन सोरेन दो बार जिलाध्यक्ष रहे. इसके बाद जॉन मुर्मू को जिम्मेदारी सौंपी गयी. इसी कड़ी में विधायक सुदिव्य कुमार सोनू ने दो बार जिला का नेतृत्व किया. तत्पश्चात पंकज कुमार ताह अध्यक्ष बने. संजय सिंह का बतौर जिलाध्यक्ष यह तीसरा कार्यकाल है. वर्ष 2003 में श्री सोनू के जिलाध्यक्ष बनने के बाद वर्ष 2005 के विधान सभा चुनाव में गिरिडीह, डुमरी व गांडेय में पार्टी प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी. 2004 के लोकसभा चुनाव में गिरिडीह सीट से झामुमो विजयी रहा. इसके बाद जिलाध्यक्ष संजय सिंह के कार्यकाल में पार्टी ने वर्ष 2019 के विस चुनाव में गिरिडीह, गांडेय व डुमरी में परचम लहराया है. श्री सिंह कहते हैं कि शहरी क्षेत्र में जब ज्वलंत मुद्दों को लेकर पार्टी मुखर हुई और आंदोलन तेज हुआ तो शहर के लोगों का पार्टी से जुड़ाव हुआ. इसका परिणाम चुनाव में बेहतर रहा.
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