चिकित्सकों की सुरक्षा

देश के प्रत्येक नागरिक और व्यापक समाज में स्वास्थ्यकर्मियों और ऐसी अन्य अनिवार्य सेवाओं को प्रदान करनेवाले लोगों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का भाव होना चाहिए.

By संपादकीय | September 21, 2020 5:56 AM

गंभीर बीमारियों से ग्रस्त और बुरी तरह से घायल लोगों को अपने कौशल एवं सेवा से स्वस्थ कर चिकित्सक तथा स्वास्थ्यकर्मी उन्हें नया जीवन देते हैं. यही कारण है कि उन्हें धरती पर ईश्वर का एक रूप कहा जाता है. इसके बावजूद डॉक्टरों और उनके सहयोगियों से अभद्रता और हिंसा की घटनाएं होना बड़े क्षोभ का विषय है. कोरोना महामारी के वर्तमान संकट काल ने समाज में ऐसी चिंताजनक प्रवृत्ति की मौजूदगी को साफ तौर पर रेखांकित किया है.

एक तरफ देखा गया कि कोविड-19 वायरस से संक्रमण की रोकथाम तथा लोगों की जांच के लिए गये चिकित्सा दलों पर हमले और अनुचित व्यवहार करने की कई घटनाएं हुईं, तो दूसरी तरफ रात-दिन खुद अपने और अपनों के संक्रमित होने की परवाह किये बिना संक्रमण से ग्रस्त लोगों के इलाज में जुटे स्वास्थ्यकर्मियों से उनके मोहल्लों व कॉलोनियों में उन्हीं के पड़ोसियों ने अभद्रता की.

लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में तो इस तरह की घटनाएं देश के कई इलाकों में हुईं. इन पर रोक लगाने के लिए केंद्र सरकार को 22 अप्रैल को एक अध्यादेश लाना पड़ा, जिसके तहत ऐसे दुर्व्यवहारों के लिए कठोर सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया था. अब इस पर राज्यसभा की मुहर भी लग चुकी है. उम्मीद है कि जल्दी यह विधेयक संशोधित महामारी रोग कानून, 1897 का हिस्सा हो जायेगा. भारतीय चिकित्सा संघ का कहना है कि कोरोना पीड़ितों का उपचार करते हुए अब तक 382 डॉक्टर संक्रमित होकर अपनी जान दे चुके हैं. बहुत से स्वास्थ्यकर्मी अब भी संक्रमण से ग्रस्त हैं, जिनमें 2238 चिकित्सक हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर संक्रमितों की कुल संख्या में 14 प्रतिशत स्वास्थ्यकर्मी हैं. ऐसे कानूनी प्रावधानों से स्वास्थ्यकर्मियों में भरोसा बढ़ेगा और वे निडर होकर अपने दायित्व का निर्वाह कर सकेंगे. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने संसद में कहा है कि अप्रैल में अध्यादेश जारी करने के बाद चिकित्सा कार्य में जुटे लोगों के विरुद्ध हिंसा की घटनाओं में बड़ी कमी आयी है. यह तथ्य इंगित करता है कि इस तरह के मामलों में कानूनी प्रावधानों की बड़ी अहमियत है.

इसे देखते हुए आगामी समय में सहायक सेवाओं के कर्मियों को भी इस कानून के दायरे में लाने की कोशिश होनी चाहिए. यह पहलू सदन की बहस में भी सामने आया है. इस संदर्भ में हमें यह भी समझना होगा कि केवल कानून के डर से ऐसी समस्याओं का समाधान संभव नहीं है. देश के प्रत्येक नागरिक और व्यापक समाज में स्वास्थ्यकर्मियों और ऐसी अन्य अनिवार्य सेवाओं को प्रदान करनेवाले लोगों के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का भाव होना चाहिए.

सरकार का यह कदम सराहनीय है और लोगों को भी इसका अनुपालन सुनिश्चित करना चाहिए क्योंकि कोरोना का कहर अभी बरकरार है और अन्य बीमारियां भी बड़ी चुनौती हैं. स्वास्थ्यकर्मियों के सहारे ही हमें इनसे छुटकारा मिल सकेगा.

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