मोदी के उपहार और हिंदू विरासत

वे उपहारों के माध्यम से संदेश को बहुत हद तक बदल देते हैं. वे सेकुलर और राजनीतिक सीमाओं के उपहार नहीं देते, उनके उपहार भारत की हिंदू विरासत और गुजराती संस्कृति को बढ़ावा देते हैं.

By प्रभु चावला | November 22, 2022 7:49 AM

देशी नेताओं को दिया गया उपहार एक कठिन पहेली होता है. इसे ठीक से समझने से ही मित्रता गहरी होती है और शत्रु निरस्त्र होते हैं. उसके भीतर के संदेशों को पढ़ना जरूरी होता है. कूटनीतिक उपहार आदान-प्रदान के समय ली गयी तस्वीरों से अमर हो जाते हैं. उपहारों की विचारधारा नहीं होती, वे भव्यता के विचार होते हैं. लेकिन अब विदेश नीति में आधिकारिक उपहार घरेलू विवशताओं, भौगोलिक और यहां तक कि चुनावी संकल्पों को भी इंगित करते हैं.

बीते सप्ताह बाली में हुए जी-20 सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व नेताओं को उपहार प्रदान किया. मोदी लीक से अलग हटकर सोचते हैं. ये उपहार भारतीय मीडिया में सुर्खियां बने. बाइडेन, जिनपिंग, सुनक आदि नेताओं की चर्चा संपादकीय टिप्पणियों में ही हुई, पर मोदी जो भी करते हैं, उसमें एक अर्थ होता है और भारतीय अधिकारियों ने यह निश्चित किया कि उनके स्वामी की आवाज स्पष्ट रूप से घरेलू श्रोताओं तक पहुंचे.

क्या उपमाओं के धुरंधर गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव अभियान को बाली तक लेकर गये थे, जो प्राचीन काल में एक हिंदू राजतंत्र था, जहां आज भी बहुत से मंदिर हैं? जून में मोदी ने जी-7 के नेताओं को उत्तर प्रदेश की दस्तकारी की चीजें दी थीं, जहां उन्होंने बड़ी चुनावी जीत हासिल की थी. जो जड़ाऊ पिन और कफलिंक उन्होंने बाइडेन को दिया, वे उनके क्षेत्र वाराणसी में बने थे. इंडोनेशिया के राष्ट्रपति को दिया गया ‘राम दरबार’ भी बनारस में निर्मित था.

मोदी की उपस्थिति में राष्ट्रवाद की धमक होती है, जो औपनिवेशिक आख्यान को परे धकेलता है. उसमें उनकी आधिकारिक छाप होती है. साल 2014 में जीत के बाद मोदी को ओबामा से औपचारिक बधाई मिली और उन्होंने वाशिंगटन आने का निमंत्रण दिया. मोदी के लिए यह सुखद बदले जैसा था क्योंकि पहले उन्हें अमेरिका का वीजा देने से मना कर दिया गया था. प्रधानमंत्री मोदी उपमाओं के कलाकार हैं.

ओबामा को दिये उपहार अमेरिका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति से भावनात्मक रूप से जुड़ते हैं- डॉ मार्टिन लूथर किंग की भारत यात्रा, डॉ किंग की मृत्यु के बाद जवाहरलाल नेहरू सम्मान लेने आयीं कोरेट्टा स्कॉट किंग तथा महात्मा गांधी से जुड़ी रिकॉर्डिंग. डॉ किंग महात्मा गांधी से प्रभावित थे और वे ओबामा के एक आदर्श हैं. लेकिन मोदी ने भारत की विरासत को किनारे नहीं किया. ओबामा दंपत्ति को भागवत गीता और गांधी द्वारा गीता की व्याख्या की प्रतियां दी गयीं.

इससे भारत का मान बढ़ा. बाद में ओबामा ने मोदी को 1893 में शिकागो के धर्म सम्मेलन का संकरण प्रदान किया, जिसमें स्वामी विवेकानंद ने भी भाग लिया था. विडंबना है कि वर्तमान अतीत को इंगित करता है. आमतौर पर नेता ऐसा उपहार अपने अतिथियों को देते हैं, जो मेजबान देश से उनके पुराने संबंधों से जुड़ा हो. मोदी ने दिवंगत महारानी एलिजाबेथ को 1961 में हुई उनकी पहली भारत यात्रा की दुर्लभ तस्वीरें, दार्जिलिंग की मकईबारी चाय, जम्मू-कश्मीर का शहद तथा वाराणसी से तनछुई ओढ़नी उपहार में दिया था.

वे उपहारों के माध्यम से संदेश को बहुत हद तक बदल देते हैं. वे सेकुलर और राजनीतिक सीमाओं के उपहार नहीं देते, उनके उपहार भारत की हिंदू विरासत और गुजराती संस्कृति को बढ़ावा देते हैं. मोदी के उपहारों की विचारधारा गांधी-नेहरू युग के कूटनीतिक आभार से विपरीत है, जब आधिकारिक उपहारों- गांधीवादी स्मृति चिन्ह और मुगल प्रतीक- में सेकुलर इतिहास दृष्टि होती थी. मनमोहन सिंह ने अपने एक दौरे में अमेरिकी ओबामा को संगमरमर का एक बहुरंगी टेबल टॉप दिया था, जिसमें कीमती पत्थर जड़े हुए थे.

अगले साल उन्होंने चांदी का एक बक्सा दिया था, जिस पर लाल किले के फूलदार डिजाइन बने हुए थे. वे अमेरिकी नेताओं की पसंद-नापसंद जानते थे. विदेश नीति में प्रभावशाली हिलेरी क्लिंटन को उन्होंने नावनुमा चांदी का पर्स दिया था. सफल कूटनीतिक फल की उपमा तब समझौते में साकार हुई, जब 2006 में राष्ट्रपति बुश ने भारत दौरे में भारतीय आम खाने की इच्छा जतायी. उन्होंने कहा कि अमेरिका भारतीय आम खाने का इच्छुक है.

भारत ने आम के निर्यात पर लगी पाबंदी तुरंत हटा ली. जल्दी ही भारतीय आमों की खेप अमेरिका पहुंची और व्यापार नीतियों एवं कृषि अनुसंधान परियोजनाओं को हरी झंडी मिली. इंदिरा गांधी और राजीव गांधी भारतीय वस्त्रों पर मोहित थे. उनके कुछ करीबी दोस्तों ने सुझाव दिया कि इनके उपहार अच्छे हो सकते हैं, जो भारत के स्थानीय सौंदर्य को प्रतिबिंबित करें. उनके नजदीकी बताते हैं कि ये दोनों नेता उपहार चुनते समय भौगोलिक, ऐतिहासिक या सांस्कृतिक विशिष्टताओं का ध्यान नहीं रखते थे.

अटल बिहारी वाजपेयी का व्यक्तिगत प्रभाव ही अपने-आप में एक उपहार था. साल 2003 में उन्होंने अपनी अंतिम अमेरिका यात्रा में बिल क्लिंटन को बेहद खास रेशमी कालीन दिया था. शायद ऐतिहासिक साझा दृष्टि पत्र के लिए लाल कालीन बिछाने का यह उनका तरीका था. डोनाल्ड ट्रंप के उपहार अलग हुआ करते थे- महारानी एलिजाबेथ को कपड़े पर लगाने वाला आभूषण, थेरेसा मे को किताबों का महंगा सेट, इमरान खान को क्रिकेट बैट, शी जिनपिंग को 29 सौ डॉलर का टी सेट, शिंजो आबे को दो हजार डॉलर के बॉक्सिंग ग्लव्स आदि. ओबामा पांच सौ डॉलर की घड़ी देकर खुश रहते थे.

कुछ उपहार क्रूर मजाक भी होते हैं और अपने को बड़ा दिखाने के उपक्रम भी. शीत युद्ध के दौरान सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव और अमेरिकी नेता जॉन केनेडी के बीच उपहारों के आदान-प्रदान में औपचारिक विनम्रता की आड़ में तंज भरी आक्रामकता होती थी. वर्ष 1961 में ख्रुश्चेव ने केनेडी को पुश्किना नामक शिशु कुत्ता दिया, जो लाइका की संतान थी. लाइका वह कुत्ता थी, जिसे अंतरिक्ष दौड़ में अमेरिका को पछाड़ते हुए सोवियत संघ ने अंतरिक्ष में भेजा था.

खैर, पुश्किना केनेडी के बच्चों के साथ व्हाइट हाउस में रही और उसने बच्चे भी जने. वर्ष 1972 में रिचर्ड निक्सन की ऐतिहासिक चीन यात्रा में पैट्रिशिया निक्सन ने अपने पांडा प्रेम का खुलासा किया था. चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई ने तुरंत दो पांडा वाशिंगटन भेज दिया. पर ऐसे आदान-प्रदान भी महाशक्तियाें की वैश्विक वर्चस्व बनाने की हवस को नहीं बदल सके हैं. उपहारों से कुछ क्षण की मुस्कुराहट और गर्मजोशी से हाथ मिलाना ही हो पाता है.

बाद में ये चीजें सरकारी गोदाम में पड़ी रहती हैं और इन्हें पाने वाले आपस में धक्का-मुक्की करते रहते हैं. भू-राजनीति के मैदान में वही नेता विजयी होता है, जो उपहार में मिले घोड़े का मुंह न देख, उसकी सवारी करता है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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