हाल ही में 17 मई को केंद्रीय संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि सरकार ने सूचना-प्रौद्योगिकी (आइटी) हार्डवेयर के लिए उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआइ) योजना- 2.0 को स्वीकृति देते हुए इसके लिए 17,000 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान किया है. इस योजना से चीन से अन्यत्र जा रही विश्व की दिग्गज आइटी हार्डवेयर कंपनियों के भारत आने की संभावनाएं बढ़ गयी हैं. साथ ही भारत से आइटी हार्डवेयर का निर्यात भी तेजी से बढ़ने का परिदृश्य दिखाई दे रहा है.
गौरतलब है कि सरकार ने आइटी हार्डवेयर की इस नयी योजना के पिछले स्वरूप के लिए 7,325 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था. इस योजना का उद्देश्य देश में इलेक्ट्रॉनिक विनिर्माण को बढ़ावा देते हुए लैपटॉप, टैबलेट, पर्सनल कंप्यूटर और आधुनिक कंप्यूटिंग उपकरणों के उत्पादन को प्रोत्साहित करना है. इस पीएलआई योजना में किए गए नये बदलावों और प्रोत्साहनों से सरकार को उम्मीद है कि तय अवधि में आइटी हार्डवेयर क्षेत्र में 2,430 करोड़ रुपये के निवेश आने के साथ-साथ 75,000 प्रत्यक्ष रोजगार सृजित करने और उत्पादन मूल्य 3.55 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का परिदृश्य दिखाई दे सकेगा.
उल्लेखनीय है कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में करीब 17 फीसदी योगदान देने वाला मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर करीब 2.73 करोड़ से अधिक श्रमबल के साथ अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन विनिर्माता है और तीसरा सबसे बड़ा ऑटो मोबाइल मार्केट है. भारत का फॉर्मा उद्योग उत्पादित मात्रा के आधार पर दुनिया में तीसरे क्रम पर है. साथ ही भारत दुनिया में सबसे अधिक मांग वाला तीसरा बड़ा विनिर्माण गंतव्य है.
इलेक्ट्रानिक्स और रक्षा क्षेत्र में लगातार आयात पर निर्भर रहने वाला भारत अब बड़े पैमाने पर इनका निर्यात करने लगा है. देश में ऑटो मोबाइल, फॉर्मा, केमिकल, फुड प्रोसेसिंग और टेक्सटाइल सेक्टर जैसे मैन्युफैक्चरिंग के विभिन्न सेक्टरों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का प्रवाह तेजी से बढ़ रहा है. भारत का वाणिज्यिक वस्तुओं का निर्यात पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में 447 अरब डॉलर के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया है. देश से बढ़ते हुए मैन्युफैक्चरिंग निर्यात मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को गतिशील कर रहा है.
इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि देश को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को आगे बढ़ाने के लिए सरकार रणनीतिक रूप से आगे बढ़ रही है. भारत को एक वैश्विक डिज़ाइन और विनिर्माण केंद्र में बदलने के लिए मेक इन इंडिया 2.0, मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों के लिए तकनीकी समाधान को बढ़ावा देने के लिए उद्योग 4.0, स्टार्टअप संस्कृति को उत्प्रेरित करने के लिए स्टार्टअप इंडिया, मल्टीमॉडल कनेक्टिविटी अवसंरचना परियोजना के लिए पीएम गति शक्ति और उद्योगों को डिजिटल तकनीकी शक्ति प्रदान करने के लिए डिजिटल इंडिया जैसी सफल पहलों के कारण.
भारत चतुर्थ औद्योगिक क्रांति की दिशा में आगे बढ़ रहा है. भारतीय कंपनियां शोध व नवाचार में आगे बढ़ रही हैं. ऑटोमेशन और रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों पर भी उद्योग की ओर से अपेक्षित ध्यान दिया जा रहा है. सरकार को उम्मीद है कि ऐसे विभिन्न कार्यक्रमों और नीतियों के कारगर कार्यान्वयन से वर्ष 2025 तक जीडीपी का 25 फीसदी योगदान मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर से आयेगा.
स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि चीन के खिलाफ नकारात्मक धारणा बनने से भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को नया आधार मिल रहा है. भारत सस्ती लागत और कार्य कौशल के मद्देनजर विनिर्माण में चीन को पीछे छोड़ते हुए दिखाई दे रहा है. 85 देशों के मैन्युफैक्चरिंग से संबंधित विभिन्न कारकों का समग्र मूल्यांकन करने वाली विश्व प्रसिद्ध यूएस न्यूज एंड वर्ल्ड रिपोर्ट’ 2022 के तहत सस्ते विनिर्माण के मद्देनजर भारत ने चीन और वियतनाम को पीछे छोड़ते हुए दुनिया भर में सबसे कम ‘विनिर्माण लागत’ वाले देश का दर्जा हासिल कर लिया है.
जैसे-जैसे सरकार के द्वारा चीन से आयात होने वाले घटिया स्तर के उत्पादों पर विभिन्न तरह से प्रतिबंध लगाये जा रहे हैं, वैसे-वैसे देश में मैन्युफैक्चरिंग उत्पादों का उत्पादन बढ़ रहा है. फुटवियर मेड फ्रॉम लेदर एंड अदर मटेरियल (क्वालिटी कंट्रोल) ऑर्डर 2022 के तहत देश में एक जुलाई से, क्वालिटी कंट्रोल ऑर्डर लागू होने के बाद देश में चीन, वियतनाम, इंडोनेशिया और बंगलादेश से होने वाले घटिया जूते-चप्पलों के आयात में बड़ी कमी आयेगी.
अब फुटवियर का घरेलू मैन्युफैक्चरिंग बढ़ेगा व रोजगार बढ़ेंगे. चीन से खाद्य संस्करण उत्पादों के आयात में भी कमी आएगी. कृषि मंत्री तोमर के मुताबिक सरकार जिस तरह देश में ज्यादा मूल्य और मूल्यवर्धित कृषि निर्यात से संबंधित उद्योगों और खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों को प्रोत्साहन दे रही है, उससे फुड प्रोसेसिंग, मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की संभावनाएं भी आगे बढ़ी हैं.
यद्यपि देश का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर आगे बढ़ रहा है, लेकिन देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने के लिए अभी मीलों चलना बाकी है. व्यापक नीतिगत सुधारों के तहत सभी उत्पादों के कारोबारों के लिए सिंगल विंडो मंजूरी, इन्फ्रास्ट्रक्चर और कुशल श्रमिकों की आवश्यकता की पूर्ति के साथ-साथ नयी लॉजिस्टिक नीति 2022 और गति शक्ति योजना के कारगर कार्यान्वयन पर ध्यान देना होगा.
भारत के द्वारा यूएई और ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौतों को मूर्तरूप दिये जाने के बाद अब यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, खाड़ी सहयोग परिषद के छह देशों, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और इजराइल के साथ एफटीए के लिये प्रगतिपूर्ण वार्ताएं तेजी से आगे बढ़ानी होंगी. देश के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को चीन और विएतनाम जैसे देशों से प्रतिस्पर्धी बनाने के मद्देनजर केंद्र सरकार के द्वारा जहां नयी श्रम संहिता को शीघ्रतापूर्वक लागू करना होगा, वहीं विभिन्न राज्यों के द्वारा फैक्टरीज अधिनियम 1948 में उपयुक्त संशोधन करने होंगे. अब तक कर्नाटक और तमिलनाडु ने फैक्टरीज अधिनियम 1948 में संशोधन करके काम के लिए 12 घंटे की शिफ्ट को मंजूरी दी है.
हम उम्मीद करें कि सरकार विभिन्न पीएलआई योजनाओं के कारगर क्रियान्वयन के साथ-साथ नई विदेश व्यापार नीति के तहत वर्ष 2030 तक एक हजार अरब डॉलर के उत्पाद निर्यात के लक्ष्य को पाने के साथ-साथ विनिर्माण उद्योगों को आगे बढ़ाने के लिए लागू की गयी विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन पर भी हरसंभव तरीके से ध्यान देगी. इससे देश दुनिया का नया मैन्युफैक्चरिंग हब बनते हुए दिखाई देगा. साथ ही मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर देश के करोड़ों युवाओं को रोजगार देते हुए दिखाई दे सकेगा.