हमारा देश अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मुख्य रूप से जीवाश्म-आधारित स्रोतों, जैसे- कोयला, पेट्रोलियम पदार्थों आदि, पर निर्भर है. इस कारण एक तो हमें बहुत अधिक मात्रा में तेल और गैस का आयात करना पड़ता है तथा दूसरे हमें पर्यावरण संबंधी समस्याओं से भी जूझना पड़ता है. जलवायु संकट एक वैश्विक चुनौती है. इस पृष्ठभूमि में ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह संकल्प अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष रखा था कि भारत 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य पूरा कर लेगा.
इस संकल्प को साकार करने के लिए देश में स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन और उपभोग को बढ़ावा देने के लिए प्रयत्न किये जा रहे हैं. केंद्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने राज्यसभा को जानकारी दी है कि इस वर्ष फरवरी तक देश की स्वच्छ ऊर्जा क्षमता 168.96 गीगावाट तक पहुंच गयी है. इसमें सौर ऊर्जा क्षमता 64.38, जल-विद्युत परियोजनाओं से प्राप्त ऊर्जा 51.79, पवन ऊर्जा का भाग 42.02 और जैव ऊर्जा क्षमता 10.77 गीगावाट है.
इसके अतिरिक्त 82.62 गीगावाट ऊर्जा क्षमता जल्दी ही उत्पादित होने लगेगी तथा 40.89 गीगावाट क्षमता के टेंडर मुहैया कराने की प्रक्रिया चल रही है. फरवरी तक देश की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता 412.21 गीगावाट रही है. इसमें 168.96 गीगावाट हरित ऊर्जा का योगदान निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है. सरकार ने 2030 तक 500 गीगावाट ऊर्जा की आपूर्ति गैर-जीवाश्म स्रोतों से करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. हमारे देश के कई शहर दुनिया के सबसे अधिक दूषित शहरों में हैं.
वायु प्रदूषण का मुख्य कारण उद्योगों और वाहनों से निकलने वाला धुआं है. साथ ही, अनेक बड़े बिजली उत्पादक संयंत्रों का मुख्य ईंधन कोयला है. जीवाश्म-आधारित ईंधन की जगह हरित ऊर्जा का उपयोग निश्चित ही प्रदूषण को कम करने में सहायक सिद्ध होगा. इससे स्वास्थ्य पर जो गंभीर असर होता है और बड़ी संख्या में असमय मौतें होती हैं, उससे भी बचा जा सकेगा.
प्रधानमंत्री मोदी ने ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में यह भी भरोसा दिलाया था कि 2030 तक सकल घरेलू उत्पादन में अधिक उत्सर्जन आधारित गतिविधियों की हिस्सेदारी 2005 के स्तर से 45 प्रतिशत कम कर दी जायेगी तथा गैर-जीवाश्म ऊर्जा स्रोतों से 50 प्रतिशत बिजली हासिल की जायेगी. निश्चित रूप से यह एक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य है, पर तकनीक, शोध, निवेश और व्यापक जन भागीदारी से इसे पूरा किया जा सकता है. यदि हम बड़ी जल-विद्युत परियोजनाओं को छोड़ दें, तो 2018 से अब तक स्वच्छ ऊर्जा क्षमता में लगभग 66 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. विकसित देशों से अपेक्षित मात्रा में वित्तीय और तकनीकी सहयोग न मिलने के बावजूद ऐसी उपलब्धि ही संतोषजनक है.